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अमृत की आस पर बदइंतजामी का पहरा

सिंहस्थ कुंभ के बहाने उज्जैन स्मार्ट सिटी तो बन गया लेकिन मेले के इंतजाम को लेकर प्रशासन पर उठ रहे कई सवाल
अमृत की आस पर बदइंतजामी का पहरा

तीन साल से चल रही भारी भरकम तैयारियों के बावजूद श्रीकृष्ण की शिक्षा नगरी उज्जैन में 'सिंहस्थ-2016’ के जरूरी इंतजामों को आखिरी मौके तक पूरा करने के लिए सरकार को जोर लगाना पड़ा। क्षिप्रा में डुबकी लगाकर अमृत की आस लिए आ रहे लोगों पर तंत्र की बदइंतजामी भारी पड़ती दिखी। अफसरों से नाखुश साधुओं को साधने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुद तीन दफा उज्जैन के चक्कर लगाए तो सिंहस्थ के प्रभारी मंत्री भूपेंद्र सिंह ठाकुर को संतों के आश्रमों की महीने भर तक रोज गणेश परिक्रमा करना पड़ी।

अब तमाम धींगामुस्ती के बावजूद उज्जैन में सिंहस्थ शुरू हो चुका है। साधु-संत लीन हो चुके हैं और तीर्थयात्री भी आस्था के रंग में रंग चुके हैं। इसमें कोई शक नहीं कि सिंहस्थ के बहाने उज्जैन शहर मध्य प्रदेश का सबसे स्मार्ट शहर बन गया है।

सिंहस्थ कुंभ केवल हिंदू धर्मावलंबियों का ही पर्व नहीं है। तपोभूमि प्रणेता जैन संत मुनि प्रज्ञासागर महाराज कहते हैं कि सिंहस्थ को महावीर स्वामी की प्रतीक परंपरा के रूप में भी देखा जा सकता है। इसमें तीन सौ विभिन्न धर्मों के 3600 पंथ शिरकत करते आ रहे हैं इसलिए सिंहस्थ सर्वधर्म का महाकुंभ है। उज्जैन सिंहस्थ 2016 के लिए सरकार ने तीन साल से भी ज्यादा पहले से तैयारियां शुरू कर दी थीं। ऐसा लगता था कि पहली बार सारे इंतजाम सहजता से पूरे हो जाएंगे लेकिन सरकार के संकल्प पर तंत्र की इच्छाशक्ति का अभाव भारी पड़ता दिखा। पहली बार ऐसा हुआ है जब सिंहस्थ की तैयारियों पर सरकारी खजाने की तंगदिली देखने को नहीं मिली। मुख्यमंत्री शिवराज और उनकी प्रशासनिक टीम ने जबरदस्त दरियादिली दिखाई। वर्ष 2004 का सिंहस्थ 260 करोड़ में निपटा था। इस बार उज्जैन प्रशासन ने सिंहस्थ कराने के लिए 1,250 करोड़ की मांग रखी थी। लेकिन मुख्य सचिव एंटोनी डिसा ने 2400 करोड़ की सिफारिश की। इसके बावजूद समय बीतने के साथ खर्चे बढ़ते गए और काम पिछड़ते गए। अब इस बार के सिंहस्थ में खर्च का आंकड़ा चार हजार करोड़ रुपये पार कर चुका है। सिंहस्थ के आयोजन को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लगा कि नौकरशाहों  की टीम सिंहस्थ की नैया पार लगा देगी लेकिन कामों की गति धीमी हो गई। खासतौर से साढ़े तीन हजार हेक्टेयर क्षेत्र में फैले मेला क्षेत्र में साधु-संतों और अखाड़ों के अस्थायी बसाहटों में पानी पहुंचाने का काम बेहद सुस्त था।

उज्जैन सिंहस्थ के प्रभारी मंत्री भूपेंद्र सिंह के कड़े ऐतराज के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मार्च के पहले हफ्ते में हरकत में आए। लेकिन पानी और टॉयलेट को लेकर साधुओं के बढ़ते गुस्से को देखते हुए भूपेंद्र सिंह ने मुख्यमंत्री को साफ कर दिया कि हालात नहीं सुधरे तो आधे साधु लौट जाएंगे और आधे सड़कों पर चक्काजाम करेंगे। इसके बाद मुख्यमंत्री ने सभी संबंधित विभागों को प्रमुख सचिवों को भोपाल छोड़कर उज्जैन में डेरा डालने की हिदायत दी। 

ओंकार साधना केंद्र में स्वामी हिरन्यानंद जी के आश्रम का प्रबंधन संभाल रहे विवेक तिवारी का कहना है कि अफसरों से लाख गुहार करने के बाद हालात सुधर नहीं रहे। कमोबेश यही शिकायत जूना पीठाधीश्वर अवधेशानंद महराज के उज्जैन कैंप के प्रभारी नचिकेता गिरी ने आउटलुक से कहा सरकार ने सिंहस्थ के बहाने उज्जैन शहर को तो स्थायी सौगात के बतौर काफी दे दिया। लेकिन साधु-संतों के मोर्चे पर मदद की प्रशासनिक अफसरों में उत्कंठा की कमी है। उज्जैन सिंहस्थ के प्रभारी मंत्री भूपेंद्र सिंह का दावा है किसिंहस्थ मेला समिति के साथ उन्होंने मेला क्षेत्र के सभी छह जोन में निरंतर फीडबैक लेने के लिए तंत्र से हटकर अपने नुमाइंदे तैनात किए हैं। उज्जैन में बरसों से सिंहस्थ को नजदीकसे देख रहे समाजसेवी रवि लंगर कहते हैं कि पानी, साफ सफाई और कानून व्यवस्था के मोर्चे पर सरकार को कड़ी चुनौती मिलने वाली है।

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