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योगी सरकार के 4 साल: सरकार का दावा सुधारवादी नीतियों से रोल मॉडल बना राज्य, विपक्ष बोला-खोखले हैं दावे

 “सरकार का दावा कि सुधारवादी नीतियों से प्रदेश दूसरे राज्यों के लिए रोल मॉडल बना, पर विपक्ष के...
योगी सरकार के 4 साल:  सरकार का दावा सुधारवादी नीतियों से रोल मॉडल बना राज्य, विपक्ष बोला-खोखले हैं दावे

 “सरकार का दावा कि सुधारवादी नीतियों से प्रदेश दूसरे राज्यों के लिए रोल मॉडल बना, पर विपक्ष के मुताबिक दावा खोखला”

चार साल पहले मार्च 2017 में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने इतिहास रचते हुए 312 सीटों के साथ करीब 16 साल बाद सत्ता में वापसी की थी। प्रचंड बहुमत ने साबित किया कि प्रदेश की जनता ने तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के ‘काम बोलता है’ के नारे को न केवल नकार दिया, बल्कि अखिलेश-राहुल (समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन) के ‘यूपी को यह साथ पसंद है’ नारे को भी खारिज कर दिया। यही नहीं, मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी को भी 19 सीटों पर समेट दिया। भाजपा को यह जीत बिना किसी घोषित चेहरे के मिली थी, और फिर प्रदेश की कमान तेजतर्रार हिंदुत्ववादी छवि वाले नेता योगी आदित्यनाथ को मिली। इन चार साल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी छवि एक सख्त प्रशासक, अपराध पर जीरो टॉलरेंस और विकास के लिए बड़े सपने देखने वाले मुखिया के रूप में गढ़ी है। चाहे कमान संभालते ही एंटी-रोमियो अभियान चलाने की बात हो, अवैध बूचड़खाने बंद करने और गोरक्षा अभियान चलाने की बात हो, 100 दिनों के अंदर प्रदेश की सड़कों को गड्ढा मुक्त करने का ऐलान हो, सीएए के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शन पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों पर कार्रवाई की बात हो, माफियाओं द्वारा कब्जा की गई अवैध संपत्ति पर बुलडोजर एक्शन हो, कोविड-19 का संक्रमण रोकने के लिए उठाए गए कदम हों, लॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रमिकों के प्रबंधन का काम हो या फिर एनकाउंटर से अपराधियों में खौफ फैलाने की नीति हो, ये काम चार साल में योगी सरकार की पहचान बन गए हैं। मुख्यमंत्री ने चार साल में कथित तौर पर राज्य को औद्योगिक राज्य बनाने की दिशा में भी कदम उठाए हैं। इसी के तहत प्रदेश में देश के सबसे लंबे एक्सप्रेस-वे का जाल बिछाने की घोषणा की गई है। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में भी यूपी 12 पायदानों की उछाल के बाद दूसरे नंबर पर आ गया है। करीब 2.25 लाख करोड़ रुपये के निवेश प्रस्तावों पर जमीन पर काम शुरू करने का भी दावा योगी सरकार का है।

"प्रदेश को एक लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का हमारा लक्ष्य है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 लाख करोड़ डॉलर का बनाने के विजन में सहयोग करेगा”

 

योगी आदित्यनाथ

मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश

हालांकि, हाथरस में दलित लड़की के साथ गैंगरेप, उन्नाव में भाजपा के ही विधायक कुलदीप सेंगर पर अपहरण और बलात्कार का दोष सिद्ध होना, कानपुर का बिकरू कांड, जिसमें विकास दुबे और उसके साथियों ने 8 पुलिसवालों की हत्या कर दी, जैसी घटनाएं भी हुईं। यही नहीं, 9 फरवरी को कासगंज में शराब माफिया द्वारा सिपाही की हत्या का मामला हो, या फिर 2018 में राजधानी लखनऊ में कॉन्स्टेबल प्रशांत चौधरी द्वारा एपल कंपनी में काम करने वाले एरिया सेल्स मैनेजर विवेक तिवारी को बीच सड़क गोली मारने का मामला, इन आपराधिक घटनाओं ने सरकार के दावों पर सवाल भी उठाए हैं।

2019 के लोकसभा चुनावों ने प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को राजनीतिक रूप से मजबूत भी किया है। उस चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन के बावजूद भारतीय जनता पार्टी को 62 सीटें मिलीं। हालांकि 2014 की 71 सीटों की तुलना में इस बार सीटें कम थीं, लेकिन उस वक्त सपा और बसपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। अभी तक के राजनीतिक संकेतों से ऐसा लग रहा है कि 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, सपा और बसपा के बीच गठबंधन नहीं होगा। हालांकि छोटे दलों का गठबंधन जरूर खड़ा हो रहा है।

