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अजीब-सी खबरों पर मत जाइए, सब सामान्य है: प्रकाश जावड़ेकर

बकौल केंद्र सरकार पहले सौ दिन ऐतिहासिक फैसलों के रहे, लेकिन विपक्ष की नजर में सरकार का प्रदर्शन...
अजीब-सी खबरों पर मत जाइए, सब सामान्य है: प्रकाश जावड़ेकर

बकौल केंद्र सरकार पहले सौ दिन ऐतिहासिक फैसलों के रहे, लेकिन विपक्ष की नजर में सरकार का प्रदर्शन ज्यादातर मोर्चों पर निराशाजनक रहा है। इस फेहरिस्त में कश्मीर से लेकर अर्थव्यवस्था तक शामिल है। केंद्रीय सूचना-प्रसारण, वन और पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के मुताबिक मीडिया निराशाजनक खबरों को ज्यादा तूल दे रहा है, जीडीपी में गिरावट उतार-चढ़ाव के दौर का मामला है, हालात उतने बुरे नहीं हैं। जाहिर है, उनके पास सरकार की उपलब्धियों का अच्छा-खासा हिसाब है। कश्मीर के हालात, अर्थव्यवस्था की चुनौतियों, विपक्ष के नेताओं पर बदले की भावना से सरकारी एजेंसियों की कार्रवाइयों के आरोपों जैसे मामलों पर उनसे संपादक हरवीर सिंह और एसोसिएट एडिटर प्रशांत श्रीवास्तव ने विस्तृत बातचीत की। कुछ अंशः

पहले सौ दिन में सरकार ने कौन से फैसले लिए, जिनका राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक स्तर पर असर होगा?

जब से देश आजाद हुआ, देशवासियों का सपना था कि भारत एक हो। सरदार पटेल ने रियासतों के विलय से इस काम को पूरा किया। लेकिन कश्मीर में अनुच्छेद 370 के कारण एक अलगाववाद की भावना उठती रहती थी। अनुच्छेद 370 की वजह से कश्मीर की जनता को अनेक अधिकार और योजनाओं का लाभ भी नहीं मिलता था। राज्य का विशेष दर्जा खत्म होने और उसे जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित करने से वहां के लोगों को नए सिरे से विकास का मौका मिला है। इसी तरह गैर-कानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून (यूएपीए) में संशोधन के जरिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) को विदेश में जांच का अधिकार मिलना भी एक बड़ा कदम है। आर्थिक कदमों में सरकार ने पांच लाख करोड़ डॉलर की इकोनॉमी बनाने का पूरा खाका तैयार किया है। 10 सार्वजनिक बैंकों का विलय और इन्‍फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र के लिए पांच साल में 100 लाख करोड़ रुपये खर्च करने का ऐलान भी अहम है। सामाजिक क्षेत्र में सुधार की बात है, तो तीन तलाक कानून, 400 से ज्यादा एकलव्य विद्यालय, असंगठित मजदूर-किसानों के लिए पेंशन योजना, मेडिकल कमीशन बिल और मोटर व्हीकल एक्ट में संशोधन जैसे बड़े कदम हैं।

जम्मू-कश्मीर मामले पर विपक्ष का आरोप है कि यह राजनैतिक फायदे के लिए उठाया गया कदम है। वहां अभी भी नागरिक अधिकारों पर कई प्रतिबंध हैं। स्थिति कब सामान्य होगी?

कश्मीर का फैसला राजनैतिक फायदे के लिए नहीं है। यह कश्मीरियों को अधिकार देने के लिए उठाया गया कदम है। कश्मीर में कर्फ्यू जैसी स्थिति नहीं है। पूरे जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में केवल 14 पुलिस स्टेशन ऐसे हैं जहां धारा 144 लागू है। बाकी किसी भी क्षेत्र में प्रतिबंध नहीं है। यातायात सामान्य है, सभी लैंडलाइन फोन चालू हैं। स्कूल खुले हैं, बाजार में किसी वस्तु की कमी नहीं है। नेफेड के जरिए कश्मीर के किसानों से सेब खरीदने का फैसला किया है, स्थिति सामान्य है। मोबाइल, इंटरनेट सेवाओं की बहाली पर स्थितियों के अनुसार जल्द फैसला होगा।

कश्मीर को लेकर विदेशी मीडिया खासतौर से अमेरिकी और ब्रिटिश मीडिया की रिपोर्ट काफी अलग आ रही है?

