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इंटरव्यू। सरकार को आगामी बजट में किन तीन बड़े क्षेत्रों पर फोकस करना चाहिए? जानें क्या बोले संजय बारु

देश की व्यापक आर्थिक स्थिति और कोरोना प्रभावित अर्थव्यवस्था के सुधार के लिए इस बजट में हम क्या...
इंटरव्यू। सरकार को आगामी बजट में किन तीन बड़े क्षेत्रों पर फोकस करना चाहिए? जानें क्या बोले संजय बारु

देश की व्यापक आर्थिक स्थिति और कोरोना प्रभावित अर्थव्यवस्था के सुधार के लिए इस बजट में हम क्या अपेक्षा कर सकते हैं? इसको समझने के लिए आउटलुक के राजीव नयन चतुर्वेदी ने मनमोहन सिंह के पूर्व मीडिया सलाहकार, पत्रकार और लेखक संजय बारू से बातचीत की।

साक्षात्कार के मुख्य अंश..

इस समय आप भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति को किस तरह से देख रहे हैं?

इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था आंशिक रूप से कोविड और उसके वेरिएंट के नाकारात्मक प्रभाव के कारण दबी हुई है और इसका एक ये भी है कारण है कि लोगों के भीतर अनिश्चितता पैदा हो गई है। मेरा मानना है कि न केवल बड़ी कंपनियों, बल्कि छोटे-छोटे फर्मों, किसानों और अर्थव्यवस्था के अन्य सेग्मेंट्स से जुड़े हितधारकों को उम्मीद दिए जाने की ज़रूरत है। जब लोग भविष्य के बारे में आशान्वित महसूस करते हैं, तभी समग्र आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और फिलहाल भारतीय अर्थव्यवस्था में आशा की वह भावना गायब है।

आपने कहा कि सरकार को बुनियादी बातों पर ध्यान देने की ज़रूरत है।आपके हिसाब से ऐसी बुनियादी बातें क्या हो सकती हैं?

देखिए, जितने भी आकड़ें आ रहे हैं, उनमें बेरोजगारी, महंगाई और गरीबी बढ़ी हैं लेकिन मांग नहीं बढ़ रही है। कंज्यूमर कॉन्फिडेंस इंडेक्स और बिजनेस एक्सपेक्टेशंस इंडेक्स दोनों अभी भी कमजोर हैं। तो कुल मिलाकर लोगों के बीच भावना सकारात्मक नहीं है। इसलिए सरकार को अपने बजट के जरिये इस नकरात्मक भावना को सकारात्मक भावना में बदलने का प्रयास करना चाहिए।

आपने कहा कि महंगाई बढ़ रही है और उपभोक्ताओं का विश्वास कम हुआ है।तो क्या ऐसा कोरोना के प्रभाव के कारण हो रहा है?

सबसे पहले मुझे लगता है कि यहां एक मिडिल टर्म रणनीति का अभाव है। 2014 से, मैं सरकार के मिडिल टर्म पॉलिसी का इंतज़ार कर रहा हूँ, लेकिन अभी भी सरकार की ये रणनीति स्पष्ट नहीं है। दूसरा कारण यह है, जिसे मैं फिर से दोहराऊंगा कि महामारी के कारण लोगों में अनिश्चितता की भावना बढ़ी है। सरकार को इसपर ध्यान देने की ज़रूरत है।

चूंकि बजट नजदीक हैइसलिए मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि सरकार को आगामी बजट में मांग को संशोधित  करने के लिए किस तीन बड़े क्षेत्रों पर फोकस करना चाहिए?

मुझे लगता है कि इस साल का बजट पिछले साल के बजट से बहुत अलग होना चाहिए। इस बजट में एक मिडिल टर्म रणनीति होनी चाहिए। बजट भाषण में यह बताया जाना चाहिए कि सरकार अगले दो वर्षों में क्या करने का इरादा रखती है। इस बार बजट की प्राथमिकता ये होनी चाहिए कि निवेश और रोजगार कैसे बढ़ाया जाए, गरीबी कैसे कम की जाए और मार्केट में मांग को कैसे बढ़ाया जाए।