 

 

असदुद्दीन ओवैसी की एआइएमआइएम से लेकर चंद्रशेखर की भीम पार्टी की इन चुनावों में एंट्री होती दिख रही है। इससे आने वाले समय में राज्य की राजनीति में नए समीकरण बन सकते हैं। ऐसे में अगले साल होने वाले चुनाव में योगी आदित्यनाथ के लिए 2017 के नतीजों को दोहराना बड़ी चुनौती होगी। लेकिन इसके लिए सरकार ने तैयारी भी शुरू कर दी है। सूत्रों के अनुसार अगले एक साल में सरकार का प्रमुख जोर सोशल मीडिया पर रहने वाला है, जो आज के दौर में जनमत बनाने में अहम भूमिका निभा रहा है।

चार साल के कार्यकाल पर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ आउटलुक से कहते हैं, “जैसा हम शुरू से करते आ रहे हैं, प्रदेश में आगे भी गैंगस्टर पर कोई रहम नहीं होगा। प्रदेश को एक लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का हमारा लक्ष्य है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भारतीय अर्थव्यवस्था को 5 लाख करोड़ डॉलर का बनाने के विजन में सहयोग करेगा।” मुख्यमंत्री के अनुसार, हमारे प्रयासों का ही नतीजा है कि महामारी के बावजूद राज्य में 57 हजार करोड़ रुपये का निवेश आया है। प्रदेश दक्षिण और पश्चिम भारत के राज्यों के लिए रोल मॉडल बन रहा है। हमारे नए कानून और सुधारवादी नीतियां प्रदेश की छवि को बदल रही हैं।

इन्‍फ्रास्ट्रक्चरः पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे, सरकार का दावा कि 70 फीसदी काम पूरा हो गया है 

 

हालांकि मुख्यमंत्री के इस दावे पर विपक्ष सवाल उठा रहा है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और प्रदेश में कैबिनेट मंत्री रह चुके राजेंद्र चौधरी का कहना है, “यह पहली सरकार है जो पिछली सरकार के काम को नाम बदलकर अपना बता रही है। पिछले चार वर्षों में सरकार ने सामाजिक सद्भाव को कमजोर किया है। लव जेहाद के नाम पर कानून बनाकर संविधान की मूलभावना की अनदेखी की है। नफरत का एजेंडा चलाने के अलावा इस सरकार ने कुछ नहीं किया है।”

लव जेहाद पर बने कानून पर मुख्यमंत्री कहते हैं, “विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश इसलिए लाया गया क्योंकि पिछले कुछ समय से महिलाओं की तरफ से शिकायतें आ रही थीं। शिकायत थी कि उन पर धर्म परिवर्तन के लिए दबाव बनाया जा रहा है और प्रताड़ित किया जा रहा है।” मुख्यमंत्री के अनुसार, हमने महसूस किया कि इस स्थिति को बदलने, महिलाओं को सुरक्षा और न्याय दिलाने के लिए एक कानून की जरूरत है। इस कानून का मतलब यह नहीं कि दो अलग धर्मों के लोगों के बीच विवाह नहीं किया जा सकता। लेकिन इसके जरिए प्यार के नाम पर धोखे से किसी महिला के साथ विवाह नहीं हो सकेगा। इस कानून के जरिए विवाह के लिए जबरन धर्म परिवर्तन कराने, धोखे या लालच से विवाह करने पर रोक लगेगी। इस कानून में किसी नाबालिग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिला का जबरन धर्म परिवर्तन कराने पर दो से सात साल की सजा का भी प्रावधान है।”  हालांकि कानून के जानकार इस कानून पर सवाल उठा रहे हैं और राज्य में इसके तहत हुई गिरफ्तारियों पर भी सवाल उठ रहे हैं।

औद्योगिक राज्य वाली छवि बनाने के दावे पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू कहते हैं, “यह केवल ब्रांडिंग करने और होर्डिंग लगाने वाली सरकार है। राज्य का किसान बेहाल है। सरकार ने सिंचाई के लिए बिजली महंगी कर दी, खाद महंगी कर दी, गन्ने का रेट घोषित नहीं कर रही है। करीब 850 किसानों ने आत्महत्या की है। इसी तरह बेरोजगारी दोगुनी बढ़ चुकी है और छोटे कारोबारी परेशान हैं, रोजगार के नाम पर युवा कोर्ट-कचहरी के चक्कर काट रहे हैं। महिलाएं असुरक्षित हैं। यही इस सरकार की हकीकत है।”

गृह विभाग के अनुसार महिलाओं के खिलाफ अपराध में गिरावट आई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की 2019 की रिपोर्ट कहती है कि प्रदेश में 2016 और 2017 में प्रति एक लाख महिलाओं पर बलात्कार की दर 4.6 और 4.0 थी, जो 2019 में घटकर 2.8 रह गई। बलात्कार के मामले में प्रदेश 36 राज्यों में 29वें स्थान पर था। यही नहीं, सितंबर 2020 तक प्रदेश में ऐसे मामलों में 42.24 फीसदी की कमी आई है। महिलाओं के अपहरण के मामले में भी 2016 की तुलना में 39 फीसदी गिरावट है। एक अधिकारी के अनुसार, अगर सभी तरह के अपराधों को देखा जाए तो उत्तर प्रदेश कई प्रमुख राज्यों से बेहतर स्थिति में है। महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तीकरण के लिए ‘मिशन शक्ति’ कार्यक्रम भी लांच किया गया है। लखनऊ, बदायूं और गोरखपुर में पीएसी की महिला बटालियन बनाई गई हैं। हालांकि विपक्ष इन आंकडों पर सवाल उठाता है।

गृह विभाग के आंकड़ों के अनुसार 15 दिसंबर 2020 तक कुल 129 अपराधी मुठभेड़ में मारे गए और 2,782 घायल हुए। इन कार्रवाइयों में पुलिस के भी 13 जवान शहीद हुए और 1031 घायल हुए। 25 हजार के इनामी 9157 अपराधी, 25 से 50 हजार के इनामी 773 अपराधी और 50 हजार से अधिक के 91 इनामी अपराधी यानी कुल 10,021 अपराधी जेल भेजे गए।

राज्य में हुई कई आपराधिक घटनाओं, खासकर महिलाओं के उत्पीड़न की वारदातों से मुख्यमंत्री की सख्त प्रशासक की छवि को कुछ धक्का लगा

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के आरोपों पर कृषि विभाग, खाद्य और रसद विभाग, गन्ना विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है, “2017 में सरकार बनते ही वादे के अनुसार पहली कैबिनेट में ही 86 लाख छोटे किसानों के 36 हजार करोड़ रुपये के कर्ज माफ किए गए। इसी तरह, धान की खरीद में इस बार सरकार ने रिकॉर्ड बनाया है। भारतीय खाद्य निगम के आंकड़ों के अनुसार 28 दिसंबर 2020 तक उत्तर प्रदेश अकेला ऐसा राज्य है जिसने लक्ष्य से अधिक धान की खरीद की। राज्य सरकार ने इस अवधि में 56.57 लाख टन धान की खरीद की जो लक्ष्य से 1.35 लाख टन ज्यादा है। इसी तरह गेहूं के लिए सरकार ने प्रदेश में 6000 खरीद केंद्र खोले और 65 लाख टन से ज्यादा गेहूं की खरीद की है।

यही नहीं, गन्ने के उत्पादन में भी प्रदेश नंबर एक बना हुआ है। लॉकडाउन के दौरान गन्ने की आपूर्ति अबाध रखी गई, जिससे चीनी मिलों के बंद होने की नौबत नहीं आई। इस दौरान 5,953 करोड़ रुपये का गन्ना भुगतान किया गया।

सरकार का दावा है कि साल 2017-2020 के दौरान 47 लाख से ज्यादा गन्ना किसानों को 1,12,000 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है। पिछली सरकार ने 5 साल के कार्यकाल में 95,125 करोड़ रुपये का भुगतान किया था। अधिकारी के अनुसार पूर्ववर्ती सरकारों ने 21 चीनी मिलों को बेच दिया था। जबकि पिछले चार साल में गोरखपुर और बस्ती में 1999 से बंद पड़ी चीनी मिलें दोबारा चालू की गई। सरकार इस समय करीब 119 चीनी मिलें ऑपरेट कर रही है।

हालांकि इस बीच हकीकत यह भी है कि अक्टूबर 2020 में शुरू हुए गन्ना सीजन के लिए 15 फरवरी 2021 तक राज्य परामर्श मूल्य (एसएपी) की घोषणा नहीं की गई है। अजय कुमार लल्लू कहते हैं, इस वजह से राज्य के किसानों को गन्ने के एवज में जो पर्ची मिल रही है, उस पर मूल्य शून्य लिखा होता है।

प्रदेश सरकार ने 2018-19 से गन्ने का एसएपी नहीं बढ़ाया है। सूत्रों के अनुसार 2020-21 सीजन के लिए भी एसएपी में बढ़ोतरी की संभावना बहुत कम है। इसके पीछे सरकार का तर्क है कि पहले किसानों से 18 हजार करोड़ का गन्ना खरीदा जाता था, वह अब बढ़कर 36 हजार करोड़ रुपये हो गया है। इसी तरह, केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत अभी तक जारी छह किस्तों के तहत 2.35 करोड़ किसानों को 22594.78 करोड़ रुपये दिए गए हैं। इसके अलावा इस साल 2.16 करोड़ किसानों को 4333.40 करोड़ रुपये दिए जाएंगे।

