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इंटरव्यू/ टीएस सिंहदेव: 'स्वास्थ्यकर्मियों के लिए बूस्टर डोज जरूरी, अब चिंतन नहीं बल्कि इसे लागू करें'

देश के कई हिस्सों में अब कोविड 19 के मामलों में वृद्धि देखी जा रही है। हालांकि टीकाकरण अभियान जारी है मगर...
इंटरव्यू/ टीएस सिंहदेव: 'स्वास्थ्यकर्मियों के लिए बूस्टर डोज जरूरी, अब चिंतन नहीं बल्कि इसे लागू करें'

देश के कई हिस्सों में अब कोविड 19 के मामलों में वृद्धि देखी जा रही है। हालांकि टीकाकरण अभियान जारी है मगर कोविड के खतरों के बीच अब 'बूस्टर डोज' की भी बातें शुरू हो चुकी हैं। बीते कुछ दिनों से छत्तीसगढ़ में भी पहले के मुकाबले संक्रमण के मामलों में इजाफा देखा जा रहा है। आउटलुक के अक्षय दुबे 'साथी' से बातचीत में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव कहते हैं कि कम से कम स्वास्थ्यकर्मियों और अग्रिम पंक्ति के योद्धाओं को 'बूस्टर डोज' लगाने का काम शुरू हो जाना चाहिए। उन्होंने कोविड प्रबंधन, टीकाकरण से लेकर छत्तीसगढ़ की हालिया राजनीति पर भी अपनी बात रखी है। इस दौरान सिंहदेव ने अपने दिल्ली दौरे के कारणों को भी रेखांकित किया। प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश-


कोरोना महामारी की दूसरी लहर के अनुभव के बाद अब आगे की स्थिति से निपटने के लिए सरकार की क्या रणनीति है?

आधारभूत सुविधाओं को बढ़ाने से लेकर अस्पताल के बिस्तरों, आईसीयू बिस्तरों, ऑक्सीजन सिलेंडर, वेंटिलेटर, दवाओं, स्टाफ की व्यवस्था आदि पर सरकार का विशेष ध्यान है। दूसरी लहर के दौरान जो कमियां महसूस हुई थी उसी को अब दुरुस्त करने में लगे हुए हैं, इसमें काफी कुछ सफलताएं भी मिली हैं। इसके साथ ही साथ जागरूकता अभियान चलाने पर भी जोर है। लोगों को लगातार जानकारी दे रहे हैं कि वे अपनी सतर्कता में कोई ढिलाई ना बरतें, क्योंकि दूसरे देशों में फिर से मामले बढ़ रहे हैं। चाहे अमेरिका हो, यूके हो, जर्मनी हो या सिंगापुर हो, जहां की व्यवस्थाएं काफी अच्छी मानी जाती रही थी इन देशों में भी फिर से यह घातक महामारी मुंह उठा रही है।


अभी छत्तीसगढ़ के भी अलग-अलग हिस्सों में कोविड-19 के मामलों में वृद्धि देखी गई है, क्या इसे तीसरी लहर की दस्तक कह सकते हैं?

नहीं, अभी इसे हम तीसरी लहर की दस्तक तो नहीं मान सकते लेकिन इसकी संभावनाओं से भी हमें बिल्कुल इनकार नहीं करना चाहिए। ऐसा कहना अभी नासमझी होगी। हालांकि यह बेहद अच्छा होगा कि तीसरी लहर ना आए और मुझे बिल्कुल उम्मीद भी नहीं है कि दूसरी लहर की जैसी तीसरी लहर आएगी। लेकिन फिलहाल संक्रमण के मामलों में वृद्धि की संभावना बिल्कुल बनी हुई है। वायरस ऐसे ही जाने वाला नहीं है। इस दौरान सबसे बड़ी चिंता इस बात की है कि यदि कोई ऐसा म्यूटेशन आ गया जिससे टीकाकरण भी लोगों को सुरक्षित नहीं कर पाया तब स्थिति गंभीर ही जाएगी। लिहाजा अब बूस्टर डोज की चर्चाएं जारी हैं। दुनिया में कई जगह बूस्टर डोज लगाने का काम भी शुरू हो चुका है। इसका मतलब है कि वैक्सीन की दूसरी खुराक का असर एक स्तर पर और एक समय तक है। ऐसे में अब समय आ गया है कि स्वास्थ्यकर्मियों और अग्रिम पंक्ति के योद्धाओं के लिए बूस्टर खुराक देने का काम शुरू कर देना चाहिए। अब चिंतन नहीं बल्कि इसे लागू करने का वक्त आ गया है। लेकिन इसे लेकर भी कई तरह की चिंताएं हैं। मान लीजिए कि अभी देश में टीके की 111 करोड़ खुराकें दी जा चुकी हैं। अभी हमें इतनी ही खुराक और लगानी है। अगर 30 करोड़ वैक्सीन हमारे पास उपलब्ध है तो एक करोड़ प्रतिदिन के हिसाब से टीकाकरण होने में कम से कम 4 महीने लगेंगे, तब तक बूस्टर डोज लगाने की कोई संभावना नहीं है। अगर वैक्सीन का उत्पादन बढ़ गया, इसको हमने डबल कर लिया तो जरूर 2 महीने में ये काम पूरा कर सकते हैं। हमें इसी दिशा में जोर देने की जरूरत है। इस दरमियान जो स्वास्थ्यकर्मी हैं जिनकी संख्या पहले लगभग तीन करोड़ बताई गई थी इनके लिए बूस्टर डोज लागू कर देना चाहिए।

अगर नए प्रकार का वैरिएंट आ गया और हमने अपने आप को यह सोचकर सुरक्षित नहीं किया कि हमने तो टीके की दो खुराकें ले ली हैं तो मुश्किलें बढ़ सकती हैं। जबकि दो डोज लगने के बाद भी संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं। ऐसा भी नहीं है कि जिनको दो खुराकें दी जा चुकी हैं उनकी मौत नहीं हो रही है। टीकाकरण के बाद भी देर में इलाज के लिए अस्पताल आना घातक सिद्ध हो रहा है। इसलिए नागरिकों को टेस्टिंग और अस्पताल पहुंचने में लेटलतीफी बिल्कुल नहीं करनी चाहिए।

क्या अब छत्तीसगढ़ में वैक्सीन की उपलब्धता पर्याप्त मात्रा में है?