दूसरा, बजट में अर्थव्यवस्था और बाहरी दुनिया के लिए संदेश होना चाहिए कि हम एक खुली अर्थव्यवस्था बनने जा रहे है ताकि निवेश बढ़ सके। मेरे हिसाब से यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया या अन्य देशों के साथ हमारे वैश्विक व्यापार नीति को एक बार फिर से एकीकृत करने की ज़रूरत है। तीसरा, पिछले तीन-चार सालों में जीएसटी की बहुत आलोचना हुई है, इसलिए मुझे लगता है कि जीएसटी के फाइनल सेटलमेंट की ज़रूरत है। अब हमारे पास एक फाइनल जीएसटी नीति होनी चाहिए, जिससे राजस्व को और बढ़ाया जा सके।

हमने बहुत से विशेषज्ञों से बात की है, एक बात जो सभी में कॉमन थी, वो ये है कि सरकार ने सप्लाई साइड की समस्याओं पर ज्यादा ध्यान दिया है लेकिन मांगको कैसे बढ़ाया जाए, इस पर सरकार का फोकस नहीं रहा है। आप इसे कैसे देखते हैं?

मैं कहूंगा कि मांग का रिवाईवल दो चीजों पर आधारित है। ज्यादातर लोग केवल सार्वजनिक खर्च पर ध्यान केंद्रित करते हैं, और सरकार से अधिक खर्च करने के लिए कहते हैं। मेरे हिसाब से यह महत्वपूर्ण है। लेकिन सार्वजनिक खर्च में वृद्धि के साथ-साथ अर्थव्यवस्था के भविष्य के प्रति आत्मविश्वास बढ़ाने की ज़रूरत है। अकेले सार्वजनिक खर्च से मांग को बढ़ावा नहीं मिलने वाला है। अभी समस्या यह है कि ज्यादातर परिवार और कंपनियां खर्च करने से पीछे हट रहे हैं। क्योंकि वो अनिश्चितता में है कि आने वाले साल में क्या होगा। मेरे हिसाब से बजट में निजी खर्च को प्रोत्साहित करने, फर्मों और परिवारों को खर्च करने के लिए प्रोत्साहित करने वाली नीतियों पर जोर देने की ज़रूरत है

जैसाकि हम जानतें हैं कि सरकार ने भविष्य में निर्यात को पूरा करने के लिए महत्वाकांक्षीलक्ष्य निर्धारित किए हैं।इसलिए मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि देश में निर्यात को बढ़ावा देने के लिए क्या करना  चाहिए?

भारत सरकार के नीतियों में बहुत भ्रम हो गया है। चीन से निकलने वाला बहुत सारा निवेश वियतनाम, बांग्लादेश, थाईलैंड आदि देशों में चला गया है और भारत नहीं आ रहा है, क्योंकि लोगों को यकीन नहीं है कि भारत गंभीरता से व्यापार को लेता भी है या नहीं। सरकार इसपर कार्य करे तो स्तिथियाँ सुधर सकती हैं।

इस वर्ष नई विदेश व्यापार नीति आने वाली है।भारत के निर्यात को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए नई विदेश व्यापार नीति को समायोजित करने के लिए आपका क्या सुझाव होगा?

विदेश व्यापार एक मध्यम अवधि की नीति होनी चाहिए, न कि केवल एक वर्ष के लिए। लेकिन इसमें स्पष्टता की जरूरत है कि सरकार व्यापार पर वास्तव में क्या सोच रही है? मुझे लगता है कि हमें न केवल भारत के निवेशकों के लिए, बल्कि दुनिया भर के निवेशकों के लिए व्यापार नीति पर स्पष्टता की आवश्यकता है। भारत में, हमने परंपरागत रूप से व्यापार नीति को केवल इम्पोर्ट नीति के रूप में देखा है। लेकिन यह एक्सपोर्ट नीति और इम्पोर्ट नीति, दोनों का संयोजन होना चाहिए। जब तक हम एक्सपोर्ट नहीं बढ़ाते, हम इम्पोर्ट नहीं बढ़ा सकते हैं। 

आपके हिसाब से मांग को बढ़ाने के लिए ऐसे कौन से तीन उपाय हैं जो सरकार द्वारा तुरंतउठाए जाने की जरूरत है, खासकर इस मुश्किल समय में?

सबसे पहले सरकार को निवेशकों और परिवारों का विश्वास बहाल करना होगा। दूसरा, न केवल सार्वजनिक मांग बल्कि, निजी मांग को प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है। तीसरा, असमानता को कम करना, गरीबी को कम करना और इसके लिए आवश्यक हो तो करों में वृद्धि की जा सकती है।

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