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इंटरव्यू। हम नागरिकता साबित करने वाले कागज नहीं दिखाएंगे: चंद्रशेखर आजाद

तिहाड़ जेल से रिहा होने के एक दिन बाद, भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद को उम्मीद है कि उनको जमानत...
इंटरव्यू। हम नागरिकता साबित करने वाले कागज नहीं दिखाएंगे: चंद्रशेखर आजाद

तिहाड़ जेल से रिहा होने के एक दिन बाद, भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद को उम्मीद है कि उनको जमानत देने वाली दिल्ली की अदालत उन पर लगे प्रतिबंध भी हटा देगी। आजाद को दिल्ली में नागरिकता कानून के विरोध के दौरान हिंसा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। अदालत ने उन्हें इस शर्त के साथ जमानत दी कि वह दिल्ली विधानसभा चुनाव खत्म होने तक कोई विरोध प्रदर्शन नहीं करेंगे। आउटलुक के साथ एक विशेष साक्षात्कार में, भीम आर्मी प्रमुख ने प्रीता नायर से कहा कि वे अपनी लड़ाई तब तक जारी रखेंगे जब तक केंद्र विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम वापस नहीं लेता। साक्षात्कार के कुछ अंशः

अदालत ने आपको एक महीने के लिए दिल्ली से बाहर रहने का निर्देश दिया है। क्या आप राष्ट्रीय राजधानी और शाहीन बाग की यात्रा पर प्रतिबंध से निराश हैं?

पूरे देश के लोग यहां विरोध प्रदर्शन में भाग ले रहे हैं। फिर सिर्फ मुझे ही एक महीने के लिए दिल्ली आने से क्यों रोका जा रहा है? आखिर मैंने किया क्या है? सिर्फ इसलिए कि मैं एक दलित हूं? मैंने अदालत से प्रतिबंध हटाने और इस पर सकारात्मक निर्णय की अपील की है। शाहीन बाग पर समर्थन करने वाली हमारी पहली पार्टी थी। इसके बाद ही इसकी चर्चा शुरू हुई। शाहीन बाग के लोग मुझे प्यार करते हैं और उनकी दुआएं हमेशा मेरे साथ हैं। मैं उनकी लड़ाई का हिस्सा बनना चाहता हूं, उनकी पीड़ा साझा करना चाहता हूं। यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं उनकी लड़ाई को मजबूती दूं।

दिल्ली चुनाव के बाद ही आपको यहां आने की अनुमति है, क्या भाजपा के साथ आपकी सीधी लड़ाई है?

बीजेपी जानती है कि मैं उन्हें चुनौती दे सकता हूं। 2017 में ये लोग मुझे लगभग साल भर के लिए जेल में डाल चुके हैं। मेरी उपस्थिति से उन्हें चुनाव जीतने में दिक्कत होगी। वो जो करना चाहते हैं उन्हें करने दीजिए। इस देश में दलितों के भी अधिकार हैं। मेरी लड़ाई हमारे संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करने को लेकर है और मैं संविधान से ही इसके लिए ताकत हासिल करूंगा।

भाजपा का आरोप है कि शाहीन बाग विरोध प्रदर्शन के लिए फंडिंग की जा रही है और केवल मुस्लिम ही नागरिकता कानून का विरोध कर रहे हैं

यह बहुत शर्मनाक है जब भाजपा वाले कहते हैं कि शाहीन बाग में विरोध प्रदर्शन कर रही महिलाओं को 500 रुपये रोज दिए जाते हैं। यह केवल भाजपा की रैलियों में ही होता है। हम यहां विरोध के लिए इसलिए हैं क्योंकि हमारा अस्तित्व खतरे में है। सीएए से मुसलमानों को बाहर रख कर सरकार देश के लिए दिए गए उनके बलिदान को भूल रही है। यह कानून नागरिकों के रूप में हमारे अधिकारों को चुनौती देता है और हम सरकार की विभाजनकारी नीति के खिलाफ लड़ रहे हैं। और हां शाहीन बाग के प्रदर्शनकारी कुर्सियों पर नहीं बैठे हैं...

आपको आपके भाषण के माध्यम से हिंसा भड़काने के लिए गिरफ्तार किया गया था...

