सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए चार हफ्तों के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। यह मामला केंद्र के उस आदेश से जुड़ा है जिसमें 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों और 10 साल पुराने डीजल वाहनों को हटाने के निर्देश दिए गए थे। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा कि अगली सुनवाई तक किसी भी वाहन मालिक के खिलाफ कोई जबरन कार्रवाई नहीं होगी।
याचिका में कहा गया है कि इस आदेश से लाखों वाहन मालिक प्रभावित होंगे। कई लोग अपने वाहनों पर रोज़मर्रा के काम, रोजगार और आजीविका के लिए निर्भर हैं। आदेश लागू होने पर पुराने वाहनों को कबाड़ में देना पड़ेगा, जिससे न केवल वाहन मालिकों को आर्थिक नुकसान होगा, बल्कि उनसे जुड़े मैकेनिक, ड्राइवर, परिवहन सेवा प्रदाता और छोटे व्यवसायी भी प्रभावित होंगे। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि सरकार को पुराने वाहनों को हटाने के बजाय उन्हें उन्नत तकनीक से फिट करने या प्रदूषण जांच के बाद उपयोग की अनुमति देने जैसे विकल्प अपनाने चाहिए।
अदालत ने यह भी कहा कि वह इस नीति के पर्यावरणीय और आर्थिक प्रभावों की समीक्षा करेगी। सरकार का पक्ष है कि पुराने वाहन अधिक प्रदूषण फैलाते हैं और सड़क सुरक्षा के लिहाज़ से भी खतरा पैदा करते हैं। दूसरी ओर, वाहन मालिक और उद्योग से जुड़े लोग कहते हैं कि अचानक लागू किए गए इस तरह के नियम से आर्थिक संकट गहरा सकता है।
अगली सुनवाई में यह देखा जाएगा कि क्या इस आदेश में संशोधन या स्थगन की संभावना है। अदालत ने सभी पक्षों से व्यापक बहस के लिए तैयार रहने को कहा है। फिलहाल, पुराने वाहन मालिकों के लिए यह अंतरिम राहत है कि अगले आदेश तक उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी।