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हमारी टीम काफी मजबूत और किसी भी पिच पर लोहा ले सकती है: सचिन

बकौल सचिन रमेश तेंडुलकर, उन्हें यकीन था कि ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ हालिया संपन्न चार टेस्ट मैचों की...
हमारी टीम काफी मजबूत और किसी भी पिच पर लोहा ले सकती है: सचिन

बकौल सचिन रमेश तेंडुलकर, उन्हें यकीन था कि ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ हालिया संपन्न चार टेस्ट मैचों की सीरीज में भारत जीत दर्ज करेगा, क्योंकि स्टीव स्मिथ और डेविड वार्नर की गैर-मौजूदगी वाली टीम काफी कमजोर थी। वे चेतेश्वर पुजारा को भारतीय बल्लेबाजी का मुख्य स्तंभ बताते हैं। पुजारा ने चार टेस्ट मैंचों की सात पारियों में 74.42 के औसत से 521 रन बनाए। हालांकि उनका यह भी मानना है कि 2-1 से सीरीज जीत के नायक तो यकीनन तेज गेंदबाज ही थे। अगर सिडनी टेस्ट में खराब मौसम आड़े नहीं आता, तो यह जीत 3-1 की हो सकती थी। कैसर मोहम्मद अली ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ इस शानदार जीत के विभिन्न पहलुओं पर तेंडुलकर से बातचीत की। मुख्य अंशः

इंग्लैंड में 1-4 और दक्षिण अफ्रीका में 1-2 की हार को देखते हुए क्या आप ऑस्ट्रेलिया में टेस्ट सीरीज में जीत की उम्मीद कर रहे थे?

बहुत ज्यादा। मुझे नहीं लगा कि यह मजबूत ऑस्ट्रेलियाई टीम थी। ईमानदारी से कहूं, तो वे बस ‘ठीक-ठाक’ थे। अगर आप उनकी बैटिंग देखें तो वह अच्छी नहीं थी। मुझे लगता है कि दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड की टीम उनसे कहीं बेहतर है। टीम के रूप में इंग्लैंड कहीं ज्यादा व्यवस्थित है। ऑस्ट्रेलिया अभी अपनी टीम को व्यवस्थित करने के दौर से गुजर रहा है। स्टीव स्मिथ और डेविड वॉर्नर के न होने से टीम में एक खालीपन आ गया है। मैं भारत के जीतने की सौ फीसदी उम्मीद कर रहा था, क्योंकि हमारी टीम एकदम व्यवस्थित और संतुलित है, जो दुनिया के किसी भी कोने में मुकाबला कर सकती है।

इंग्लैंड में हार के बाद इस बदलाव की क्या वजहें थीं, क्योंकि तब खिलाड़ियों का मनोबल जरूर गिर गया होगा?

ऑस्ट्रेलिया में हमने मुश्किल वक्त में भी खेला, जबकि इंग्लैंड में हम ऐसा नहीं कर सके। इंग्लैंड ने बल्लेबाजी में बड़ी साझेदारी की, जबकि ऑस्ट्रेलियाई टीम इसके लिए संघर्ष करती नजर आई। साथ ही जब आप कमजोर टीम के सामने खेल रहे होते हैं, तो आप चीजों को अलग तरीके से देखते हैं। 

आपका मतलब यह है कि ऑस्ट्रेलिया पहुंचने तक खिलाड़ियों के दिमाग से हार का डर निकल गया होगा?

आपको आगे बढ़ते रहना पड़ता है। ऑस्ट्रेलिया से पहले हम भारत में वेस्टइंडीज से खेले और 2-0 से जीते। बतौर खिलाड़ी, आपके सामने अच्छा और बुरा वक्त आता है, लेकिन आप आगे बढ़ते हैं। यहां तक कि जब अच्छा वक्त होता है, तो इसका मतलब यह नहीं कि खिलाड़ी उसी खुशी में गाफिल बना रहे, क्योंकि उसे तुरंत अगले मैच/दिन/सेशन की तैयारी के लिए जुटना होता है। इसलिए जो कुछ भी हुआ वह अतीत है। आपको लगातार वर्तमान में रहना है और भविष्य की तैयारी करते रहना है।

इंग्लैंड से लेकर भारत और ऑस्ट्रेलिया तक हालात और पिचों में बदलाव जैसे कारकों की भारत की जीत में कितनी भूमिका थी?  

एक अंतरराष्ट्रीय टीम से स्थितियों के अनुसार सामंजस्य की उम्मीद की जाती है। स्विंग और सीम की स्थिति में आपको अपने फॉर्म में शीर्ष पर होना पड़ता है। अतिरिक्त उछाल या टर्न की स्थिति में भी यही बात लागू होती है। यह एक चुनौती है और इसके साथ सामंजस्य बैठाने की जरूरत है। इन दिनों जब इंडिया-ए, अंडर-19 टीमें इतनी यात्रा कर रही हैं, तो आपको पिच समझने का समय मिल जाता है। हमारे अधिकांश खिलाड़ियों ने ऑस्ट्रेलिया का दौरा किया था, तो उन्हें पता था कि क्या करना है।

कई बार भारतीय बल्लेबाजी ऑस्ट्रेलिया में नाकाम रही, जैसे दूसरे टेस्ट में और वह हम हार भी गए। सीरीज में बेमिसाल जीत को थोड़ा परे रखें तो क्या यह चिंता का विषय है?

