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लखनऊ पुलिस ने ‘हिटलर कैंप’ में एक यहूदी की तरह प्रताड़ित किया: सदफ जफर

सामाजिक और कांग्रेस कार्यकर्ता, सदफ जफर को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का...
लखनऊ पुलिस ने ‘हिटलर कैंप’ में एक यहूदी की तरह प्रताड़ित किया:  सदफ जफर

सामाजिक और कांग्रेस कार्यकर्ता, सदफ जफर को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) का विरोध करने के कारण गिरफ्तार होने के 19 दिन बाद जमानत पर रिहा किया गया। आउटलुक की प्रीथा नायर को दिए साक्षात्कार में, अभिनेता-कार्यकर्ता जफर ने पुलिस हिरासत, सीएए और छात्रों के विरोध प्रदर्शन में अपने कड़वे अनुभव के बारे में बात की। प्रस्तुत है प्रमुख अंशः

आपको सीएए का हो रहे विरोध प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तार किया गया था। उस दिन हुई घटनाओं के बारे में बताइए।

19 दिसंबर को, जब सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का एलान किया गया था तो  हमने 'परिवर्तन चौक' पर एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने का फैसला किया। अचानक, लड़कों का एक ग्रुप खोपड़ी की टोपी पहने हुए आया और पथराव करने लगा। मुझे यह अजीब लगा कि धारा 144 लागू होने के बावजूद पुलिस ईंट और पेट्रोल ले जाने वाले प्रदर्शनकारियों के एक ग्रुप का पता नहीं लगा सकी। मैं जिम्मेदारी के साथ कह सकती हूं कि पथराव सुनियोजित था। एक और अजीब बात यह हुई कि जब आगजनी शुरू हुई, तो किसी व्यक्ति के द्वारा प्रदर्शन स्थल पर राज्य परिवहन की बस चलाई गई। पुलिस खड़ी रही लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की।

जब मैं अपने फोन में हो रहे दंगों और पुलिस की विफलता को रिकॉर्ड कर रही थी, तो मुझे हिरासत में ले लिया गया। पुरुष और महिला कांस्टेबलों ने मुझे बार-बार थप्पड़ मारे और मुझे डंडों से पीटा। मेरे शरीर पर अभी भी निशान हैं।

आपका आरोप है कि पुलिस हिरासत में आपको प्रताड़ित और अपमानित किया गया।

मुझे प्रदर्शन स्थल से हजरतगंज के महिला थाने ले जाया गया। रात में, मैं उस कमरे से पुरुष बंदियों को रोते हुए सुन सकती थी जहां उन्हें रखा गया था। जब भी पुलिसकर्मी पास होते, वे मेरा नाम पूछते और मुझे 'पाकिस्तानी' कहते। वे मुझे गाली दे रहे थे और कहा कि "मैं यहाँ की खाती हूँ, लेकिन वफादारी पाकिस्तान की करती हूँ।" यह बहुत घटिया वाक्या था। उन्होंने हमेशा मुझे 'तुमलोग’ के रूप में संबोधित किया। उस प्रताड़ना से अधिक, यह ‘तुमलोग’ शब्द था जिसने मुझे पीड़ा दी। मैं स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार से आती हूं। पुलिस स्टेशन में एक महिला कांस्टेबल ने मेरे बाल खींचे, मुझे थप्पड़ मारा और मेरे चेहरे को खरोंच दिया। कांस्टेबल से लेकर किसी भी वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने अपनी वर्दी पर नेमप्लेट नहीं लगा रखा था। मुझे लगा कि मुझे हिरासत में लिया गया है और मेरे परिवार या दोस्त जल्द ही मुझे लेने आएंगे। लेकिन रात के 8 बजते ही मुझे डर लगने लगा। मैंने पुलिस से अपना फोन मांगा। मैंने उनसे बार-बार अपने परिवार को सूचित करने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।

आपने यह भी कहा कि एक वरिष्ठ पुरुष अधिकारी ने आपके पेट में लात मारी जिसकी वजह से रक्त का बहाव होने लगा।

हाँ, रात के 11 बजे एक महिला कांस्टेबल मुझे एक अधिकारी के कमरे में ले गई। जिसने कहा, वह एक पुलिस महानिरीक्षक है। कमरे में घुसने से पहले ही वह मुझे गाली देने लगा। उन्होने कहा, "जब सरकार आपके लिए इतना कुछ कर रही है, फिर भी आप क्यों ये सब कर रही हैं?"