मुख्यमंत्री आदित्यनाथ की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक, प्रदेश में एक्सप्रेस-वे का जाल बिछाना है। जब उन्होंने सत्ता संभाली थी तब दिल्ली-आगरा यमुना एक्सप्रेस-वे और लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे राज्य की पहचान थे। विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार प्रदेश सरकार देश में एक्सप्रेस-वे का सबसे बड़ा जाल बिछा रही है। इसके तहत 340 किलोमीटर लंबे पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे, 296 किलोमीटर लंबे बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे, 91 किलोमीटर लंबे गोरखपुर लिंक एक्सप्रेस-वे और 594 किलोमीटर लंबे गंगा एक्सप्रेस-वे प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। पूर्वांचल एक्सप्रेस का 70 फीसदी काम पूरा हो चुका है। यह प्रोजेक्ट मार्च तक पूरा हो जाने की उम्मीद है। सरकार का दावा है कि बेहतर भूमि अधिग्रहण नीति की वजह से एक्सप्रेस-वे समय पर पूरे किए जा रहे हैं। 22494.66 करोड़ रुपये की लागत से बन रहा पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे गोरखपुर, प्रयागराज, बाराबंकी, अमेठी, सुल्तानपुर, अयोध्या, अंबेडकर नगर, आजमगढ़, मऊ और गाजीपुर शहरों को जोड़ेगा।

 

निवेश के लिएः लखनऊ में इन्वेस्टर मीट में जुटे उद्योगपति

296 किलोमीटर बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे का निर्माण कार्य जारी है और जनवरी 2022 तक इसके पूरा हो जाने का लक्ष्य है। प्रोजेक्ट चित्रकूट, बांदा, महोबा, हमीरपुर, जालौन, औरैया, इटावा आदि शहरों को जोड़ेगा। वहीं 594 किलोमीटर लंबा गंगा एक्सप्रेस-वे मेरठ, हापुड़, बुलंदशहर, अमरोहा, संभल, बंदायूं, शाहजहांपुर, हरदोई, उन्नाव, रायबरेली, प्रतापगढ़ और प्रयागराज से होकर गुजरेगा। इसके लिए जून 2021 तक 90 फीसदी भूमि अधिग्रहण का काम पूरा कर लिया जाएगा। अधिकारी के अनुसार पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे पर हवाई पट्टी भी बनाई जा रही है। यानी आपात स्थिति में इस एक्सप्रेस-वे पर लड़ाकू विमान उतारे जा सकेंगे।

 

 जेवर एयरपोर्ट की आकृति

 

मुख्यमंत्री की महत्वाकांक्षी योजनाओं में इन्फ्रास्ट्रक्चर पर जोर है। सरकार की योजना एक्सप्रेस-वे का सबसे बड़ा जाल बिछाने की हैै

एक्सप्रेस-वे परियोजनाओं पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष का कहना है, “कुछ काम दिख रहा है। लेकिन अभी ये पूरे नहीं हुए हैं, जब पूरे हो जाएंगे तो देखेंगे क्या हुआ।” समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव राजेंद्र चौधरी कहते हैं, “जैसा कि मैंने पहले कहा, यह सरकार नाम बदलने पर भरोसा करती है। जिस पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे की बात सरकार कर रही है, वह समाजवादी पार्टी सरकार की योजना थी। जो ढांचा हमारी सरकार छोड़ कर गई, उसी पर काम कर रहे हैं और अपना होने का दावा कर रहे हैं।”

योगी सरकार के चार साल में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्तियों के हुए नुकसान को लेकर लाया गया अध्यादेश भी चर्चा में रहा है। सरकार ने मार्च 2020 में रिकवरी ऑफ डैमेज टू पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टी अध्यादेश को मंजूरी दी थी। इसका उद्देश्य है कि विरोध प्रदर्शनों, आंदोलनों, जुलूसों और धरने के दौरान सार्वजनिक और निजी संपत्तियों को क्षति पहुंचाने वाले लोगों से नुकसान की भरपाई की जाएगी।

लखनऊ में हुई हिंसा के दौरान सार्वजनिक स्थलों पर 57 लोगों के पोस्टर भी चर्चा रहे। इस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी तल्ख टिप्पणी की थी। गृह विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार विरोध प्रदर्शन और संपत्तियों के नुकसान को लेकर कुल 510 मुकदमे 7,304 व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज किए गए। इनमें 4,578 अभियुक्तों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए 312 लोगों को आरोप पत्र भेजा जा चुका है। लगभग 1.73 करोड़ रुपये की क्षतिग्रस्त राज्य की संपत्ति के बदले में दोषी व्यक्तियों से 23.36 लाख रुपये की वसूली की जा चुकी है। अधिकारी के अनुसार इसके लिए सरकारी सम्पत्तियों को नुकसान पहुंचाने वाले असामाजिक तत्वों की स्थानीय स्तर पर पहचान कराई गई।

