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इंटरव्यू: 'रेवड़ी' क्या है इसपर एक सार्थक बहस की जरूरत, पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम बोले

-          प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फ़्रीबी वाले बयान पर राजनीतिक गलियारों में हलचल मची हुई है।...
इंटरव्यू: 'रेवड़ी' क्या है इसपर एक सार्थक बहस की जरूरत, पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम बोले

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 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फ़्रीबी वाले बयान पर राजनीतिक गलियारों में हलचल मची हुई है। उनके इस बयान के कारण विपक्ष उन्हें लगातार आड़े हाथ ले रहा है। कांग्रेस का कहना है कि अगर गरीबों को सुविधाएं देना रेवड़ी है तो अमीरों को मुफ्त में दिए जाने वाले 'गजक' क्या हैं? आउटलुक के लिए राजीव नयन चतुर्वेदी में पूर्व केंद्रीय वित्तमंत्री पी चिदंबरम से देश की अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालात और पीएम मोदी के फ़्रीबी वाले बयान पर खास बातचीत की। 

 

संपादित अंश:-

दुनिया भर में मुद्रास्फीति चरम पर है। अमेरिका में यह आंकड़ा चार दशकों के उच्चतम स्तर पर है। भारत में भी स्थिति कोई खास अच्छी नहीं। आपके हिसाब से मुद्रास्फीति की यह चिंता कितनी गंभीर है?

भारत में महंगाई चरम पर है या नहीं, इसका अभी अनुमान नहीं लगाया जा सकता क्योंकि मौजूदा महंगाई के सभी कारण सरकार के नियंत्रण में नहीं हैं। उदाहरण के लिए, कच्चे तेल और कई वस्तुओं की कीमतें भारत द्वारा निर्धारित नहीं की जाती हैं। गैर-आर्थिक कारकों में, उदाहरण के लिए, यूक्रेन-रूस युद्ध समाप्त होगा या जारी रहेगा या और तेज होगा, सरकार के नियंत्रण में नहीं है।  मुद्दा यह नहीं है कि मुद्रास्फीति चरम पर है या नहीं, मुद्दा यह है कि क्या मुद्रास्फीति आरबीआई के 4 +/- 2 प्रतिशत के क्षेत्र से बाहर है? इसका उत्तर है, "हाँ", और यह चिंता का विषय है। आरबीआई का नवीनतम आकलन यह है कि मुद्रास्फीति 2024 तक 4 प्रतिशत तक कम नहीं होगी, और यह निश्चित रूप से चिंता का कारण है।

प्रधानमंत्री मोदी ने 'फ्रीबी' योजनाओं पर लेकर कहा है कि इसे राजनीति से उखाड़ फेंकना होगा। देश के पूर्व वित्त मंत्री होने नाते आपसे मैं यह जानना चाहता हूं कि इसपर आपका क्या स्टैंड है?

जब मैं वित्त मंत्री था, मैंने सब्सिडी पर एक रिपोर्ट प्रकाशित किया था। उस रिपोर्ट ने 'मेरिट' सब्सिडी और 'नॉन-मेरिट' सब्सिडी के बीच अंतर बताया गया था। मेरिट सब्सिडी को ऐसे सब्सिडी के रूप में परिभाषित किया गया था जिसमें कई तरह के अप्रत्यक्ष लाभ है। प्रधान मंत्री को यह बताना चाहिए कि उनके अनुसार, कौन सी मेरिट सब्सिडी हैं जो जारी रखने योग्य हैं और कौन सी नॉन-मेरिट सब्सिडी हैं। पीएम को प्रत्येक वर्तमान सब्सिडी पर अपनी स्थिति अवश्य बतानी चाहिए। अगर वह और ऊर्जा मंत्री सोचते हैं कि मुफ्त बिजली या सब्सिडी वाली बिजली, सब्सिडी है, तो मैं तर्क दूंगा कि सीमित मात्रा में मुफ्त बिजली एक "आवश्यक वस्तु" और एक बुनियादी मानव अधिकार है। यह एक रेवड़ी नहीं है, जैसा कि सरकार द्वारा दर्शाया गया है। पीएम को व्यापक बयान देने के बजाय सरकार को प्रत्येक सब्सिडी पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए जैसे कॉरपोरेट्स के टैक्स में कटौती, बैंक ऋणों को बट्टे खाते में डालना, उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना और 5जी स्पेक्ट्रम नीलामी में प्राप्त मूल्य। मैं यह नहीं कहता कि 'ए' सब्सिडी खराब है या 'बी' सब्सिडी अच्छी है। मेरा तर्क यह है कि सभी सब्सिडी जो विशेष रूप से गरीबों को दी जाती है उसे एक रेवड़ी के रूप में ब्रांड करने के बजाय इस पर एक बहस होनी चाहिए।

सब्सिडी पर राज्य सरकारों का खर्च 2020-21 में 12.9 फीसदी और 2021-22 में 11.2 फीसदी बढ़ा है। आरबीआई का कहना है कि राज्यों के वित्तीय स्वास्थ्य का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किया जाना चाहिए क्योंकि उनका सामाजिक कल्याण पर अधिक ध्यान केंद्रित है। आप इस तर्क को कैसे देखते हैं?

राजकोषीय स्वास्थ्य महत्वपूर्ण है और उतना ही मानव विकास संकेतक (एचडीआई)। हमें आने वाली पीढ़ी और वर्तमान पीढ़ी के हितों के बीच संतुलन बनाना होगा। जब तक एक राज्य के पास उधार लेने की क्षमता है (जो, वैसे, केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित है) और ऋण चुकाने की क्षमता है तो हमें स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य कल्याणकारी उपायों पर होने वाले खर्च के बारे में ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए। 

आपके अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था किन चुनौतियों का सामना कर रही है? इससे निपटने के लिए सरकार का दृष्टिकोण क्या होना चाहिए?

अर्थव्यवस्था कई चुनौतियों का सामना कर रही है। मैं सबसे महत्वपूर्ण चुनौतियों की सूची दूंगा लेकिन मुझे नहीं लगता कि एनडीए सरकार में उन चुनौतियों का समाधान करने की समझदारी है। इसलिए, मैं उन्हें कोई सलाह नहीं दूंगा। देश के सामने मुख्य आर्थिक चुनौतियां हैं: राजकोषीय घाटा, चालू खाता घाटा (सीएडी), व्यापार संतुलन, मुद्रास्फीति, स्वास्थ्य और शिक्षा पर कम खर्च, कम सकल अचल पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) आदि। इसके अलावा, राजनीतिक, सुरक्षा और सामाजिक चुनौतियां भी हैं।

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