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जाने-माने अर्थशास्त्रियों और पूर्व नौकरशाहों की अपील, गरीब परिवारों को प्रतिमाह 6,000 नकद और मुफ्त राशन दिया जाए

भारत के शीर्ष अर्थशास्त्रियों, समाजशास्त्रियों, कर्मचारी संगठनों और पूर्व नौकरशाहों के संगठन इंडियन...
जाने-माने अर्थशास्त्रियों और पूर्व नौकरशाहों की अपील, गरीब परिवारों को प्रतिमाह 6,000 नकद और मुफ्त राशन दिया जाए

भारत के शीर्ष अर्थशास्त्रियों, समाजशास्त्रियों, कर्मचारी संगठनों और पूर्व नौकरशाहों के संगठन इंडियन सोसायटी ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स ने प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्रियों से कोरोनावायरस के कारण लॉकआउट से प्रभावित श्रमिकों और कर्मचारियों के लिए तत्काल राहत के कदम उठाने की अपील की है। इनका कहना है कि हर जन धन योजना की महिला खाताधारकों के अकाउंट में 3 महीने तक प्रतिमाह कम से कम 6,000 रुपये ट्रांसफर किए जाने चाहिए। राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी लाभार्थी परिवारों में प्रति व्यक्ति प्रति माह कम से कम 10 किलो मुफ्त राशन और अन्य जरूरी चीजें वितरित की जाएं। अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के लिए जो 1.7 लाख करोड़ रुपए का रिलीफ पैकेज घोषित किया गया है उसे भी तीन से चार गुना बढ़ाने की जरूरत है।

सोसायटी से जुड़े 300 से ज्यादा अर्थशास्त्रियों, कार्यकर्ताओं और पूर्व नौकरशाहों का कहना है कि इस समय देश जिस बड़े संकट का सामना कर रहा है उसे देखते हुए राहत उपाय बढ़ाने की जरूरत है। समाज के कमजोर तबके और अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए सोसायटी ने 10 सुझाव दिए हैं। यह सुझाव इस प्रकार हैं-

1)जिन परिवारों में किसी भी सदस्य को औपचारिक रोजगार हासिल नहीं है या कोई करदाता नहीं है उन्हें प्रतिमाह 6,000 की नकद राशि दी जाए। यह रकम 3 महीने तक उनके बैंक खाते में ट्रांसफर हो। इससे सरकार पर 3.6 लाख करोड़ का बोझ आएगा जिसका बड़ा हिस्सा केंद्र सरकार वहन करे।

2)राशन की दुकानों के जरिए प्रति व्यक्ति प्रतिमाह 10 किलो अनाज और दूसरी जरूरी वस्तुएं मुफ्त में वितरित की जाएं। बेघर और नौकरी गंवाने वालों को भी खाना मुहैया कराया जाए।

3)सार्वजनिक क्षेत्र की सभी कंपनियों को ठेका कर्मियों को बहाल रखने और पूरा वेतन देने का आदेश तत्काल जारी करना चाहिए। असंगठित क्षेत्र और एमएसएमई सेक्टर के लिए भी केंद्र सरकार को स्कीम लानी चाहिए ताकि वे ठेका और अस्थाई कर्मचारियों को लॉक डाउन के दौरान वेतन का भुगतान कर सकें।

4)जरूरतमंदों को मुआवजा का भुगतान किया जाए ताकि कोई भी व्यक्ति या परिवार सामाजिक सुरक्षा के दायरे से बाहर ना रहे।

5)शहरों में असंगठित क्षेत्र में बड़ी तादाद में प्रवासी मजदूर हैं जिनके पास अभी न रहने का ठिकाना है न आमदनी का कोई जरिया। अनौपचारिक क्षेत्र में 4 से 5 करोड़ प्रवासी मजदूर काम करते हैं। इनमें से खासकर कंस्ट्रक्शन, मैन्युफैक्चरिंग ट्रांसपोर्ट और ट्रैवल इंडस्ट्री से जुड़े श्रमिक बेरोजगार हो गए हैं और अपने घर वापस जा रहे हैं। लॉक डाउन की अवधि बढ़ी तो यह संख्या बढ़ भी सकती है। केंद्र और राज्य सरकारों को इनके लिए खाना और अन्य सुविधाएं मुहैया करानी चाहिए। जरूरत पड़ने पर उनके लिए आवश्यक रूप से क्वॉरेंटाइन की व्यवस्था भी की जानी चाहिए।

6)भारतीय खाद्य निगम और राज्यों की एजेंसियों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीदारी करनी चाहिए ताकि अकाल जैसी स्थिति न आए।

7)महामारी से निपटने में सरकार  के सहयाेग के लिए नागरिक और स्वयंसेवी संगठनों की मदद ली जानी चाहिए।

8)इस संकट के समय जो लोग आवश्यक सेवाओं में लगे हैं उनकी सुरक्षा और कल्याण के लिए कदम उठाए जाने चाहिए।

9)छोटे-मोटे मामलों के लिए जो लोग जेलों में बंद हैं या अंडर ट्रायल हैं उन्हें तत्काल रिहा किया जाना चाहिए ताकि जेलों पर दबाव कम हो। राजनीतिक बंदियों को भी तत्काल छोड़ा जाना चाहिए।

10)एनडीएमए गाइडलाइंस में संशोधन किया जाना चाहिए ताकि लोग आवश्यक सेवाओं की आपूर्ति और उनका इस्तेमाल बेहतर कर सकें, साथ ही सोशल डिस्टेंसिंग को भी बनाए रखें।

अपील करने वालों में सोसायटी के प्रेसिडेंट और पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार प्रो. दीपक नय्यर, प्रो. जयति घोष, प्रो. अभिजीत सेन, प्रो. प्रभात पटनायक, डॉ राकेश मोहन, डॉ अशोक गुलाटी, लॉर्ड मेघनाद देसाई, डॉ अजीत रानाडे, डॉ ज्यां द्रेज जैसे जाने-माने अर्थशास्त्री, यूनेस्कैप के डॉ नागेश कुमार, पापुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की डॉ पूनम मुथरेजा, एटक के विद्यासागर गिरि और भारतीय मजदूर संघ के बृजेश उपाध्याय शामिल हैं।

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