भाजपा सरकार के इन चार साल में एक भी दंगे नहीं होना अपनी बड़ी उपलब्धि मान रही है। उसका कहना है कि जिस तरह अयोध्या विवाद पर फैसले के बाद प्रदेश में शांति रही, वह सरकार की चुस्त-दुरुस्त व्यवस्था का ही परिणाम था। अब मुख्यमंत्री अयोध्या को बड़े पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने पर जोर दे रहे हैं। उनका कहना है, “अयोध्या पर्यटन, आर्थिक और धार्मिक गतिविधियों का बड़ा केंद्र बनेगा। इसके अलावा हम अयोध्या को सोलर सिटी बनाने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। सरकार ने इसे स्मार्ट सिटी बनाने का मास्टर प्लान तैयार कर लिया है। बुनियादी ढांचों को आधुनिक बनाने के साथ-साथ राम जानकी पथ भी बनाया जाएगा। इसके अलावा एयरपोर्ट का काम भी तेजी से पूरा किया जा रहा है।”

इन चार साल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए कोविड-19 महामारी भी एक बड़ी चुनौती लेकर आई। करीब 24 करोड़ आबादी वाले प्रदेश (अमेरिका के बराबर आबादी) को लेकर विश्व बैंक और सभी स्वास्थ्य विशेषज्ञ चिंता जाहिर कर चुके थे कि राज्य के कमजोर स्वास्थ्य ढांचे को देखते हुए बड़े पैमाने पर संक्रमण फैलने का खतरा है। उसी समय राज्य को करीब 45 लाख प्रवासी मजदूरों के पलायन का भी सामना करना पड़ा।

सरकार इन चार साल में एक भी दंगे नहीं होना बड़ी उपलब्धि मान रही है। अयोध्या विवाद पर फैसले के बाद प्रदेश में शांति रही

लेकिन आखिरकार, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने राज्य में संक्रमण को रोकने के लिए सरकार की प्रशंसा की। प्रवासी मजदूरों को बसों के जरिए राज्य में उनके घरों तक पहुंचाने और कोटा में पढ़ाई कर कर रहे बच्चों को वापस अपने घरों तक पहुंचाने में भी सरकार की सक्रियता दिखी।

कोविड-19 की चुनौती पर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ कहते हैं, “हम पहले राज्य हैं जहां पर 2.85 करोड़ लोगों के टेस्ट हुए हैं। इसका मतलब है कि हर रोज 1.75 लाख टेस्ट किए गए। समय पर हस्तक्षेप और बेहतर प्रबंधन का परिणाम है कि प्रदेश में संक्रमण कम रहा।” संक्रमण रोकने के लिए राज्य में वरिष्ठ अधिकारियों का ग्रुप-11 बनाया गया। हर जिले में इंटीग्रेटेड कोविड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर बनाए गए। तीसरी अहम बात यह रही कि डाटा मैनेजमेंट पोर्टल से निगरानी की गई। इन प्रयासों से 15 फरवरी तक प्रदेश में केवल 6 लाख संक्रमित मामले आए। इनमें 8704 लोगों की मौत हुई।

लॉकडाउन में मजदूरः दूसरे प्रदेशों से राज्य में लौटी बड़ी तादाद

मुख्यमंत्री के अनुसार कोविड-19 के दौर में 45 लाख प्रवासी श्रमिक राज्य में पहुंचे थे। ऐसे में उनके लिए नौकरी की व्यवस्था करना सबसे बड़ी चुनौती थी। उत्तर प्रदेश श्रम आयोग के जरिए लोगों के कौशल की पहचान कर उन्हें नौकरी देने का काम शुरू किया गया। इस पहल से 27.28 लाख प्रवासी श्रमिकों को 11 लाख छोटी और बड़ी कंपनियों में नौकरी मिल गई। इसके अलावा इन श्रमिकों को मनरेगा में भी रोजगार के अवसर दिए गए। उद्योग संगठनों के साथ भी रोजगार के समझौते किए गए। आठ लाख छोटी इकाइयों को चलाया गया, जिससे 51 लाख लोगों को नौकरी मिली। साथ ही आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश रोजगार योजना के तहत 4 लाख इकाइयों को 10,600 करोड़ रुपये का कर्ज दिया गया। यह अभियान 31 जिलों में लांच किया गया।