छत्तीसगढ़ में वैक्सीन की उपलब्धता की कमी नहीं रही है। जितनी देश में वैक्सीन थी उसके हिसाब से आती रही हैं। मान लीजिए अगर आज हमने राज्य में सवा दो करोड़ टीके लगा दिए हैं तो एक करोड़ 75 लाख टीके लगने शेष हैं। 1 दिन में हम चार लाख वैक्सीन लगा सकते हैं, तो 1 महीने में यह एक करोड़ 20 लाख हो गया। ऐसे में हम 2 महीने में टीकाकरण पूरा कर सकते हैं मगर ऐसी उपलब्धता नहीं है। लेकिन, एक करोड़ जो प्रतिदिन देश के लिए वैक्सीन मिलती है, उसमें अगर हमारी आबादी उसकी तीन फ़ीसदी की है तो उतनी वैक्सीन हमको मिलनी चाहिए।

आपके हिसाब से राज्य की पूरी जनसंख्या का टीकाकरण कब तक हो जाएगा?


चार महीने का समय दूसरी खुराक को लगने में लगेगा और दिसंबर अंत तक पहली खुराक देने के काम को हो जाना चाहिए। 80 फ़ीसदी से ज्यादा लोगों को यहां पहली खुराक लग चुकी है। फर्स्ट डोज लगवाने के लिए कुछ लोगों में तो हिचक भी रहेगी। ऐसे कई नागरिक है जो कटिबद्ध हैं कि वे तो नहीं लगवाएंगे। ऐसे विचार वालों में कई पढ़े-लिखे समझदार लोग भी शामिल हैं जो अपनी समझ के साथ वैक्सीन नहीं लगवाने की इच्छा रखते हैं। अब कोई लहसुन प्याज नहीं खाता तो वह लहसुन प्याज नहीं खाता, कोई मुर्गा मटन नहीं खाता तो मुर्गा मटन नहीं खाता, कोई शाम ढलने के बाद खाना नहीं खाता तो इसके पीछे उनकी अपनी सोच रहती है। ऐसे ही कुछ इलाकों में गर्भवती महिलाओं, दूध पिलाने वाली माताओं मैं भी संकोच है और वे वैक्सीन नहीं लगवातीं।लिहाजा 100 फ़ीसदी टीकाकरण तो नहीं हो सकता। लेकिन सभी जगह 90 प्रतिशत से ऊपर टीकाकरण तो होना ही चाहिए। हालांकि प्रयास होना चाहिए कि 100 प्रतिशत हो जाए। दूसरा इन आंकड़ों में जो वास्तविक प्रोजेक्शन है, मुझे लगता है वह ज्यादा है क्योंकि कई जगहों से यह बात आ रही है कि मतदाता सूची में जितने नाम हैं उससे ज्यादा का लक्ष्य दिया गया है। जैसे किसी विधानसभा में मतदाता सूची में मतदाताओं की संख्या है और टीकाकरण के लिए लक्षित संख्या है इन दोनों में अंतर है ऐसे में सौ फीसदी उपलब्धि में यह एक बात हो सकती है।


छत्तीसगढ़ में कई जगहों से ऐसी भी जानकारी सामने आई है जिसमें रिकॉर्ड में जो व्यक्ति टीकाकृत बताए गए वास्तविक में वे टीकाकृत नहीं थे।


ऐसा अपवाद हो सकता है। तकनीक है, नाम डालने-चढ़ाने में कोई त्रुटि हुई होगी, इसे नकारा नहीं जा सकता लेकिन यह सामान्य स्थिति नहीं हो सकती। एक लाख में एक आदमी का हो जाए तो कहा नहीं जा सकता।


जब आप दिल्ली में होते हैं तब छत्तीसगढ़ में कई तरह की चर्चाएं होती हैं। इसे लेकर आपको क्या कहना है?


अब वह सब तो हाईकमान की बातें हैं। कई प्रकार के काम रहते हैं। लोगों से मिलना, परिवार के भी काम रहते हैं। राजनीतिक काम भी रहते हैं। राजनीतिक परिवेश भी रहता है। दिल्ली जाने के परिवारिक कारण रहते हैं। परिवार ने जहां श्रद्धा बना लिया है वहां जाना पड़ता है। जैसे सोमवार को उस मंदिर में जाना है, तो परिवार वालों की भावना को भी आदमी नकार नहीं पाता। अक्सर आप देखेंगे कि सोमवार को हम लोग यहां आते हैं। तो दिल्ली आने के कई कारण रहते हैं।


कुछ तो आपको इशारे मिल रहे होंगे। आप अपने समर्थकों को कब खुशखबरी दे रहे हैं?


अपने समर्थक वाली बात तो होनी नहीं चाहिए क्योंकि कांग्रेस एक परिवार है और उस परिवार के भीतर जिसको जो जिम्मेदारी मिलेगी वो हाईकमान तय करता है। जब आप उस परिवार के सदस्य होते हैं तब अपनी बात नहीं रहती, परिवार के रूप में फिर उसको देखना रहता है।

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