प्रेस को अपना काम करने की पूरी आजादी है। लेकिन झूठ ज्यादा दिन नहीं चलता है। जिन्होंने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने के बाद शुरू के एक महीने झूठ लिखा, उनके भी सुर पिछले 15 दिनों में काफी बदल गए हैं। हमने दूरदर्शन के जरिए ‘कश्मीर का सच’ रिपोर्ट दिखाई, बाकी चैनल भी दिखा रहे हैं। कश्मीर के लोग ही वहां की सामान्य स्थिति की बात कर रहे हैं। कोई भी वहां जा सकता है। मुझे आश्चर्य उस वक्त हुआ जब किसी ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला से मिलने के लिए आवेदन किया। वे न तो गिरफ्तार हैं और न ही नजरबंद हैं। (इंटरव्यू लेते वक्त तक फारूक अब्दुल्ला पर पीएसए लगाने की सूचना नहीं थी) फिर वे क्यों नहीं बाहर निकल रहे हैं, उन्हीं को बताना होगा।

जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की तैयारी है, विपक्ष का आरोप है कि भाजपा इसके जरिए राज्य में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है?

केरल से पंजाब तक, कच्छ से कामरूप तक परिसीमन का एक ही नियम है। अगर यह देश के दूसरे हिस्सों में किया जाता है तो किसी को कोई आपत्ति नहीं है, तो जम्मू-कश्मीर पर आपत्ति क्यों?

कश्मीर पर फैसला अगर राजनैतिक नहीं है, तो फिर पार्टी को प्रचार की जरूरत क्यों है?

राजनैतिक प्रचार का मुद्दा नहीं है, यह राष्ट्रीयता का मुद्दा है। पूरे देश में लोग जम्मू-कश्मीर के फैसले से खुश हैं। जहां भी जनसंपर्क पर जा रहा हूं, वहां लोगों का समर्थन मिल रहा है। लेकिन कोई गलतफहमी पैदा कर रहा है, तो उसे दूर करना भी जरूरी है।

क्या जम्मू-कश्मीर की तरह जिन राज्यों को अनुच्छेद 371 के तहत विशेष दर्जा मिला हुआ है, उनमें भी बदलाव किया जाएगा?

गृह मंत्री अमित शाह ने स्पष्ट कर दिया है कि अनुच्छेद 371 के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं होगी। यह समझना जरूरी है कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 371 के आधार पूरी तरह अलग हैं।

सरकार के लिए इस समय सबसे बड़ी चुनौती अर्थव्यवस्था की बिगड़ती हालत है ?

इकोनॉमी की गति हमेशा एक जैसी नहीं रहती है। उसमें उतार-चढ़ाव होता रहता है। हमें यह भी समझना होगा कि पूरी दुनिया की ग्रोथ कम हुई है। अमेरिका और चीन में ट्रेड वॉर चल रही है। उससे हम अछूते नहीं हैं। लेकिन एक बात स्पष्ट है कि इकोनॉमी में ढांचागत समस्या नहीं है। हर देश में ऐसी स्थिति आती है। उस वक्त सरकार का काम होता है कि वह फटाफट फैसले ले। हम भी ऐसा ही कर रहे हैं। जीएसटी में लगातार बदलाव कर सुधार किया। ऑटो सेक्टर और स्टॉक मार्केट की समस्याओं को दूर किया। आगे भी कदम उठाए जाएंगे।

रोजगार के मोर्चे पर स्थिति खराब है?