हालांकि सरकार के विकास के दावों पर राष्ट्रीय लोकदल के प्रवक्ता अनुपम मिश्र सवाल उठाते हैं। उनका कहना है “सभी गांवों को राज्य राजमार्ग से जोड़ने का वादा था, लेकिन आज भी आधे से ज्यादा गांव इसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। प्रदेश का किसान आज सड़कों पर है, युवा बेरोजगार है, व्यवसाय ठप है, आम आदमी महंगाई से त्रस्त है और प्रशासन पूरी तरह से मस्त है। सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार अपने चरम पर है।”

सपा नेता राजेंद्र चौधरी कहते हैं, “यह सरकार नारे गढ़ने में माहिर है, उनके शोध संस्थान तुकबंदी बनाने में लगे रहते हैं। जनता को उलझाने का काम करते हैं। 2022 तक किसानों की इनकम डबल करने का वादा किया था, वह बढ़ने की जगह घट रही है। बेरोजगारी बढ़ रही है। रोजगार के जो भी आंकड़े हैं, वह फरेब के सिवा कुछ नही है।”

हालांकि विपक्ष के आरोपों को नकारते हुए मुख्यमंत्री कहते हैं, “विपक्ष किसानों को कृषि कानूनों के नाम पर भड़का रहा है और अफवाहें फैला रहा है। प्रदेश में देश के सबसे ज्यादा किसान रहते हैं। किसानों ने हम पर हमेशा भरोसा जताया है। कुछ ही किसान विरोध प्रदर्शन में शामिल हैं। हम लगातार उनके साथ बातचीत कर मुद्दे को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं। इस दौरान कानून-व्यवस्था की स्थिति भी ठीक रही है। राज्य सरकार किसानों को एमएसपी का भरोसा दे रही है, गन्ने का भुगतान कर रही है और उन्हें बैंक खाते में पैसे ट्रांसफर (डीबीटी) का भी लाभ मिल रहा है।”

प्रदेश सरकार के जिन दावों को विपक्ष सबसे ज्यादा नकारता है, वह बड़ी कंपनियों का प्रदेश में निवेश है। कांग्रेस के अजय कुमार लल्लू कहते हैं, “निवेश की बातें हवा-हवाई हैं। प्रचार करो, खाओ-पिओ और भूल जाओ, यही सच्चाई है।” हालांकि इस बात से औद्योगिक विभाग के अधिकारी इत्तेफाक नहीं रखते। उनका कहना है कि अकेले ‘वन डिस्ट्रक्टि वन प्रोडक्ट’ (ओडीओपी) स्कीम के जरिए 80 हजार करोड़ रुपये का निर्यात किया गया है। इसी तरह इन्वेस्टर सम्मेनल के जरिए वैश्विक निवेश लाने और इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने पर जोर है। सम्मेलन में 4.50 लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव आए। इनमें से 2.25 लाख करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट शुरू हो चुके हैं।

सवाल दर सवालः हाथरस में गैंगरेप पीड़ित दलित बच्ची का अंतिम संस्कार करती पुलिस,  (नीचे) कानपुर में विकास दुबे हत्याकांड

 

बिजनेस के लिए सरकार ने 186 सुधार लागू किए हैं। इन कदमों का ही परिणाम है कि ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैकिंग में राज्य पिछले तीन साल में 12 पायदान ऊपर आया है। डीपीआइआइटी की रैकिंग में प्रदेश दूसरे स्थान पर पहुंच गया है।इसी तरह, एकल खिड़की प्रणाली के तहत निवेश मित्र पोर्टल शुरू किया गया है, जिसके साथ 166 सेवाएं जोड़ी गई हैं। अभी तक 93 फीसदी आवेदन निपटाए जा चुके हैं। वित्त वर्ष 2020-21 में औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने करीब 740 एकड़ भूमि (1097 प्लॉट) का आवंटन किया है। जिसके जरिए करीब 9700 करोड़ रुपये का निवेश आएगा और करीब 1,95,990 लोगों को रोजगार मिलेगा। जिन कंपनियों को प्लॉट आवंटित किए गए हैं, उनमें हीरानंदानी, सूर्या ग्लोबल, हिंदुस्तान यूनीलीवर, एमजी कैप्सूल, केशो पैकेजिंग, माउंटेन व्यू टेक्नोलॉजी प्रमुख हैं।

एयर कनेक्टिविटी के तहत छोटे शहरों को जोड़ने के अलावा जेवर एयरपोर्ट भी सरकार की अहम परियोजनाओं में से एक है। इसका पहला चरण 2024 में पूरा हो जाने की उम्मीद है। पूरी तरह तैयार हो जाने पर यह 5 रनवे के साथ काम करेगा। हाल ही में दूसरे चरण के भूमि अधिग्रहण के लिए 4000 करोड़ रुपये स्वीकृत किए हैं। इसी तरह सरकार ग्रेटर नोएडा में फिल्मसिटी का भी निर्माण कर रही है।

