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कर्नाटक के अयोग्य विधायकों की उपचुनाव संबंधी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार

कर्नाटक के अयोग्य विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में उपचुनाव रोकने की मांग की है। इसको लेकर विधायकों ने...
कर्नाटक के अयोग्य विधायकों की उपचुनाव संबंधी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार

कर्नाटक के अयोग्य विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में उपचुनाव रोकने की मांग की है। इसको लेकर विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दी है। याचिका पर सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान अयोग्य विधायकों की ओर से मुकुल रोहतगी ने कहा कि इन सीटों पर उपचुनाव को फिलहाल रोका जाए। कर्नाटक में अयोग्य ठहराए गए 15 विधायकों की सीट पर उपचुनाव कराए जाएं या फिर इन विधायकों को भी चुनाव लड़ने की इजाजत दी जाए, इस पर अब सुप्रीम कोर्ट बुधवार यानी 25 सितंबर को सुनवाई करेगा।

उपचुनाव पर अयोग्य विधायकों की आपत्ति 

याचिका पर सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने बहस की शुरुआत करते हुए कहा कि सभी विधायकों ने इस्तीफा दिया था और स्पीकर द्वारा अयोग्य ठहराए जाने को इन्होंने 8 सप्ताह के अंदर चुनौती दी थी तो अब इस मामले की सुनवाई होनी चाहिए। अयोग्य विधायकों का कहना है कि उनकी याचिका सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही लंबित है। अगर उपचुनाव हुए तो उनकी याचिका निष्प्रभावी हो जाएगी।

अयोग्य घोषित करने के स्पीकर के फैसले पर सवाल उठाया

बागी विधायकों ने यह भी तर्क दिया कि उनमें से अधिकांश ने पहले ही इस्तीफा दे दिया था और उनके इस्तीफे पर फैसला करने के बजाए स्पीकर ने उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया जो कि अवैध है। यह भी तर्क दिया कि अध्यक्ष ने 'प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत' का उल्लंघन किया था क्योंकि अयोग्यता से पहले कोई सुनवाई नहीं की गई थी।

बता दें कि दरअसल सुप्रीम कोर्ट कर्नाटक के 17 अयोग्य विधायकों द्वारा तत्कालीन स्पीकर रमेश कुमार के आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं की एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है जिसमें उनके इस्तीफे को खारिज कर दिया गया था और उन्हें 15वीं कर्नाटक विधानसभा के कार्यकाल के लिए फिर से विधायक होने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया था। विधायकों की येदियुरप्पा मंत्रालय में शामिल नहीं किया जा सकता क्योंकि उन्हें अयोग्य घोषित किया गया था।

विधायकों ने अयोग्य ठहराए जाने को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन बताया क्योंकि शीर्ष अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा था कि विश्वास मत के दौरान सदन में उपस्थित होने के लिए बाध्य करने के लिए स्पीकर द्वारा कोई कदम नहीं उठाया जा सकता। उन्होंने अध्यक्ष पर 10वीं अनुसूची के प्रावधानों के तहत अयोग्य ठहराने के आरोपों को गलत बताया और कहा है कि अनिवार्य नोटिस अवधि के बिना निर्णय लिया गया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि अध्यक्ष ने संविधान के वर्गों की व्याख्या को जानबूझकर विकृत किया।

 

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