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इंटरव्यू : अभिनेता गोपाल कुमार सिंह

इन दिनों हिन्दी सिनेमा में डिजिटल क्रांति ने अद्भुत बदलाव किया है। ओटीटी प्लेटफॉर्म के आगमन से हिंदी...
इंटरव्यू : अभिनेता गोपाल कुमार सिंह

इन दिनों हिन्दी सिनेमा में डिजिटल क्रांति ने अद्भुत बदलाव किया है। ओटीटी प्लेटफॉर्म के आगमन से हिंदी सिनेमा में छोटी और सार्थक फिल्मों को मंच और दर्शक मिल रहे हैं। यह सिनेमा के लिए शुभ संकेत हैं। बीते दिनों निर्देशक मधुर भंडारकर की फिल्म इंडिया लॉकडाउन जी 5 एप पर रिलीज हुई। इसे दर्शकों और समीक्षकों का साथ मिल रहा है। फिल्म में अभिनेता गोपाल कुमार सिंह का काम सराहा जा रहा है। फिल्म की सफलता को लेकर गोपाल कुमार सिंह से आउटलुक हिन्दी के मनीष पाण्डेय ने बातचीत की। 

 

 

इंडिया लॉकडाउन को दर्शकों की अच्छी प्रतिक्रिया मिली है, ओटीटी माध्यम से छोटी और सार्थक फिल्मों को जिस तरह से अवसर मिल रहा है, उसे किस तरह से देखते हैं ? 

 

 

इंडिया लॉकडाउन को मिली इस प्रतिक्रिया के लिए मैं दर्शकों का आभारी हूं। ओटीटी प्लेटफॉर्म अच्छी कहानियों के लिए वरदान साबित हुआ है। अच्छी कहानियों को मंच मिल रहा है। निर्देशकों और कलाकारों को प्रयोग करने का अवसर मिल रहा है। इसके साथ ही दर्शकों को भी कॉन्टेंट में विविधता मिल रही है। वह अब अपनी पसन्द के लिए हिसाब से कॉन्टेंट देख रहे हैं। यह स्थिति बहुत सुखद है। 

 

 

 

इंडिया लॉकडाउन में आपका काम सराहा जा रहा है, अभिनय के इस लम्बे सफर में कितनी महत्वपूर्ण होती है इस तरह की सराहना? 

 

 

मैं इंडिया लॉकडाउन के किरदार को निभाते हुए बहुत असहज महसूस कर रहा था। अंदर एक झिझक थी कि महिला से छेड़छाड़ करने वाला किरदार मैं सही से निभा सकूंगा या नहीं। मगर जब फिल्म रिलीज हुई तो नतीजे आश्चर्यजनक थे। इतने वर्षों तक काम करने के बाद, इंडिया लॉकडाउन के किरदार को लेकर मुझे जितने फोन आए और प्रशंसा मिली, इतनी कम ही अवसर पर मिली। लोगों को मेरा काम बहुत पसन्द आ रहा था। एक कलाकार के रुप में सराहना हमेशा ही कलाकार को प्रोत्साहित करती है। मुझे भी सराहना पाकर खुशी और हिम्मत मिली। ऐसा महसूस हुआ कि मेहनत सार्थक हो गई। 

 

 

 

लॉकडाउन से जुड़े अपने निजी अनुभवों को साझा कीजिए ?

 

मेरे लॉकडाउन से जुड़े अनुभव अच्छे नहीं रहे। लॉकडाउन के समय ही मेरे पिताजी की मृत्यु हुई। हालांकि उनकी मृत्यु कोविड से नहीं हुई थी मगर लॉकडाउन के तनाव के दौरान हुई पिताजी की मृत्यु ने मुझे भीतर से झकझोर दिया। मुम्बई में स्थिति खराब थी। कोरोना के सबसे ज्यादा केस मुम्बई में आ रहे थे। पिताजी के अंतिम संस्कार के बाद सड़क मार्ग से मैं अपने पूरे परिवार के साथ अपने गांव चला गया। बिहार में स्थित अपने गांव में मैंने 7 महीने बिताए। इस दौरान देश दुनिया में कोरोना से हो रही मौतों ने मुझे बहुत विचलित किया। मुम्बई में काम ठप पड़ा था। ऐसे में जीवन और भविष्य की चिंताएं लाजमी थीं। इन्हीं सब विचारों में लॉकडाउन का समय बीता। 

 

 

मधुर भंडारकर के साथ आप कई फिल्में कर चुके हैं, उनके साथ काम करने के अनुभव बताइए? 

 

मैंने मधुर भंडारकर के साथ पेज 3, ट्रैफिक सिग्नल और इंडिया लॉकडाउन में काम किया है। पेज 3 और ट्रैफिक सिग्नल को नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है। मधुर भंडारकर मुझे अपना लकी चार्म मानते हैं। मधुर भंडारकर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह अपनी फिल्में बनाते हैं। जिनके कॉन्टेंट, किरदार की जानकारी उन्हें है, वह उसी कहानी को कहते हैं। वह आदित्य चोपड़ा, अनुराग कश्यप या करण जौहर बनने का प्रयास नहीं करते। जिन विषयों पर उनकी पकड़ है, समझ है, उन पर फिल्म बनाते हैं मधुर भंडारकर। यही कारण है कि उनकी फिल्मों में असर होता है और सभी फिल्में दर्शकों को पसंद आती हैं। 

 

 

 

कोई विशेष कहानी, किरदार जिसे निभाने की हसरत दिल में है ?

 

यूं तो मैं हर तरह के किरदार निभाना चाहता हूं मगर मेरी दिली इच्छा है कि जिस तरह के किरदार महान कलाकार प्राण निभाते थे, कुछ उसी तरह के किरदार मैं भी निभाऊं। अगर प्राण साहब जैसे किरदार निभाने का अवसर मुझे मिलेगा तो मैं स्वयं को सौभाग्यशाली मानूंगा।

 

 

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