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सत्ता और जनता के बीच सेतु का काम करुंगी- डॉ. मीसा भारती

राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू यादव की बेटी डॉ. मीसा भारती भले ही लोकसभा का चुनाव हार गई हों लेकिन राजनीतिक सक्रियता बरकरार है। मीसा जनता के बीच बेहतर संवाद बनाए हुए हैं और भविष्य के लिए रणनीति तैयार कर रही हैं। आने वाले दिनों में मीसा की राजनीतिक भूमिका क्या होगी। इसको लेकर आउटलुक के विशेष संवाददाता ने विस्तार से बातचीत की। पेश है प्रमुख अंश-
सत्ता और जनता के बीच सेतु का काम करुंगी- डॉ. मीसा भारती

 

साल 2016 में आपकी राजनीतिक योजना क्या है?

2016 हमारे दल के लिए बहुत महत्वपूर्ण वर्ष है। बिहार में हम पुन: सत्ता में आए हैं और यह समय है कि हम उन सभी तथाकथित दागों को धो दें जो हमपर बेवजह थोप दी गईं थीं। बिहार की सत्ता में जो हमारा पिछला कार्यकाल था वो ऐतिहासिक सामाजिक बदलाव का काल था। छोटे से समय में ही प्रगति के प्रवाह से पृथक कर दिए गए एक बहुसंख्यक वर्ग की मानसिकता में वह बदलाव लाया गया जिसके समानांतर उदाहरण मानव इतिहास में विरले ही मिलेगा। जिन्हें इस सामाजिक उत्थान से प्रभाव और प्रभुत्व की हानि पहुंची, उन्होंने उसे जंगलराज का नाम दिया। हमने जिन्हें पहले आवाज़ दी थी, अब हम उन्हें परवाज़ देंगे, पंख देंगे और उड़ान देंगे। सत्ता के साथ जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं, अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं। मैं अपने आप को इस भूमिका में देखती हूँ जो यह सुनिश्चित करे कि सत्ता और राजनीति की शोर में उपेक्षितों और ज़रूरतमंदों की आवाज़ कहीं दब ना जाए। और अपने आपको इसी भूमिका में देखते हुए ही मैंने भारी मांग के बावजूद प्रदेश अध्यक्ष के पद को स्वीकारने से इंकार कर दिया। मैं सत्ता औए जनता के बीच और दल और ज़मीनी कार्यकर्ताओं के बीच सेतु का काम करना चाहती हूँ।

महिलाएं अभी भी राजनीति में कम हैं इसकी क्या वजह है?

किसी देश की राजनीति उस देश के समाज का ही प्रतिबिंब होता है। और हमारा समाज एक पुरुषप्रधान देश है, इसमें कोई दो राय नहीं है। राजनीति ही क्या, समाज के हर क्षेत्र में पुरुषों का ही बोलबाला है। नारी उत्थान की बात तो हर कोई करता है, पर वही लोग अपने घर की बहु बेटियों की राह में रोड़े बनकर खड़े हो जाते हैं। रूढि़वाद, असमानता, अशिक्षा, शोषण और निरंकुशता की सबसे बड़ी शिकार महिलाएँ ही हैं। ख़ुद महिलाएँ ही महिलाओं का साथ नहीं देती हैं।राजनीति में जिन महिलाओं ने भी नाम कमाया है, उन्हें विलक्षण प्रतिभा की होने के बावजूद अपने पुरूष प्रतिद्वंदियों के मुकाबले दुगना श्रम करके अपने लिए जगह बनाना पड़ा।

राजनीतिक दल महिलाओं को आगे लाने में क्यों नहीं दिलचस्पी राते हैं?

जैसा कि मैंने पिछले प्रश्न के उत्तर में आपको बताया कि एक पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं की प्रतिभा को कमतर ही आँका जाता है। इसीलिए राजनीतिक दल भी महिला उम्मीदवारों की जीत पाने की सम्भावना को लेकर संशयित ही रहते हैं। यह भी कटु सत्य है कि स्वयं महिलाएँ भी अपने पति, पुत्र या पिता के प्रभाव या दबाव में आकर किसी महिला उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करने से हिचकती हैं। इन सारी परिस्थितियों का मिलाजुला असर महिलाओं के राजनीति में पाँव जमाने की सम्भावनाओं को धूमिल करती हैं। जबतक महिलाएँ एकमुश्त होकर महिलाओं के पक्ष में सामने नहीं आएंगीं, तबतक महिलाएँ राजनीति या किसी भी अन्य क्षेत्र में दरकिनार किए जाते रहने को बाध्य रहेंगीं।

महिलाओं को संसद और राज्य विधानसभाओं में आरक्षण मिले इसके लिए आप कितनी सहमत हैं?

नि:संदेह  मैं संसद या विधानसभाओं में महिलाओं के आरक्षण के पक्ष में हूँ। लेकिन इसमें भी समाज के हर वर्ग के प्रतिनिधित्व के लिए निश्चित मात्रा में आरक्षण हो, ताकि हर वर्ग, जाति या सम्प्रदाय की महिलाओं को न्यायपूर्ण अवसर मुहैया हो। और साथ ही साथ यह भी सुनिश्चित करना आवश्यक है कि इसका भी हाल पंचायत चुनावों में महिलाओं को मिलने वाली आरक्षण की भांति ना हो जहाँ अक्सर महिलाओं के सिफऱ् नाम का इस्तेमाल कर उनके पुरूष रिश्तेदार ही असली पंचायत सदस्य बन जाते हैं। यह भी महिलाओं का दुर्भाग्य ही है कि महिलाओं को संसद और विधानसभाओं में आरक्षण देना उन्हीं पुरूष सांसदों और विधायकों के हाथ में है, जिनको ऐसे किसी कानून या व्यवस्था से सबसे अधिक हानि पहुंचेगी। अत: सम्भावना बहुत कम ही नजऱ आती है।

महिलाओं के लिए कोई संदेश ?

मेरी सभी महिलाओं से अपील है कि वे सभी नारी कल्याण के मुद्दों पर एकजुट होकर आवाज़ उठाएँ और अपनी बेटियों के लिए ऐसे समाज के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करें जिसका सपना शायद आपकी माँ ने शायद आपके लिए देखा हो। जागरूक बनें, शिक्षित बनें और अपने आसपास हो रहे किसी भी महिला विरोधी कृत्य या अत्याचार को बर्दाश्त ना करें। और अपने बेटों को महिलाओं का सम्मान करना सिखाएँ। अगर पुरुषों को अच्छे संस्कार मिलेंगे, तो समाज की सारी व्याधियाँ स्वत: ही समाप्त हो जाएँगी।

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