 

सरकार शिक्षा के क्षेत्र में ‘ऑपरेशन कायाकल्प’ के जरिए एक लाख स्कूलों को विकसित कर रही है। 16 फरवरी को उसने ‘अभ्युदय स्कीम’ लांच की, जिसके तहत छात्र मुफ्त में कोचिंग की सुविधा ले सकेंगे। छात्र ऑफलाइन क्लास और ऑनलाइन मैटेरियल प्राप्त कर सकेंगे। छात्रों को सिविल सर्विसेज, एनडीए, सीडीए, सैनिक स्कूल, नीट, जेईई परीक्षा की कोचिंग मिल सकेगी।

हालांकि इन दावों को राष्ट्रीय लोक दल के प्रवक्ता अनुपम मिश्र खोखला ही बता रहे हैं, “भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में वादा किया था कि सभी सरकारी स्कूलों में बच्चों को मुफ्त किताबें और यूनिफॉर्म दिया जाएगा। यह वादा ही रहा।”

जाहिर है, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कितने भी दावे करें, अगले एक साल विपक्ष उनके लिए चुनौती खड़ी करता रहेगा। चुनावी साल में विपक्ष, खासकर प्रियंका गांधी उनके लिए कितनी बड़ी चुनौती हैं, इस पर वे कहते हैं, “हम किसी को चुनौती देने वाले के रूप में नहीं देख रहे हैं। उत्तर प्रदेश की जनता के पास समय है और वह मुझ पर और हमारी सरकार पर ही दोबारा भरोसा करेगी। हम लोगों के आभारी हैं, मुझे पूरा भरोसा है कि प्रदेश के विकास के लिए एक और मौका मिलेगा।” मुख्यमंत्री के दावों में कितनी सच्चाई है और विपक्ष के आरोपों में कितना दम है, यह 2022 के विधानसभा चुनावों में जनता तय करेगी, बशर्ते विपक्षी दल भी अपनी सक्रियता बढ़ाएं और अपनी रणनीतियों पर दोबारा विचार करें। इस बीच, योगी सरकार के लिए अपनी छवि और दुरुस्त करने का मौका है।

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जिलों पर जोर

उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट’ स्कीम को जनवरी 2018 में लांच किया। इसका उद्देश्य प्रदेश के 75 जिलों में स्थानीय स्तर पर मौजूद कला, कारीगरी और कौशल का विकास करना है। हर जिले के लिए एक प्रोडक्ट का चयन किया गया है। कारीगारों को वित्तीय सहायता से लेकर पैकेजिंग, कॉमन फैसिलिटी सेंटर, डिजाइनिंग और गुणवत्ता नियंत्रण की सुविधा सरकार के तरफ से दी जा रही है।

डिपार्टमेंट ऑफ एमएसएमई और एक्सपोर्ट प्रमोशन से मिली जानकारी के अनुसार ओडीओपी योजना के तहत प्रत्येक कारीगर और इकाई को 20 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता दी जाती है। पिछले तीन साल में 80,000 कारीगरों को प्रशिक्षित किया गया है और 40 लाख लोगों को रोजगार के अवसर मिले हैं। कारीगारों के कौशल विकास के साथ उपकरण वितरण की सुविधा भी दी जा रही है। इसके लिए 10 दिन का मुफ्त कोर्स भी कराया जा रहा है।

कच्चा माल, पैकेजिंग, डिजाइनिंग आदि दूसरी जरूरतों को पूरा करने के लिए हर जिले में कॉमन फैसिलिटी सेंटर खोलने की योजना है। इसके तहत कुल खर्च की 90 फीसदी रकम (अधिकतम 13.5 करोड़ रुपये) सरकार वहन करेगी। अब तक 22 कॉमन फैसिलिटी सेंटर के प्रस्ताव को सैद्धांतिक मंजूरी दी जा चुकी है। इसमें से 15 सीएफसी तैयार होने के चरण में हैं। ओडीओपी के 15 उत्पादों को जीआई टैग भी मिल गया है और 10 इसे पाने की प्रक्रिया में हैं।

मार्केटिंग के लिए सरकार ने 450 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी/मेला का चयन किया है, जहां पर कारीगार भाग ले सकेंगे। उनकी यात्रा, ठहरने और स्टॉल का खर्च सरकार देगी। इसके अलावा करीब 20 हजार उत्पाद प्रमुख ई-कॉमर्स कंपनियों के प्लेटफॉर्म से जोड़े गए हैं।