मुझे संविधान की प्रस्तावना पढ़ने के लिए गिरफ्तार किया गया था। इससे साफ जाहिर है कि भाजपा सरकार संविधान को मनुस्मृति से बदलने की कोशिश कर रही है। संविधान पढ़ना क्या अब जुर्म हो गया है? क्या यही राष्ट्रवाद है? आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का आज का ही बयान है कि वे लोग सीएए लागू करने से पीछे नहीं हटेंगे और यह देश के हित में है। यह चिंताजनक है क्योंकि बयान प्रधानमंत्री या गृह मंत्री की ओर से नहीं बल्कि आरएसएस की तरफ से आ रहा है। इससे साफ पता चलता है कि सरकार आरएसएस चला रहा है। आरएसएस का एजेंडा हमेशा से संविधान के खिलाफ था। उन्होंने तो हमारे राष्ट्रीय झंडे को भी स्वीकार नहीं किया। और अब ये लोग संविधान पढ़ने के लिए लोगों को जेल में डाल रहे हैं।

जमानत मिलने के बाद आपने कहा आप रोज संविधान पढ़ेंगे...

यह लड़ाई हमारे संविधान को बचाने की है। दुनिया हमारे संविधान की तारीफ करती है। यह विविध धर्म, जाति, भाषा और कई धर्मों के लोगों को एकजुट करता है। अब संविधान के मूल सिद्धांतों के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश की जा रही है। हम यह होने नहीं देंगे। मेरी लड़ाई संविधान और इसकी भावना को बनाए रखने की है।

सीएए और प्रस्तावित एनआरसी के खिलाफ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन के मद्देनजर इस गणतंत्र दिवस का क्या महत्व है?

यह देखकर खुशी होती है कि महिलाओं और छात्रों के नेतृत्व में हमारे समाज का एक बड़ा वर्ग हमारे संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए विरोध कर रहा है। अब शिक्षित समाज विरोध कर रहा है। जामिया मिल्लिया इस्लामिया और एएमयू के छात्रों को पीटने का अधिकार पुलिस को किसने दिया है? जेएनयू के छात्रों पर जब भीड़ ने हमला किया तब वे मूक दर्शक की तरह खड़े थे। यह महत्वपूर्ण समय है क्योंकि युवा अब भेदभावपूर्ण कानून और छात्रों पर होने वाले हमलों के खिलाफ सड़क पर उतर रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में जल्द ही राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) की प्रक्रिया शुरू होगी। क्या चंद्रशेखर अपने कागजात दिखाएंगे?

नहीं। हम कागज नहीं दिखाएंगे, चाहे जो हो जाए। हम तब तक अपना आंदोलन जारी रखेंगे जब तक सरकार सीएए को वापस नहीं ले लेती।

आपकी पार्टी की दिल्ली चुनाव लड़ने की योजना थी, अब क्या है?

आगे की कोई भी कार्रवाई करने से पहले हम अदालत के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। हमारी प्राथमिकता सीएए, एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ आंदोलन को मजबूत करना है। राजनीति इंतजार कर सकती है।

सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ उत्तर प्रदेश में पुलिस बर्बरता की खबरें थीं। क्या आप यूपी में नागरिकता कानून के खिलाफ आंदोलन करेंगे?

मैं अदालत के फैसले का इंतजार कर रहा हूं। धरने और प्रदर्शनों पर रोक है। इस बारे में मैं अपने वकीलों से सलाह लूंगा। इसके बाद, जिसने भी आंदोलन को समर्थन दिया है, हम उनके साथ खड़े होंगे।

विपक्षी दल अब भी सीएए, एनआरसी और एनपीआर पर एकजुट नहीं हो पा रहे हैं। मायावती और समाजवादी पार्टी (सपा) हालिया विपक्षी बैठक से दूर रहे। क्या आप किसी पार्टी से हाथ मिलाएंगे?

विपक्षी दलों की अनुपस्थिति ने ही लोगों को सड़कों पर आने के लिए मजबूर किया। जनता विपक्षी दलों का कर्तव्य निभा रही है। फिलहाल हमारी पार्टी किसी भी पार्टी के साथ मंच साझा करने नहीं जा रही है। इस लड़ाई में हम छात्रों और महिलाओं के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़े हैं।

जेल में आपका स्वास्थ्य चिंता का विषय रहा है। अदालत को आपके इलाज के लिए हस्तक्षेप करना पड़ा...

मेरी तबियत अब भी ठीक नहीं है और मुझे आराम की जरूरत है। मुझे अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना है और सहारनपुर में अपने परिवार से मिलना है। मैं लंबे समय से उनसे नहीं मिला हूं।

2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसके लिए क्या आपके पास कोई दीर्घकालिक रणनीति है?

हम अभी चुनाव के बार में नहीं सोच रहे।

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