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भाजपा ने क्यों किया सरना आदिवासी धर्म कोड का समर्थन, नहीं थी किसी को आम सहमति की उम्मीद

जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड कॉलम के लिए झारखंड विधानसभा ने सरना आदिवासी धर्म कोड का...
भाजपा ने क्यों किया सरना आदिवासी धर्म कोड का समर्थन, नहीं थी किसी को आम सहमति की उम्मीद

जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड कॉलम के लिए झारखंड विधानसभा ने सरना आदिवासी धर्म कोड का प्रस्‍ताव सर्वसम्‍मति से पास कर दिया है। किसी को उम्‍मीद नहीं रही होगी कि इस पर आम सहमति सदन के भीतर बन जायेगी। कुछ हील-हुज्‍जत और संशोधन के साथ भाजपा का भी समर्थन मिल गया। इस अनायास समर्थन का किसी को उम्‍मीद नहीं थी। मगर यह सब अनायास नहीं था जो बाहर से दिखा। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार पार्टी विरोध की स्थिति में नहीं थी। ऐसे में पार्टी ने  धर्मांतरण करने वालों को सूची से बाहर करने वाले अपने एजेंडा को आगे बढ़ाते हुए समर्थन कर दिया। इसके पहले धर्म कोड के मुद्दे पर केंद्रीय नेतृत्‍व की हामी ली गई। जानकार बताते हैं कि सात नवंबर को भाजपा के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष जेपी नड्डा के साथ प्रदेश भाजपा अध्‍यक्ष दीपक प्रकाश और विधायक दल नेता बाबूलाल मरांडी की मुलाकात इसी सिलसिले में हुई। विस्‍तृत मंथन के बाद रणनीति तय हुई। राष्‍ट्रीय अनुसूचित जाति मोर्चा के अध्‍यक्ष, झारखंड से राज्‍यसभा सदस्‍य समीर उरांव भी मिले थे।

आदिवासी सीटों पर पिछड़ रही थी भाजपा

केंद्रीय नेतृत्‍व से दिशा निर्देश जरूर लिया गया मगर आदिवासी या सरना धर्म कोड का समर्थन एक प्रकार से भाजपा की मजबूरी थी। दरअसल झारखंड के आम आदिवासी इसे अपनी पहचान, अस्तित्‍व की लड़ाई मान रहे हैं। इसके विरोध का संदेश आदिवासियों के विरोध के रूप में जाता। झारखंड में 26 प्रतिशत से अधिक जनजातीय आबादी है। पूरा वोट बैंक है। चुनाव के मौके पर राजनीतिक दल इन्‍हें पटाने का कोई असर नहीं छोड़ते। और झारखंड की सत्‍ता से बेदखल हुई भाजपा इसे गहराई से महसूस करती है। 81 सीटों वाले झारखंड में  28 सीटें सीधे तौर पर अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। ये सीटें भाजपा के हाथों से फिसलती जा रही हैं। 2014 के विधानसभा चुनाव में इन 28 सीटों में 13 सीटों पर कब्‍जा करने वाली भाजपा 2019 के चुनाव में दो सीटों पर सिमट गई। तोरपा और खूंटी।

आदिवासियों में खलनायक नहीं बन सकती भाजपा

यह हालत तब रही जब आदिवासियों में पैठ बनाये रखने के लिए भाजपा ने विधानसभा अध्‍यक्ष की कुर्सी दिनेश उरांव को पकड़ाई थी और नवनिर्वाचित सांसद अर्जुन मुंडा को जनजातीय कल्‍याण मंत्री बनाया गया था। राज्‍यपाल द्रौपदी मुर्मू थीं। हालांकि राज्‍यपाल का पद दलीय भाव से अलग होता है। मगर संदेश तो जाता ही है। इसके बावजूद जनजातीय सीटों पर पराजय ने भाजपा को भीतर से झटका दिया। उसके बाद बाबूलाल मरांडी को पार्टी में लाने की कवायद तेज हुई। बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा का भाजपा में विलय हुआ। उनके इंतजार में भाजपा ने विधायक दल नेता की कुर्सी लंबे समय तक खाली रखी। इस कदम के बाद, ज्‍यादा दिन नहीं हुए राज्‍यसभा सदस्‍य समीर उरांव को पार्टी अनुसूचित जनजाति मोर्चा का राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष बना दिया गया। यह सब आदिवासियों में पैठ बढ़ाने का हिस्‍सा रहा। ऐसे में धर्म कोड का विरोध कर भाजपा आदिवासियों में खलनायक नहीं बन सकती थी।

धर्म कोड को लेकर 11 नवंबर को झारखंड विधानसभा के विशेष सत्र के पूर्व भाजपा विधायक दल की बैठक हुई तो पार्टी ने कहा कि सदन में पत्‍ता खोलेगी। धर्मांतरण करने वाले आदिवासियों को आरक्षण के लाभ से वंचित करने का मुद्दा भाजपा ने पकड़ा। दरअसल भाजपा की समझ रही कि पूरे आंदोलन के पीछे ईसाई मिशनरियों का बड़ा रोल रहा। ये आदिवासियों को हिंदू से काटकर अलग करना चाहते हैं। और करीब तीन प्रतिशत आदिवासी ईसाई बन चुके हैं। धर्मांतरण को लेकर भाजपा का ईसाई मिशनरी के साथ टसल रहता है। इसी को ध्‍यान में रखते हुए पिछली रघुवर सरकार ने झारखंड में धर्मांतरण विरोधीकानून बनाया था। चुनाव में इसे एजेंडे के रूप में पेश किया गया था।

कैबिनेट से पास होने के बाद सदन में प्रस्‍ताव आदिवासी/सरना धर्म कोड के रूप में आया था। भाजपा के वरिष्‍ठ विधायक नीलकंठ मुंडा ने सदन में सरना धर्म कोड का समर्थन करते हुए इसे राजनीति प्रेरित करार दिया। कहा कि जनजातीय सलाहकार परिषद में न लाकर जल्‍दबाजी की गई। दुमका उप चुनाव के मौके पर मुख्‍यमंत्री की घोषणा की वजह क्‍या है। अन्‍य दलों के भी कुछ सदस्‍य आदिवासी शब्‍द को हटाने के हिमायती थे। आपत्ति के बाद संशोधन के साथ 'सरना आदिवासी' धर्म कोड करते हुए सदन से सर्वसम्‍मत पास किया गया। माइलेज लेने में जुटी कांग्रेस को भी भाजपा ने घेरा कहा कि 1961 में जनगणना कॉलम से आदिवासियों को हटाया गया, उस समय और उसके बाद लंबे समय तक कांग्रेस की सरकार रही। 70 के दशक में कांग्रेस के वरिष्‍ठ और झरखंड के जानेमाने नेता रहे कार्तिक उरांव ने संसद में आवाज उठाई थी कि  ईसाई आदिवासियों को नौकरियों में जनजाति के नाम पर मिलने वाले आरक्षण का लाभ बंद किया जाना चाहिए। वहीं भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने इस पर खुद को बोलने का मौका नहीं दिये जाने पर सरकार की खिंचाई की। आरएसएस तो आदिवासियों को हिंदू मानता ही है, भाजपा की समझ भी इससे अलग नहीं है मगर वोट के मोह में धर्म कोड के मुद्दे पर भाजपा को समर्थन का रास्‍ता पकड़ना पड़ा। 

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