तब उन्होंने महिला कांस्टेबल से धारा 307 के तहत मुझे जेल में डालने के लिए कहा। उस अधिकारी ने कांस्टेबल को मुझे थप्पड़ मारने के लिए कहा। फिर उसने उठकर मेरे बाल खींचे, मेरे पेट और घुटने में लात मारी। मुझे तब पता चला कि मेरा बुरा सपना शुरू हो गया है। मैं हिल गई । मैं खुद को बहुत बीमार और अपमानित महसूस कर रही थी।

जब मैंने असहज महसूस किया, तो मैंने तुरंत चिकित्सा सुविधा देने का अनुरोध किया। मुझे तब तक पानी भी नहीं दिया गया था। वे मुझे एक सामान्य अस्पताल में ले गए। उसी रात, मुझे खून बहने लगा। मेरी पैंट पूरी तरह खून से लथपथ हो गई, और उन्होंने मुझे सैनिटरी नैपकिन भी नहीं दिया। मुझे पानी मांगने में भी डर लग रहा था क्योंकि मुझे लगता था कि मुझे फिर से पीटा जाएगा। मुझे बाद में पता चला कि पुरुष पुलिस महानिरीक्षक नहीं था, बल्कि एक वरिष्ठ अधिकारी था।

आपके मित्र और कार्यकर्ता दीपक कबीर को पुलिस स्टेशन में आपसे मिलने के दौरान हिरासत में लिया गया था।

मेरी बहन के अलावा कोई नहीं जानता था कि मैं कहां हूं। अगले दिन लगभग 11 बजे, मेरे दोस्त कबीर मुझे ढूंढते हुए स्टेशन आए। उसके साथ मारपीट की गई और मेरे सामने उसके कपड़े उतार दिए गए। मुझे अमानवीय और अपमानित महसूस हुआ। मुझे भूख लगी थी और खून बह रहा था। जब

जेल पहुंचे थे, तो मैंने छोटे लड़कों को चोटिल और टांके के साथ देखा था। वे लोग मेरे सामने उसकी पट्टी कर रहे थे।

आपने ऐसा क्यों कहा कि उत्तर प्रदेश पुलिस सांप्रदायिक है और आपको हिटलर कैंप में एक यहूदी की तरह महसूस हुआ?

मैंने हिटलर के जर्मनी में एक यहूदी की तरह महसूस किया। यह चौकाने वाली बात है कि उन्होने मुझे पाकिस्तानी कहा, प्रताड़ित किया, और मेरे सामने किसी आदमी को पट्टी बांधी। मेरी मुस्लिम पहचान ही एक कारण है जिसकी वजह से मेरे साथ इस तरह का व्यवहार किया गया। मैं एक सामाजिक कार्यकर्ता, कवि और थियेटर में काम करने वाली हूं। अब तक, मेरी पहचान मेरे लिए कोई मायने नहीं रखती थी। लेकिन अब मेरा धर्म मुझे एक व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है जो मुझे परेशान कर रहा है। 19 दिनों मैंने जेल में बिताया, लेकिन वो पुलिस कस्टडी की एक रात की तुलना में कम कष्टदायक रहें। मैं अपने बच्चों से 11 दिन बाद मिली हूं। दो दिनों के लिए तो मेरा परिवार मेरे ठिकाने के बारे में कुछ जानते ही नहीं थे।

मैं चाहती हूं कि लोग इस बात को जानें कि संविधान के रक्षक कितने क्रूर और सांप्रदायिक हैं। मेरे पास सबूत हैं कि पुलिस अपने कर्तव्य से कैसे पीछे हटी। क्या उनके पास कोई सबूत है कि मैंने नियमों का उल्लंघन किया है? मेरे खिलाफ दंगा और आगजनी के तेरह-चौदह मामले दर्ज हैं। पुलिस पहले कभी इतनी निर्दोष और बेशर्म नहीं थी। यह फासीवाद है।

क्या आप अपनी लड़ाई जारी रखेंगी?

इस डर ने मेरे अंदर के सारे डर को निकाल दिया है। आप केवल एक बार मर सकते हैं। मैं अंत तक लड़ती रहूंगी। हम जेल में बंद लोगों की मदद करने की कोशिश कर रहे हैं। वे लंबे समय तक लोगों को गुमराह नहीं कर सकते, क्योंकि सीएए मानवता के हित का कानून नहीं है। यह एक अलग बात है कि मेरी गिरफ्तारी और जो आक्रोश हुआ, वह पुलिस और सरकार के सांप्रदायिक घिनौने और सांप्रदायिक एजेंडे पर एक तमाचा था।

आपको कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी और फिल्म निर्माता मीरा नायर सहित कई तपको से समर्थन हासिल हुआ है?

मैं भाग्यशाली हूं कि प्रियंका गांधी, मीरा नायर और कई अन्य लोग मेरे साथ आए। मैं दर्जी, दुकानदार, छात्र जैसे लोगों के बारे में अधिक चिंतित हूं, जिन्हें बिना किसी कारण के पकड़ लिया गया था। मैं अपने बच्चों को गले लगाने या ठीक से सोने में सक्षम नहीं हूं। मैं जेल में बंद लोगों के लिए दोषी महसूस करती हूं। हमें जमानत के लिए एक लाख रुपये देने होंगे। कितने लोग इतना पैसा दे सकते हैं?

जो छात्र प्रदर्शन कर रहे हैं, क्या आप एक उम्मीद महसूस कर रही हैं?

छात्र लोकतंत्र के मार्गदर्शक हैं और अब वे मेरी उम्मीद हैं। मैं हो रहे विरोध को देखकर प्रेरित और उर्जावान महसूस करती हूं। सविनय अवज्ञा हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।

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