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लखनऊ शूटआउट: विवेक तिवारी का हुआ अंतिम संस्‍कार, पत्नी ने बताया जान का खतरा

उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था में सुधार के जितने दावे किए जाते हैं, हकीकत इससे काफी जुदा है। आलम यह...
लखनऊ शूटआउट: विवेक तिवारी का हुआ अंतिम संस्‍कार, पत्नी ने बताया जान का खतरा

उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था में सुधार के जितने दावे किए जाते हैं, हकीकत इससे काफी जुदा है। आलम यह है कि रोजाना प्रदेश के किसी ना किसी जिले से मानवता को शर्मशार करने की खबरें मिलती रहती हैं। चाहे वह एनकाउंटर पर सवालिया निशान हो या पुलिस का आम लोगों से संवेदनहीन व्यवहार। पुलिस की कार्यशैली में सुधार को लेकर अफसरों ने कभी संजिदगी से काम नहीं किया। जिस कारण एक के बाद एक घटनाएं सामने आ रही हैं।

विवेक तिवारी हत्याकांड में शनिवार रात मृतक की पत्नी को नगर निगम में नौकरी और 25 लाख रुपए आर्थिक मदद के आश्वासन के बाद रविवार सुबह विवेक तिवारी का अंतिम संस्कार किया गया।

इस बीच विवेक तिवारी की पत्नी ने खतरे की आशंका जताई है। उन्होंने कहा, आरोपी सिपाही और उनकी पत्नी से उन्हें जान का खतरा है। जब वह अपने आला अधिकारियों से भिड़ सकती हैं तो हमारे खिलाफ भी कुछ भी कर सकती हैं। साथ ही आज शाम को मुख्यमंत्री से मिलने का समय के लिए मंत्री बृजेश पाठक ने आश्वस्त किया है। कई ऐसी बातें हैं व्यथा है जो सीधे मुख्यमंत्री को ही बताऊंगी। हमें किसी भी तरह की कोई राजनीतिकरण से मतलब नहीं है। अरविंद केजरीवाल के बारे में किसी ने बताया कि वह जातिवाद की बात कह रहे हैं जिसका मैं विरोध करती हूं। विवेक तिवारी के पत्नी के भाई ने कहा कि उन्होंने एफआईआर में नामजद मुकदमे को लेकर तहरीर बनाई है जिस को संशोधित करने के लिए पुलिस अधिकारियों ने उनसे कहा था। लिहाजा अब एफआईआर के लिए यह तहरीर तैयार है। साथ ही हमें किसी भी राजनीतिक दल और राजनीतीकरण से मतलब नहीं है जो भी इस दुख की घड़ी में हमारे साथ इंसाफ की लड़ाई लड़ने में साथ देगा, वह हमारा अपना है वह हमारे साथ है। बाकी हमें किसी भी राजनीतिक दल और राजनैतिक करण से मतलब नहीं है। मेरी बहन को सरकारी नौकरी 3 दिन के भीतर मुआवजा और आवास के इंतजाम के लिए आश्वासन मिला है। साथ ही आज शाम या कल मुख्यमंत्री से मुलाकात के लिए भी मंत्री बृजेश पाठक ने आश्वासन दिया है इनके सामने हम अपनी बात रखेंगे आर्थिक तौर पर परिवार की हालत नाजुक है लिहाजा उन्हें जल्द से जल्द आर्थिक मदद की जरूरत है साथ ही हम सीबीआई जांच की भी मांग रखेंगे और आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा मिले

पूरे मामले में पुलिस की भूमिका शुरू से ही संदिग्ध रही और घटना में जमकर लीपापोती की कोशिश की गई, लेकिन परत दर परत मीडिया में आने के बाद पुलिस को बैकफुट पर आना पड़ा। मामले में दिन भर किरकिरी होने के बाद डीजीपी ने देर शाम इस घटना के लिए माफी मांगी। उन्होंने ट्विटर पर लिखा कि ‘व्यक्ति की कीमती जिंदगी की भरपाई किसी भी क्षमा याचना से पूरी नहीं हो सकती। न ही पीड़ित परिवार को पहुंचे इस आघात की भरपाई हो सकती है। इस तरह का आपराधिक व्यवहार निंदनीय है और सख्त सजा पाने का हकदार है। हम सजा देने और वर्दी में मौजूद बदमाशों को बाहर निकालने के लिए दृढ़ सकल्पित हैं। इनकी वहज से हमारे सिर शर्म से झुक जाते हैं। हम पुलिस का व्यवहार सुधारने और फोर्स के मानवीयकरण के लिए कदम उठाएंगे। जिसकी अब तक उपेक्षा होती रही है। अब यह हमारी सर्वोच्च् प्राथमिकता का एजेंडा रहेगा।’

हालांकि पूर्व डीजी सुब्रत त्रिपाठी का कहना है कि पहला सवाल यह है कि क्या सुधार की नीयत है। अखिलेश राज में एनकाउंटर क्यों नहीं हुआ, यही पुलिस थी। एक नियम है कि शहर में अच्छे पुलिस कर्मी रहेंगे और देहात में बुरे। आज कोई सिपाही सस्पेंड होने के बाद बहाल होता है तो उसे फिर शहर या शहर के आसपास ही तैनाती मिल जाती है। 30-30 साल से लोग लखनऊ में जमे हैं। इसके लिए सिपाही नहीं, आईपीएस दोषी हैं। आप इस समय किसी पुलिस लाईन की गिनती करा लीजिए, डेढ़ से दो सौ सिपाही गैरहाजिर मिलेंगे। लंबे समय तक किसी को छुट्टा छोड़ दो, तो वह अन्य कार्यों में लिप्त हो जाता है। यही हाल इस समय यूपी पुलिस का है।

उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के जमाने में क्रिमनल सिपाहियों की एक लिस्ट बनी थी और उनकी पोस्टिंग दूरदराज के देहात क्षेत्र में की गई थी, लेकिन वह फिर से अपनी जगह पर लौट आए। उनका कहना है कि खूंटे के बल पर बछड़ा उछलता है।

उन्होंने बताया कि आईपीएस के साथ ड्यूटी होने पर ही सिपाही को पिस्टल मिलता है। सामान्य परिस्थितियों में सिपाहियों को राईफल मिलता है। रंगबाज सिपाही पैसे देकर पिस्टल पाते हैं। कैसे आरआई ने सिपाही को पिस्टल अलॉट किया। सिपाही के साथ वरिष्ठ अधिकारी भी दोषी हैं। उन्होंने सवाल किया कि सीतापुर, अलीगढ़ में जो हुआ, उस तरह से कहीं एनकाउंटर होते थे? ये सही है क्या?

उन्होंने सरकार के मंत्रियों को भी कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री धर्मपाल सिंह का बयान आया है कि अपराधियों को ही गोली लगती है। इससे पहले रायबरेली हत्याकांड में कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्या ने कहा कि मारे गए लोग अपराधी थे। खुल्लम-खुल्ला दौड़ा कर हत्या हुई। सामूहिक हत्याकांड में मंत्री के इस प्रकार के बोल होने चाहिए?

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