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इंटरव्यू : आस्था और विश्वास से ही निकलते हैं रास्ते, बोले अभिनेता रानू सिंह

एक दौर था, जब हिन्दी सिनेमा में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना बेहद कठिन हुआ करता था। सीमित मंच थे, सीमित अवसर...
इंटरव्यू : आस्था और विश्वास से ही निकलते हैं रास्ते, बोले अभिनेता रानू सिंह

एक दौर था, जब हिन्दी सिनेमा में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना बेहद कठिन हुआ करता था। सीमित मंच थे, सीमित अवसर थे। मगर ओटीटी प्लेटफॉर्म आने के बाद अवसर बढ़े हैं। यह सुखद एहसास है। आज छोटे शहरों से आए कलाकारों को काम मिल रहा है, वह अपनी प्रतिभा दिखा रहे हैं। ऐसे ही एक कलाकार हैं रानू सिंह, जिन्होंने वेब सीरीज क्रिमिनल जस्टिस में अपने अभिनय से दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया है। रानू सिंह से उनके जीवन और अभिनय यात्रा के विषय में बातचीत की आउटलुक से मनीष पाण्डेय ने।

 

 

 

जीवन में अभिनय का प्रवेश किस तरह से हुआ?

 

मेरा जन्म चंपारण बिहार में हुआ। पिता नंदकिशोर सिंह और मां रिंकी देवी ने मुझे बहुत लाड़ प्यार से पाला। बचपन बहुत सुंदर था। मगर वहां अभिनय का कोई परिवेश नहीं था। मुझे फिल्में देखना अच्छा लगता था। धीरे धीरे सिनेमा का नशा होता गया। मैट्रिक पास करने के बाद मैं पटना आया। पटना आने का उद्देश्य तो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करना था मगर मैं फिल्म देखने में ही मसरूफ रहा। पटना ही में मुझे मालूम हुआ कि कालिदास रंगालय में नाटक होते हैं। मैं कालिदास रंगालय से जुड़ गया और नाटक करने लगा। इस तरह जीवन में अभिनय शामिल हो गया।

 

 

आपके अभिनय के शौक को लेकर परिवार की क्या प्रतिक्रिया रही?

 

शुरुआत में तो परिवार का पूर्ण सहयोग मिला। लेकिन जब मैंने अभिनय को ही जीवन बनाने का निर्णय लिया और पिता को अभिनय और सिनेमा के हर पक्ष के विषय में बताया तो पिता की एक ही चिंता थी और वह यह कि मैं आजीविका सृजन किस तरह करूंगा। मैंने पिताजी की चिंता दूर करने की दृष्टि से एक नौकरी शुरु कर दी। नौकरी के बाद जो समय बचता था, उसमें अभिनय करता था। नौकरी करने के बाद आजीविका की चिंता दूर हो गई इसलिए परिवार की असुरक्षा भी नहीं रही। फिर कभी पिताजी ने मुझे नहीं रोका। उन्होंने हमेशा मुझे प्रेरित ही किया आगे बढ़ने के लिए, नए प्रयोग करने के लिए।

 

 

 

मुम्बई आकर जीवन किस तरह बदला, क्या संघर्ष रहे ? 

 