खेल में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद हम कैसे वापसी करते हैं, वह भी उतना ही महत्वपूर्ण है। पर्थ का दूसरा टेस्ट हमारे लिए अच्छा नहीं रहा। लेकिन मेलबर्न में हमने मजबूती से वापसी की। अगर चीजें योजना के मुताबिक नहीं होती हैं, तो हमारा खेल खराब हो जाता है। लेकिन आप अपनी योजना के अनुसार खेलते हैं और अच्छा परफॉर्म कर रहे हैं तो इसे बढ़ावा देना चाहिए। जीतना एक अच्छी आदत है। इसमें जो अंतर मैंने महसूस किया है, वह मानसिकता का है। जब आप कुछ मैच जीत चुके होते हैं और कठिन परिस्थितियों का सामना करते हैं, आपको यकीन होता है कि अब भी आप जीत  सकते हैं। वहीं, कुछ मैच हारने के बाद ठीक इसके उलट होता है। यदि आप जीतने की स्थिति में हैं, तब भी आप सोचते हैं, “बेहतर है कि अब मैं यहां से न हारूं।” इसलिए आखिरकार यह टीम की मानसिकता से जुड़ा मसला है।

सात पारियों में तीन शतक के साथ 521 रन बनाने वाले चेतेश्वर पुजारा भारतीय बल्लेबाजी के मुख्य आधार बने रहे। लेकिन कई बार हमने देखा कि जब वे असफल होते हैं तो टीम भी नाकाम हो जाती है, जैसा कि दूसरे टेस्ट में देखने को मिला।

वह भारत के ही नहीं, बल्कि विश्व क्रिकेट के अग्रणी टेस्ट क्रिकेटरों में से एक हैं। उन्होंने शानदार बल्लेबाजी की। कई विशेषज्ञों ने कहा कि उन्होंने बहुत धीमी गति से बल्लेबाजी की और बहुत अधिक समय लिया। मुझे लगता है कि उन्होंने बहुत जल्दबाजी में बहुत कुछ बोल दिया। यह घंटे (31 घंटे) और गेंदों (1,258) की संख्या ही थी कि उन्होंने आने वाले बाकी बल्लेबाजों के लिए ठोस जमीन तैयार की कि वे आएं और इस मौके को भुना सकें। साथ ही, गेंदबाजों के लिए भी ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों पर दबाव बनाने का अवसर मुहैया कराया।

क्या यह पुजारा के लिए वरदान है कि उन्हें छोटे प्रारूपों के लिए नहीं चुना जा रहा, क्योंकि इससे उन्हें टेस्ट क्रिकेट पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित करने और सफल होने में मदद मिलती है?

इसका श्रेय पुजारा को जाता है कि वे बाकी चीजों से प्रभावित नहीं हुए। बेशक वह हमारे मुख्य बल्लेबाजों में से एक हैं और विश्व-स्तरीय खिलाड़ी बन चुके हैं। कोई भी हर फॉर्मेट में औसत खिलाड़ी बनने के बजाय कुछ फॉर्मेट में विश्वस्तरीय खिलाड़ी बनना चाहेगा। यह खुद को किसी भी परिस्थिति में ढालने की क्षमता से जुड़ा है। आप किसी भी खिलाड़ी से पूछें, वह सामंजस्य के लिए तैयार रहेगा। लेकिन जिस तरह से उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में बल्लेबाजी की है, वह आसान काम नहीं है। इसके लिए विशेष कौशल, तैयारी, दूरदर्शिता और योजना के लिए धैर्य और फिर उस पर अमल करने की जरूरत होती है।

ऑस्ट्रेलिया में विराट की कप्तानी के बारे में क्या सोचते हैं?

मुझे लगता है कि वह भारत के लिए बहुत अच्छे कप्तान रहे हैं और उन्होंने बढ़िया नेतृत्व किया है। उन्होंने मैदान पर जिस तरह से आक्रामक क्षेत्ररक्षण लगाया, उससे ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज दबाव में आ गए। वह गेंदबाजों से सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कराने में सफल रहे।

ऋषभ पंत ने इंग्लैंड दौरे के अपने प्रदर्शन की तुलना में ऑस्ट्रेलिया में अपना प्रदर्शन काफी सुधारा?

हां, मुझे लगता है कि उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसमें कोई शक नहीं कि उनका योगदान काफी अहम रहा। जब कोई सात नंबर पर भी आपके लिए लगातार रन बनाए तो वह टीम के लिए बहुमूल्य हो जाता है और यही उन्होंने किया। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में कठिन परिस्थितियों में वाकई अच्छा योगदान दिया।

ऋषभ पंत की विकेटकीपिंग भी सुधरी है?