हालांकि सरकार के इस दावे को कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार उर्फ लल्लू नकारते हुए कहते हैं, “पुरानी स्कीम को केवल नए कलेवर में पेश किया गया है। वह भी फायदेमंद नहीं है। चाहे बुनकर हों, साड़ी उद्योग के कारीगर, कारपेट उद्योग से जुड़े कारीगर हों या फिर मुरादाबाद के पीतल कारोबारी, सभी परेशान हैं। सड़कों पर आंदोलन हो रहे हैं। सरकार के दावों के विपरीत जमीनी हकीकत कुछ और ही हैं।”

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इंटरव्यू

2.50 लाख करोड़ रुपये का निर्यात करेंगे ओडीओपी शहर

उत्तर प्रदेश सरकार ने हर जिले की खासियत के आधार पर वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट स्कीम शुरू की है, जिसका उद्देश्य स्थानीय कौशल का विकास कर उत्पादों का निर्माण करना और दुनिया भर में उनको नई पहचान देना है। इस योजना पर अतिरिक्त मुख्य सचिव (एमएसएमई, निर्यात संवर्धन) नवनीत सहगल से आउटलुक के प्रशांत श्रीवास्तव ने बात की है। प्रमुख अंश:

 

वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट (ओडीओपी) योजना की जरूरत क्यों पड़ी ?

यह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की खास पहल है। पूरी दुनिया में देखा गया है कि क्लस्टर आधारित उद्योग काफी तेजी से विकसित हुए हैं । चीन, थाइलैंड, जापान इसके प्रमुख उदाहरण है। उत्तर प्रदेश में 20 -25 ऐसे क्लस्टर हैं जो हजारों साल से स्थापित है। ऐसे में उन्हें बढ़ाकर न केवल रोजगार के अवसर पैदा किए जा सकते हैं बल्कि अर्थव्यवस्था को भी गति दी जा सकती है। अभी तक किसी भी सरकार ने इसे उनकी जरूरत को ध्यान में रखकर विकसित नहीं किया। जबकि इन क्लस्टर से लाखों लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से जुड़े हुए हैं। उपेक्षा की वजह से कई पारंपरिक उद्योग तो लुप्त होने के कगार पर पहुंच गए थे। इन्हें फिर से रिवाइव करने के लिए ही ओडीओपी स्कीम को शुरू किया गया।

विपक्ष का आरोप है कि पुरानी योजना की ही नए नाम से ब्रांडिंग की जा रही है।

ऐसा बिल्कुल नहीं है। पुरानी योजना और इसमें सबसे बड़ा अंतर यह है कि कभी इन क्लस्टर की जरूरतों को समग्र रूप से देखा ही नहीं गया। जैसे पहले अगर हैंडीक्रॉफ्ट उद्योग को सहयोग देना होता है तो विभाग कारीगर को सहयोग देता था। उसे पेंशन मिल जाती थी, एक-दो प्रदर्शनी में स्टॉल मिल जाता था। लेकिन ओडीओपी में हम उद्योग की हर जरूरतों पर जोर दे रहे हैं। सरकार पूरा साथ दे रही है। इसके तहत फाइनेंस, कौशल विकास, कच्चे माल की उपलब्धता, पैकेजिंग, मार्केटिंग आदि सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर योजना बनाई गई है।

कुछ उदाहरणों से समझाइए कि कैसे सरकार सहयोग कर रही है

बनारस की साड़ी को लीजिए पहले भी इस पर काम होते थे योजनाएं बनती थी लेकिन उसके हर पहलू को ध्यान में रखते हुए योजना बनाना उस पर सहयोग देना कभी नहीं हुआ। कच्चे माल को लीजिए अभी तक चीन से रेशम मंगाते थे, अब हम दूसरे विकल्प उपलब्ध करा रहे हैं। इसके अलावा रेशम विभाग के जरिए उत्तर प्रदेश में रेशम उत्पादन के प्रयास किए जा रहे हैं। जिससे एक देश पर निर्भरता खत्म हो जाए। छोटे कारोबारियों को साड़ी का धागा खरीदने के लिए वर्किंग कैपिटल उपलब्ध कराई जा रहे है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने  ऐसे कारीगरों के 10 समूह को एक करोड़ रुपए का सहयोग दिया है । बुनकरों को पैर के लूम और सोलर लूम भी उपलब्ध कराई जा रही है। इसके अलावा बनारस में दो 2 कॉमन फैसिलिटी सेंटर भी बनाया जा रहा है। जो डिजाइन में मदद करेगा। इंस्टीट्यूट आफ पैकेजिंग के साथ समझौता भी किया गया है, जो पैकेजिंग में कारीगरों की मदद करेगा। ऐसे ही कदम सभी जिलों के लिए उठाए जा रहे हैं। सभी जिले के लिए डाइग्नोस्

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