कभी-कभी खबरें पढ़कर अजीब-सा लगता है। पिछले पांच साल में आइटी इंडस्ट्री में 18 लाख लोगों को नए सिरे से नौकरी मिली। इसे मीडिया खबर नहीं बनाता, लेकिन 18 हजार की नौकरी चली गई, तो वह खबर बन जाती है। इसी तरह मुद्रा योजना में सभी ने आज मान लिया कि 20 करोड़ लोगों को फायदा मिला है। इसमें से सात-आठ करोड़ नए अवसर पैदा हुए। हमने मनरेगा का खर्च दोगुना डबल कर दिया। कुल मिलाकर सभी की स्थिति में सुधार हुआ है। अभी ऐसी स्थिति नहीं है कि कोई कुछ खरीदना चाहे तो वह खरीद नहीं सकता। कई बार सेंटीमेंट का असर होता है।

क्या सरकार कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए बड़े कदम उठाएगी?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्पष्ट विजन है कि 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करना है। यह लक्ष्य कुछ समय पहले तक असंभव लगता था, वह अब संभव लगने लगा है। सरकार ने समग्र नीति अपनाई है। जमीन के बेहतर उपयोग के लिए प्रति बूंद, अधिक फसल, नीम कोटिंग यूरिया, स्वॉइल हेल्थ कार्ड और फसल बीमा योजना जैसी पहल की गई है। हॉर्टिकल्चर को बढ़ावा देना, मधुमक्खी पालन, मछली पालन, डेयरी आदि के लिए कदम उठाए हैं। किसानों को मिलने वाला कर्ज अपने अधिकतम स्तर पर है। हम सही दिशा में बढ़ रहे हैं।

भ्रष्टाचार के खात्मे के नाम पर विपक्ष का आरोप है कि सरकार राजनीतिक बदले की भावना से काम कर रही है। सोनिया गांधी ने आरोप लगाया है कि सरकार भारी जनादेश का दुरुपयोग कर रही है।

सरकार ऐसा कुछ नहीं कर रही है। हमने केवल जांच एजेंसियों को अपना काम करने से रोका नहीं है। आज अगर नीरव मोदी, चिदंबरम और कमलनाथ के रिश्तेदार जेल में हैं, दीपक तलवार को भारत लाया गया है, तो यह न्यायालय के जरिए हो रहा है। प्राथमिक रूप में न्यायालय ने माना है कि इन लोगों ने आर्थिक अपराध किया । इसमें क्या राजनैतिक बदले की भावना है? अभी जो लोग गिरफ्त में हैं, मुझे तो नहीं लगता है कि ये कोई संत हैं? 

यह भी आरोप लगता है कि सरकार मीडिया के काम-काज में दखल दे रही है?

कोई दखल नहीं है। जिसको जो स्टोरी करनी है वह कर रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद कहते हैं, “सरकार की तीखी आलोचना होनी चाहिए जिससे पता चले कहां गलत हो रहा है।” लेकिन अगर कुछ अच्छा हो है तो उसे भी बताना चाहिए।

महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड में चुनाव होने वाले हैं। पार्टी किस आधार पर वोट मांगेगी?

केंद्र सरकार के पहले पांच साल के काम-काज और नई सरकार के पहले 100 दिन में जो काम किए गए हैं, उसके आधार पर वोट मांगेंगे। साथ ही राज्य सरकार द्वारा किए गए काम-काज के आधार पर हम जनता के बीच जाएंगे।

आपके पास पर्यावरण मंत्रालय है जिसकी अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने में अहम भूमिका है।

पिछले पांच साल में सरकार ने प्रोजेक्ट क्लीयरेंस प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया है। भ्रष्ट्राचार कम हुआ है। पहले की सरकार में क्लीयरेंस में औसत 640 दिन का समय लगता था। इसे हमने घटाकर 110 दिन किया है। राज्य स्तर पर परिवेश प्रणाली शुरू की है।

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