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दस साल बाद राजस्थान फिर से गुर्जर आरक्षण की आग में

रामगोपाल जाट राजस्थान में बीते दस साल से चल रहा गुर्जर आरक्षण के जिन्न फिर बोतल से बाहर आ चुके है। यहां...
दस साल बाद राजस्थान फिर से गुर्जर आरक्षण की आग में

रामगोपाल जाट

राजस्थान में बीते दस साल से चल रहा गुर्जर आरक्षण के जिन्न फिर बोतल से बाहर आ चुके है। यहां पर भरतपुर, करोली, धौलपुर सहित तमाम पूर्वी जिलों में गुर्जर बड़ी तादात में है। राज्य सरकार आंदोलन की आग को शांत करने के लिए तीन कैबिनेट मंत्रियों वाली कमेटी बनाई है। कल देर रात तक राजस्थान सचिवालय में इन्होंने मंथन कर गुर्जर नेता हिम्मत सिंह के हाथ सरकारी फॉर्मूला महापंचायत को भेजा है, जिसपर आज होने जा रही बैठक में मंथन किया जाएगा।

सरकार ने अपने पत्र में कहा है कि उनको साल 2016 से एक फीसदी आरक्षण का बैकलॉग का लाभ दिया जाएगा। साथ ही रोहिणी कमेटी के आधार पर बाकि 4 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा। इस पर आज गुर्जर नेताओं को निर्णय करना है।सचिवालय में मीटिंग से निकलने के बाद गुर्जर आरक्षण के प्रवक्ता हिम्मत सिंह ने बताया कि सरकार की तरफ से वार्ता के बाद 9 बिंदुओं वाला एक प्रस्ताव दिया गया है, जिस पर आज गुर्जर महापंचायत में विचार कर आगे का निर्णय लिया जाएगा।

राज्य सरकार ने गुर्जरों को एसटी में शामिल करने पर जताई थी सहमति

दरअसल, यह आंदोलन तब हुआ था, जब राजस्थान में वर्तमान मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की ही पहली सरकार थी। साल 2006-2007 में हुई। दो साल तक चले उस उग्र आंदोलन में 72 गुर्जरों की पुलिस फायरिंग में मौतें हो गई थीं, जिसके बाद राज्य सरकार ने गुर्जरों को एसटी में शामिल करने पर सहमति जताई, लेकिन केंद्र सरकार ने इसको मानने से इनकार कर दिया था।

केंद्र सरकार और एसटी समुदाय ने जताया था कड़ा ऐतराज  

दूसरी तरफ एसटी समुदाय ने भी कड़ा ऐतराज जताया था। आपको यह भी बता दें कि गुर्जर आंदोलन के जनक और गुर्जर नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला को बीजेपी ने 2009 के लोकसभा चुनाव में टोंक-सवाई माधोपुर से टिकट देकर मैदान में उतारा, लेकिन वह कुछ वोटों के अंतर से नमोनारायण मीणा के सामने हार गए थे।

बाद में राज्य में कांग्रेस की सरकार सत्ता में आई, तो गुर्जरों ने अलग से आरक्षण की मांग कर दी। इस पर विशेष पिछड़ा वर्ग के नाम से फॉर्मूला आया, जिसके तहत गुर्जरों को 50 प्रतिशत से उपर है। गुर्जर नेताओं ने कह दिया कि उनको पांच फीसदी आरक्षण चाहिए। राजस्थान सरकार के साथ बात करने के बाद राज्य में गुर्जरों का आंदोलन खत्म कर दिया गया।

राज्य सरकार ने कानून बनाकर उन्हें विशेष पिछड़ा वर्ग के तौर पर 5 फीसदी आरक्षण देने का वादा किया और राज्य विधानसभा में बिल पास कर उसे केंद्र सरकार के पास 9वीं अनुसूची में डालने के लिए भेज दिया गया। लेकिन मामला कोर्ट में ही अटक गया, क्योंकि सवैंधानिक रूप से आरक्षण कोटा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुर्जरों को 50 फीसदी से उपर आरक्षण नहीं दिया जा सकता। इसलिए एक फीसदी आरक्षण को प्रस्ताव दिया। अब भी मामला कोर्ट में है और राज्य सरकार की तमाम भर्तियों में एक फीसदी आरक्षण के साथ नियुक्यिों का दौर चल रहा है। ऐसे में जब 1.28 लाख सरकारी नौकरियां होने जा रही है तो गुर्जरों ने फिर से आरक्षण का झंड़ा बुलंद कर दिया है।