मुम्बई पहुंचने से पहले जीवन में एक स्थिरता थी। मैं नौकरी करता था इसलिए आर्थिक स्वतंत्रता थी। साथ में नाटक करते हुए जीवन आनंदित था। मगर उन्हीं दिनों नाटक करते हुए साथी कलाकारों ने कहा कि मुम्बई जाकर बड़े अवसर मिलेंगे, इसलिए कंफर्ट जोन से बाहर निकलना चाहिए। बात सही थी। विकास के लिए तो बाहर जाना और बड़ी चुनौती स्वीकार करना जरूरी था। यही सोचकर मैं मुम्बई पहुंचा। मगर जीवन में दुख क्या होता है, यह मैंने मुम्बई पहुंचकर जाना। मुम्बई में पहुंचते ही कुछ समय बाद कोरोना महामारी का प्रक्रोप आ गया। लॉकडाउन की स्थिति पैदा हो गई। मैं मुम्बई में किसी को नहीं जानता था। मेरे पास सीमित संसाधन थे। उन्हीं में दिन काटने थे। यह समय बहुत पीड़ादायक रहा। मुझे शरीर में कई तरह के रोग हो गए। मैं अभिनय, सिनेमा, कैरियर सब कुछ भूलकर अपना इलाज करवाने लगा। मेरे लिए सेहत ही जीवन का केंद्र बन गई। एक तरफ रोगी शरीर और दूसरी तरफ लॉकडाउन के कारण ठप्प पड़ी मुम्बई। जीवन में ऐसा अंधकार कभी न था। यदि मैं आस्तिक न होता तो खत्म हो जाता। ईश्वर में गहरी आस्था ने मुझे बचाया। मैंने हिम्मत रखी। जैसे जैसे स्वास्थ्य बेहतर हुआ, टीवी आदि के काम करने शुरु किए।इससे मुम्बई में टिकना थोड़ा आसान हो गया।

 

 

क्रिमिनल जस्टिस में काम कैसे मिला ?

 

क्रिमिनल जस्टिस से पहले थोड़ा बहुत काम मिल रहा था। मैं लगातार ऑडिशन दे रहा था। कहीं सफलता मिलती तो कहीं निराशा हाथ लगती। मगर मैं पूरी ऊर्जा और आस्था के साथ आगे बढ़ रहा था। जब क्रिमिनल जस्टिस की कास्टिंग चल रही थी तो कास्टिंग टीम के पास मेरी तस्वीर थी लेकिन कॉन्टैक्ट नंबर नहीं था। तब पटना के एक कास्टिंग डायरेक्टर रवि ने मेरा फोन नंबर, क्रिमिनल जस्टिस की कास्टिंग टीम को दिया। टीम ने मुझसे संपर्क किया और ऑडिशन भेजने के लिए कहा। मैंने ऑडिशन दिल से बनाकर भेज दिया। आधे घंटे के बाद मुझे कॉल आया कि मैं मोती के किरदार के लिए शॉर्ट लिस्ट हो गया हूं। लेकिन अभी भी कन्फर्म नहीं था कि मैं क्रिमिनल जस्टिस में काम कर पाऊंगा। चौबीस घंटे बाद फोन कॉल आया और सूचना मिली कि मैं क्रिमिनल जस्टिस में मोती के किरदार के लिए फाइनल कर दिया गया हूं। यह खबर सुनकर, मेरी खुशी का ठिकाना न था। इसी दिन के लिए मैं जाने कबसे मेहनत कर रहा था। मेरा इंतजार पूरा हो गया था। क्रिमिनल जस्टिस में काम करने का गजब का अनुभव रहा। वेब सीरीज में मेरे कई महत्वपूर्ण दृश्य रहे और सभी मुख्य कलाकारों के साथ रहे। मेरे काम को लोगों ने नोटिस किया और मुझे काम के लिए प्रशंसा मिली। यह मेरी आस्था, हिम्मत, विश्वास की जीत थी।

 

 

ओटीटी प्लेटफॉर्म के कारण जिस तरह कलाकारों के लिए अवसर पैदा हुए हैं, इस स्थिति को किस तरह देखते हैं आप ? 

 

 

ओटीटी प्लेटफॉर्म एक सकारात्मक बदलाव लाया है।ओटीटी प्लेटफॉर्म के कारण सार्थक और संवेदनशील विषयों पर बनी फिल्मों को बड़ी ऑडियंस मिल रही है। दर्शक इन फिल्मों को पसंद कर रहे हैं। यही कारण है कि नए लेखकों, निर्देशकों, अभिनेताओं को खूब अवसर मिल रहे हैं। आज अगर आपके पास प्रतिभा है तो आपके पास काम करने के कई अवसर, कई मंच उपलब्ध हैं। इस प्रकार ओटीटी प्लेटफॉर्म ने कलाकारों और फिल्मों के लिए एक बेहतर माहौल तैयार किया है।

 

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