भारत के उपराष्ट्रपति पद के लिए 9 सितंबर 2025 को होने वाले चुनाव में एक रोमांचक मुकाबला देखने को मिलेगा। सत्तारूढ़ एनडीए ने महाराष्ट्र के राज्यपाल और तमिलनाडु के वरिष्ठ बीजेपी नेता सीपी राधाकृष्णन को अपना उम्मीदवार घोषित किया है, जबकि विपक्षी इंडिया गठबंधन ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी. सुदर्शन रेड्डी को मैदान में उतारा है। यह चुनाव न केवल दो दिग्गजों के बीच टक्कर है, बल्कि एक वैचारिक जंग के रूप में भी देखा जा रहा है।
67 वर्षीय सीपी राधाकृष्णन तमिलनाडु के तिरुप्पुर से हैं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की पृष्ठभूमि से आते हैं। वे कोयंबटूर से दो बार सांसद रह चुके हैं और तमिलनाडु बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष भी रहे हैं। वर्तमान में वे महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं और पहले झारखंड, तेलंगाना और पुडुचेरी में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं। एनडीए की ओर से उनकी उम्मीदवारी को तमिलनाडु में बीजेपी की स्थिति मजबूत करने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है, खासकर आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए।
78 वर्षीय बी. सुदर्शन रेड्डी एक प्रतिष्ठित कानूनी हस्ती हैं, जो आंध्र प्रदेश के रंगारेड्डी जिले के एक साधारण किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उन्होंने 1971 में आंध्र प्रदेश बार काउंसिल में वकालत शुरू की और आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में रिट और सिविल मामलों में प्रैक्टिस की। 1995 में वे आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के स्थायी जज बने, 2005 में गौहाटी हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे और 2007 से 2011 तक सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में अपनी सेवाएं दीं। इसके अलावा, वे गोवा के पहले लोकायुक्त भी रह चुके हैं। विपक्ष ने उन्हें एक प्रगतिशील और संवैधानिक मूल्यों के प्रति समर्पित जज के रूप में पेश किया है।
उपराष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा और राज्यसभा के कुल 787 सांसदों का इलेक्टोरल कॉलेज होता है, जिसमें से 6 सीटें रिक्त हैं। जीत के लिए 394 वोटों की आवश्यकता है। एनडीए के पास 422 सांसदों (लोकसभा में 293 और राज्यसभा में 129) का समर्थन है, जो जीत के लिए पर्याप्त है। दूसरी ओर, इंडिया गठबंधन के पास लगभग 300 सांसद हैं, जिसमें कांग्रेस, डीएमके, समाजवादी पार्टी, शिवसेना (यूबीटी), एनसीपी (शरद पवार), आरजेडी, जेएमएम, आप और आईयूएमएल शामिल हैं। विपक्ष वाईएसआर कांग्रेस (12 सांसद) और बीजद (7 राज्यसभा सांसद) से समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन संख्या का अंतर इतना बड़ा है कि इसे पाटना मुश्किल लगता है।
इंडिया गठबंधन ने इस चुनाव को एक वैचारिक लड़ाई के रूप में पेश किया है। डीएमके सांसद कनिमोझी ने कहा, “विपक्ष ने ऐसा उम्मीदवार चुना है जो संविधान का सम्मान करता है। बीजेपी का तमिलनाडु से उम्मीदवार चुनना यह नहीं दर्शाता कि वे तमिल भाषा या संस्कृति की परवाह करते हैं।” कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने रेड्डी को “भारत के सबसे प्रतिष्ठित और प्रगतिशील जजों में से एक” बताया और कहा कि सभी विपक्षी दल उनके नाम पर सहमत हैं।
वहीं, एनडीए ने सर्वसम्मति से चुनाव की कोशिश की थी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मल्लिकार्जुन खड़गे से संपर्क कर राधाकृष्णन के लिए समर्थन मांगा था, लेकिन विपक्ष ने अपना उम्मीदवार उतारने का फैसला किया। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने राधाकृष्णन की उम्मीदवारी का स्वागत किया है, लेकिन रेड्डी के आंध्र प्रदेश से होने के कारण टीडीपी पर भी स्थानीय उम्मीदवार को समर्थन देने का दबाव है।
संख्याबल के हिसाब से राधाकृष्णन की जीत लगभग तय मानी जा रही है, जब तक कि एनडीए के कुछ सांसदों का विद्रोह न हो, जो फिलहाल असंभव लगता है। विपक्ष का यह कदम ज्यादातर प्रतीकात्मक है, जिसका मकसद बीजेपी को निर्विरोध जीत से रोकना और अपनी एकजुटता दिखाना है। यह चुनाव दक्षिण भारत के दो चेहरों के बीच भी है, जिसने टीडीपी और डीएमके जैसे क्षेत्रीय दलों को मुश्किल में डाल दिया है।
9 सितंबर को होने वाला यह उपराष्ट्रपति चुनाव न केवल एक राजनीतिक मुकाबला है, बल्कि क्षेत्रीय और वैचारिक स्तर पर भी अहम है। राधाकृष्णन के अनुभव और एनडीए की संख्याबल की ताकत के सामने रेड्डी की संवैधानिक विशेषज्ञता और विपक्ष की एकजुटता कितना रंग लाती है, यह देखना दिलचस्प होगा।