मैंने बहुत बारीकी से उनकी विकेटकीपिंग पर गौर नहीं किया। हालांकि, बॉल ऑस्ट्रेलिया की तुलना में इंग्लैंड में अधिक लहराती है। जब स्टंप से गुजरने के बाद गेंद हरकत करने लगती है, तो कभी-कभी यह विकेटकीपर के लिए मुश्किल हो सकता है। इंग्लैंड की तुलना में ऑस्ट्रेलिया में विकेटकीपिंग आसान है।

आपको लगता है, इस साल इंग्लैंड में होने वाले विश्व कप के लिए पंत विकेटकीपरों में से एक हो सकते हैं?

उन्हें चुनने का विचार मुझे जरूर लुभाएगा, क्योंकि मुझे यकीन है कि टीम में बैकअप विकेटकीपर होंगे। एम.एस. धोनी जाहिर तौर पर विश्वकप के दायरे में हैं, क्योंकि चयनकर्ता उन पर भरोसा बनाए हुए हैं। पिछले कई वर्षों से भारतीय क्रिकेट में उनका शानदार योगदान रहा है। वह दबाव झेलने और अच्छा प्रदर्शन करने में सक्षम रहे हैं। इसलिए चयनकर्ताओं ने उन पर भरोसा दिखाया है। जब खेल और स्थिति को समझने की बात आती है, उनमें उसके अनुरूप ढलने की क्षमता है।

जसप्रीत बुमराह ने न केवल ऑस्ट्रेलिया, बल्कि दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड और हाल में भारत में भी बेहतरीन गेंदबाजी की?

मैं उन्हें शुरू से देख रहा हूं। उस समय से जब उन्होंने मुंबई इंडियंस के लिए एक भी मैच नहीं खेला था। उसके बाद से मैंने उन्हें एक गेंदबाज के रूप में प्रगति करते देखा है। वह तेजी से सीखते हैं, अच्छे श्रोता हैं और उनके पास संतुलित दिमाग है। उनकी विचार प्रक्रिया सरल है। वह हमारे मुख्य तेज गेंदबाज हैं, ऐसे गेंदबाज जिसने लगातार अच्छी गेंदबाजी की और विकेट भी लिए। मुझे उम्मीद है कि यह उनके शानदार करिअर की शुरुआत भर है।

कुल मिलाकर, टीम में हमारे पास न केवल अच्छे तेज गेंदबाज हैं, बल्कि बेंच पर मोहम्मद सिराज, खलील अहमद और सिद्धार्थ कौल जैसे गेंदबाज हैं, जिनसे काफी उम्मीदें हैं?

यह सुखद है, क्योंकि कोई भी खिलाड़ी कभी भी चोटिल हो सकता है। तब बेंच की मजबूती काम आती है। यदि टीम के पास मजबूत बेंच स्ट्रेंथ है, तो यह हमेशा मदगार होती है। इस मामले में हम सौभाग्यशाली स्थिति में हैं।

एक दिलचस्प पहलू है कि पाकिस्तान के पंजाब ने बहुत से तेज गेंदबाज दिए। वहीं, भारत के पंजाब ने कोई भी ऐसा बॉलर नहीं दिया। जबकि उनकी खान-पान, संस्कृति, जीवनशैली और भाषा एक जैसी है। इसका क्या कारण हो सकता है?

मुझे लगता है कि पाकिस्तान में हमेशा तेज गेंदबाजी के नायक रहे हैं और उनसे अगली पीढ़ी को प्रेरणा मिलती है कि ज्यादा-से-ज्यादा तेज गेंदबाजी कर सकें। भारत के पास परंपरागत रूप से बल्लेबाजी और स्पिन गेंदबाजी के नायक रहे हैं। हां, लेकिन हमारे पास कपिल देव, जावागल श्रीनाथ और जहीर खान जैसे तेज गेंदबाजी के नायक रहे हैं। हालांकि, अब हमने तेज गेंदबाजों को विकसित किया है, क्योंकि अब बुनियादी ढांचा बेहतर है, प्रशिक्षण और आहार के बारे में अधिक जागरूकता है, किसी भी जानकारी के लिए इंटरनेट तक पहुंच है और सबसे बड़ी बात कि संगठित ढांचा है। यही कारण है कि आप कई तेज गेंदबाजों और एक मजबूत बेंच स्ट्रेंथ भी देख रहे हैं। आइपीएल ने बहुत सारे युवाओं को न केवल दुनिया में सर्वश्रेष्ठ प्रतिस्पर्धा करने का मौका दिया, बल्कि वे चयनकर्ताओं और क्रिकेट प्रशंसकों की नजर में भी आए हैं। टूर्नामेंट के रूप में आइपीएल बहुत बड़ा प्लेटफॉर्म है। लेकिन यह दोधारी तलवार है। अगर आप अपने खेल पर ध्यान देते हैं, तो यह आपके लिए लाभदायक है, वरना यह खिलाफ भी जा सकता है।

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