यह है गुर्जर आरक्षण आंदोलन का इतिहास

पिछले एक दशक पर नजर दौडाएं तो करीब-करीब हर साल गुर्जरों का आंदोलन हुआ है। आरक्षण की व्यवस्था के चलते कई समाज किस तरह से तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, इसको देखते हुए गुर्जर भी अपने लिए अलग से आरक्षण चाहते हैं। इस बीच राज्य की दोनों सरकारों ने कानून पास किए, किंतु अदालतों में वो टिक नहीं पा रहे हैं।

सबसे पहले साल 2006 में भी गुर्जर आंदोलन शुरू किया। इसके बाद 2007 में शुरू हुए उग्र आंदोलन में 23 मार्च को पुलिस फायरिंग में 26 जने मारे गए। फिर साल 2008 में भी आंदोलन ने फिर जोर पकड़ा। पूर्वी जिलों दौसा और भरतपुर में गुर्जर पटरियों और सड़कों पर बैठे गए।

इस दौरान पुलिस के द्वारा कानून-व्यवस्था बनाने के लिए मजबूरन फायरिंग की गई, जिसमें 38 लोग मारे गए। कई दिनों तक गुर्जर रेल की पटरियों पर बैठे रहे, बसों को आग के हवाले कर दिया गया। लोगों के पास दिल्ली और आगरा जाने वाला रास्ता बंद रहा। पुलिस के बस से बाहर होते मामले को देखते हुए सेना बुलाई गई। बाद में वार्ता कर सारा मामला पटरी पर लौटा।

यह है फाइल फेक्ट

देश के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों के कई राज्यों में गुर्जर समुदाय की क़रीब साढ़े पांच करोड़ आबादी है, जिनमें से 11 फीसदी के करीब, मतलब लगभग 6 लाख गुर्जर राजस्थान में निवास करते हैं। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर और उससे सटे हुए हिमाचल प्रदेश में भी गुर्जरों को अनुसूचित जनजाति यानी आदिवासियों का दर्जा प्राप्त है। लेकिन राजस्थान में गुर्जर ओबीसी में शामिल हैं। यहां पर 27 फीसदी आरक्षण में जाट, माली, कुमावत सहित 52 जातियां शामिल हैं। लेकिन गुर्जरों को लगता है कि उन तक ओबीसी के आरक्षण का लाभ पहुंच नहीं पा रहा है।

गुर्जरों की मांग है कि उनको आदिवासी समुदाय में शामिल किया जाए, जिसके वे हकदार हैं। लेकिन उनकी मांग के विरोध में राज्य की मीणा जाति भी आंदोलन कर चुकी है। इससे लगता है कि यदि गुर्जरों को आदिवासी मानकर एसटी में शामिल गया किया तो मीणाओं का हिस्सा कट जाएगा।

इस तरह चला है घटनाक्रम

राज्य की इस दौरान सत्ता में रहीं तीनों सरकारें गुर्जरों की मांग मानती रहीं, किंतु अदालतों में फैसले खारिज होते रहे हैं। साल 2003 के विधानसभा चुनावों में सबसे पहले भारतीय जनता पार्टी ने ही गुर्जरों को एसटी वर्ग में आरक्षण देने का वादा किया था।

वर्ष 2008 में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सरकार ने गुर्जरों को एसबीसी का दर्जा देते हुए 5 फीसदी आरक्षण देने की घोषणा की थी। इसके साथ ही, आर्थिक तौर पर कमजोर समुदायों के लिए भी 14 फीसदी आरक्षण की घोषित की थी। जिसके राजस्थान हाइकोर्ट ने इसे रद्द कर दिया।

कोर्ट ने कहा कि सरकार के इस फैसले से आरक्षण 68 फीसदी हो जाता है, जो कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ है। इसके बाद 2012 में राज्य की कांग्रेस सरकार ने गुर्जरों सहित 5 जातियों को 5 फीसदी का आरक्षण का वादा किया। मगर इसको भी साल 2013 में हाइकोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इससे भी आरक्षण 54 फीसदी हो जाएगा। गुर्जर नेताओं का अब कहना है कि भले ही उनको आदिवासी दर्जा भले न मिले, लेकिर 50 फीसदी की संवैधानिक सीमा के अंदर ही 5 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए।

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