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तो शुगर की जांच एक रुपये के खर्च में होगी

भारत में चिकित्सा शोध की स्थिति हमेशा विकसित देशों के मुकाबले पिछड़ी रही है। कई गंभीर बीमारियां पूरे देश में फैल जाती हैं और उसपर नियंत्रण में खासा समय लग जाता है। ऐसे में देश में चिकित्सा शोध के लिए जिम्मेदार सरकारी विभाग चिकित्सा अनुसंधान विभाग (डीएचआर) एवं भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) पर बड़ी जिम्मेदारी आती है। आउटलुक ने आईसीएमआर की उपलब्धियों एवं चुनौतियों के बारे में परिषद की महानिदेशक डॉ. सौम्या स्वामीनाथन से विस्तृत बातचीत की। पेश हैं अंशः
तो शुगर की जांच एक रुपये के खर्च में होगी

 

 

विश्व के मुकाबले हम स्वास्‍थ्य शोध में पिछड़े हुए क्यों हैं?

एक छोटे से उदाहरण से समझें। अमेरिका में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्‍थ जो वहां स्वास्‍थ्य शोध का काम देखता है उसका बजट 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक है जबकि हमारा बजट एक हजार करोड़ रुपये के आसपास है। हम इसके लिए किसी को दोष नहीं दे सकते क्योंकि हमारे देश में उतना पैसा ही नहीं है।

आईसीएमआर की हालिया उपलब्धियों के बारे में कुछ बताएं।

हमने हालिया दिनों में कम से कम आठ तकनीकें विकसित की हैं जिनके जरिये चिकित्सा जगत में और लोगों की जिंदगी में बड़े बदलाव आ सकते हैं। सबसे पहले बात करें मधुमेह की। अभी अगर हम लैब में शुगर की जांच कराएं तो कम से कम 50 रुपये लगते हैं और घर में खुद से ग्लूकोमीटर पर जांच करने पर भी 10 से 12 रुपये का खर्च आता है। यह खर्च ग्लूकोमीटर की कीमत के अतिरिक्त है क्योंकि खून की जांच करने वाली स्ट्रिप अभी महंगी है। आईसीएमआर ने अपनी स्ट्रिप विकसित की है जो बेहद सस्ती है और अगर कोई निजी कंपनी इसका उत्पादन करे तो घर में खून जांच की लागत 1 रुपये पर आ जाएगी। इससे लैब में भी लागत घट जाएगी। आईसीएमआर की एक और बड़ी उपलब्धि है डेंगू और स्वाइन फ्लू की जांच किट विकसित करना। पूरे देश में आईसीएमआर ही इन दोनों बीमारियों की जांच के लिए किट की आपूर्ति कर रही है जिससे इन बीमारियों की त्वरित जांच संभव हुई है। इसके अलावा हमारे वैज्ञानिकों ने महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर की जांच के लिए मैग्निविजुआलाइजर का विकास किया है जिससे शुरुआती चरण में ही सर्वाइकल कैंसर और मुंह के कैंसर का पता लग जाएगा। देश में इनफर्टिलिटी के बढ़ते मामलों से निबटने के लिए हमने एक जांच किट तैयार की है जो शरीर के हार्मोनों की सटीक जानकारी देती है। इस किट के औद्योगिक उत्पादन के लिए आईसीएमआर की एचएलएल से बात हो गई है। आईसीएमआर के वैज्ञानिकों ने जापानी इंसेफ्लाइटिस का टीका तैयार कर लिया है और अब इस बीमारी का उन्मूलन महज वक्त की बात है। हमारी पटना यूनिट ने कालाजार की जांच के लिए एक तकनीक विकसित की है जिसमें मरीज का खून निकाले बिना सिर्फ लार और पेशाब के जरिये इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है। कुल मिलाकर देखा जाए तो आईसीएमआर के ‌वैज्ञानिकों ने अपने उपलब्‍ध संसाधनों में अच्छा काम किया है। जरूरत इस बात की है कि निजी क्षेत्र आगे आए और इन तकनीकों का बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू करे मगर दुर्भाग्य से अभी ऐसा नहीं हो पा रहा है।

भविष्य की चुनौतियां क्या हैं?

देश की बड़ी आबादी कुपोषण का शिकार है। हम इससे निपटने के लिए अब मिशन मोड प्रोजेक्ट पर काम करने वाले हैं। हालांकि इसके लिए पूरे देश में सर्वे के जरिये सटीक डाटा जुटाना बड़ी चुनौती है। अभी देश में स्थिति यह है कि जितनी एजेंसियां उतने तरह के डाटा सामने आते हैं। उनमें एकरूपता नहीं है। हम प्रयास कर रहे हैं कि यह स्थिति बदले।

नई पहल क्या हो रही है?

हम एक इविडेंट टू पॉलिसी यूनिट बना रहे हैं। आईसीएमआर में होने वाले सभी अनुसंधानों के नतीजों का इस्तेमाल सबूत के रूप में किया जाएगा और इन सबूतों के जरिये देश के नीति निर्माता यह तय करेंगे कि किस काम को प्राथमिकता के आधार पर करना है। यह एक क्रांतिकारी कदम होने जा रहा है जिससे भविष्य की सभी सरकार को सेहत के क्षेत्र में नीति निर्धारण में मदद मिलेगी।

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