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बिलाशक सबका विश्वास ही हमारा मंत्र

“बिहार और गुजरात जैसे अहम राज्यों के प्रभारी, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव भूपेंद्र यादव पार्टी की...
बिलाशक सबका विश्वास ही हमारा मंत्र

“बिहार और गुजरात जैसे अहम राज्यों के प्रभारी, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव भूपेंद्र यादव पार्टी की सांगठनिक रणनीति के अहम किरदारों में एक माने जाते हैं। लोकसभा चुनावों में भारी जीत के बाद आउटलुक के एसोसिएट एडिटर प्रशांत श्रीवास्तव से हुई उनकी बातचीत के अंशः”

क्या इतनी बड़ी जीत का अंदाजा था?

प्रधानमंत्री ने जिस भरोसे से चुनाव प्रचार में कहा था कि अबकी बार 300 के पार। उसे देखते हुए हम नतीजों को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थे।

इसके लिए संगठन की तैयारी क्या था?

पांच साल पहले पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के नेतृत्व में 10 करोड़ लोगों को जोड़ने के लिए सदस्यता अभियान शुरू हुआ था। उसमें कोशिश थी कि पार्टी में समाज के सभी वर्गों, क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व हो। इसके लिए लोगों ने छुट्टियां लेकर काम किया। इसी वजह से संगठन सरकार की नीतियों को जन-जन तक पहुंचाने में सफल रहा।

बिहार, महाराष्ट्र में गठबंधन सहयोगियों को तरजीह देने के पीछे क्या रणनीति थी?

जनता दल यूनाइटेड और भाजपा स्वाभाविक सहयोगी हैं। लालू यादव की अराजकता और भ्रष्टाचार के खिलाफ दोनों दलों ने मिलकर लड़ाई लड़ी है। इसी तरह दूसरे राज्यों में क्षेत्रों की आवश्यकता के आधार पर गठबंधन हुआ। भाजपा के विस्तार के साथ-साथ एनडीए की मजबूती इसका परिणाम है।

कांग्रेस ने कई राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी, लोकसभा चुनाव में भाजपा उस चुनौती से कैसे निपटी?

 2016-17 में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड में कांग्रेस सरकारों को या फिर उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार और त्रिपुरा में वाम मोर्चा की सरकार को हार का सामना करना पड़ा। गुजरात में तो 25 साल सरकार चलाने के बाद भी भाजपा जीती। कुछ राज्यों में हम हारे, लेकिन लोकसभा चुनाव मोदी सरकार के कामकाज पर था, जिसका लाभ मिला।

पंजाब और दक्षिण के कई राज्यों में ऐसी सफलता क्यों नहीं मिली?

सफलता न मिलने के स्थानीय और दूसरे भी कई कारण हैं। इसकी समीक्षा की जाएगी।

उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन को मजबूत माना जा रहा था, क्या रणनीति रही जिससे एनडीए 64 सीटें जीत गया?

लोकतंत्र में कभी ऐसा नहीं होता है कि कोई जाति, एक पार्टी और परिवार की बपौती बन जाए। उत्तर प्रदेश के लोगों को समझ में आ गया है कि जाति की राजनीति करने वाले केवल सत्ता में बने रहने की जुगत में रहते हैं। इसीलिए हमने सपा-बसपा-रालोद के गठबंधन को महामिलावट कहा। भाजपा ने हमेशा लोगों की आकांक्षाओं को अपने साथ जोड़ा इसी का परिणाम है कि हमें जीत मिली।

लेकिन चुनावों में प्रधानमंत्री के भाषणों में करीब 70 फीसदी बातें राष्ट्रवाद और सुरक्षा के इर्द-गिर्द ही रहीं?

मुझे तो इसका उलटा लगता है। उनकी 70 फीसदी बातें विकास पर कें‌द्रित थीं। हमने संकल्प पत्र के आधार पर कृषि, शिक्षा, आधारभूत ढांचे, महिला, समावेशी विकास वगैरह पर चुनाव लड़ा।

अर्थव्यवस्था में मंदी का दौर है, उसके बावजूद पार्टी ने कैसे जीत हासिल कर ली?

जब 2014 में एनडीए की सरकार बनी थी तो भारतीय अर्थव्यवस्था में कई तरह के संकट थे, आज पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, बैंकों में एनपीए की समस्या कम हुई है। इस अवधि में एयरपोर्ट की संख्या 65 से बढ़कर 101 हो गई, हाईवे दोगुने हुए, पोर्ट क्षमता तीन गुना हो चुकी है, कृषि उत्पादन बढ़ा, 17 करोड़ लोगों को मुद्रा योजना का लाभ मिला, 35 करोड़ के जनधन खाते खुल गए। ऐसे में मंदी की बातों में दम नहीं है।

अल्पसंख्यकों के मन में जो संशय है, उसे कैसे खत्म करेंगे?

जो भी विकास के कार्य हुए हैं, उसमें किसी तरह का जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं हुआ है। इसी भरोसे को बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री ने “सबका विश्वास” की बात कही है। कोई इस पर शंका न करे।

पश्चिम बंगाल में सफलता के बाद ऐसे कयास हैं कि भाजपा वहां 2021 से पहले सरकार बना सकती है?

जनता ने ममता बनर्जी को सबक दिया है कि हिंसा से राजनीति नहीं चल सकती है। भाजपा के अलावा कांग्रेस और विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं के साथ भी हिंसा हुई है। सरकार बनाने की बात है तो पार्टी हमेशा लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करती है।

कश्मीर को लेकर पार्टी का क्या रुख है?

पार्टी ने हमेशा ही लोकतंत्र के आधार पर कश्मीर में शांति की बहाली की बात की है। हमने पीडीपी के साथ सरकार बनाई थी। आगे भी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का पालन किया जाता रहेगा।

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