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यूपी में 14 लाख से अधिक प्रवासी लौटे, अनुभव के हिसाब से इन्हें काम दिलाएगी राज्य सरकार

यूपी बॉर्डर से लेकर प्रदेश के अलग अलग हिस्सों में प्रवासी मजदूरों की घर वापसी की दुश्वारी भरी...
यूपी में 14 लाख से अधिक प्रवासी लौटे, अनुभव के हिसाब से इन्हें काम दिलाएगी राज्य सरकार

यूपी बॉर्डर से लेकर प्रदेश के अलग अलग हिस्सों में प्रवासी मजदूरों की घर वापसी की दुश्वारी भरी यात्राओं की कहानियां लगातार सामने आ रही है। इस बीच उम्मीद भरी खबर है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने उनके लिए प्रदेश में रोजगार की संभावनाओं के काम को तेजी से आगे बढ़ाया है। अधिकारियों का दावा है कि मुख्यमंत्री के निर्देश पर विभिन्न क्षेत्रों में कुल 20 लाख से अधिक रोजगार की संभावनाओं पर काम किया जा रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दावा किया है कि प्रदेश के 14 लाख प्रवासी श्रमिकों को उनके घर पहुंचाया जा चुका है।

प्रदेश में पहली बार तैयार हो रहा श्रमिकों का डेटा बैंक

यूपी के श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने आउटलुक को बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर प्रवासी श्रमिकों को रोजगार देने की संभावनाएं तलाशने के लिए हमने उद्योग मंत्री सतीश महाना, एमएसएमई विभाग के मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह के साथ मिलकर विस्तृत कार्ययोजना बनाई है। इस कार्ययोजना की रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंप दी गई है। मौर्य कहते हैं, “पहली बार उत्तर प्रदेश में प्रवासी श्रमिकों के बारे में विस्तृत डेटा जुटाया जा रहा है। सरकारी साधनों से आने वाले सभी श्रमिकों के डिटेल क्वारेंटीन के दौरान ही जुटाए जा रहे हैं। इसमें उन श्रमिकों के काम के अनुभव से लेकर तमाम जरूरी सूचनाएं दर्ज की जा रही हैं। 

अनुभव के हिसाब से श्रमिकों की होगी सहायता

श्रम मंत्री स्वामी कहते हैं, इसी जानकारी के आधार पर उन्हें रोजगार देने की कोशिश की जाएगी। इनमें सभी तरह के लोग हैं। छोटे मोटे कारोबार करने वालों से लेकर मेहनत मजदूरी करने वाले सभी इसमें शामिल हैं। सरकार की पूरी कोशिश है कि उनको उनके अनुभव के हिसाब से ही प्रदेश में काम मिल जाए। लेकिन इसमें थोड़ा वक्त लग सकता है। श्रम मंत्री ने कहा कि चोरी छिपे आने वाले प्रवासी श्रमिकों का डिटेल पता करना जरूर एक बड़ी चुनौती है। लेकिन हमारी कोशिश है कि जिनके बारे में हमारे पास जानकारी है, उन्हें काम अवश्य मिले। श्रम मंत्री ने बताया कि जिन लोगों को निर्माण क्षेत्र में मजदूरी का अनुभव है, उन्हें उसी क्षेत्र में समायोजित किया जाएगा। दूसरे प्रदेशों में छोटे मोटे रोजगार करके जीवन यापन करने वालों को सरकारी योजनाओं के जरिए कर्ज दिलाकर उन्हें फिर से रोजगार खड़ा करने का अवसर दिया जाएगा। 

प्रवासी श्रमिकों की जिलावार सूची को सरकारी पोर्टल पर भी डाला जाएगा। श्रमिकों की जिलावार सूची बनने के बाद नियोक्ताओं के लिए भी आसानी होगी कि वह जरूरत के हिसाब से उनका चयन कर सकें। 

विपक्ष ने अफसरों की मंशा पर जताई शंका

प्रवासी मजदूरों के रोजगार को लेकर उम्मीद के विपरीत विपक्ष में कई आशंकाएं भी दिख रही हैं। मायावती की सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री रहे दद्दू प्रसाद कहते हैं, “बाहर से आने वाले श्रमिकों को लेकर मुख्यमंत्री योगी की मंशा अच्छी दिखाई दे रही है। लेकिन प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी मजदूर विरोधी है। वे उद्योगों को फायदा पहुंचाने के लिए मजदूरों के हकों का बलिदान करने में जरा भी नहीं हिचकते।” पूर्व कैबिनेट मंत्री ने कहा कि नोटबंदी को लागू करने के लिए तो फिर भी आकस्मिक फैसले की जरूरत थी लेकिन लॉकडाउन का फैसला करने से पहले अगर तैयारी होती तो श्रमिकों को अपने घर लौटने में पहाड़ से भी ऊंची कठिनाइयों से नहीं गुजरना पड़ता। प्रधानमंत्री मोदी को देश के श्रमिकों की जरा भी चिंता नहीं है। वे मध्यवर्ग और एलिट क्लास से तालियां, घंटी और शंख बजवा कर खुश हो रहे हैं। उन्होंने अपने किसी भी संबोधन में श्रमिकों को लेकर कोई बात नहीं की। कोई संवेदनशीलता नहीं दिखाई।

.. हालात ठीक होते फिर वापस लौट जाएंगे श्रमिक

इस मसले पर सियासी घमासान के बीच अर्थशास्त्रियों को जमीन पर अभी कई मोर्चे खुलते दिखाई दे रहे हैं। अर्थव्यवस्था की ‘पुश और पुल थ्योरी’ को समझाते हुए अर्थशास्त्री राजेंद्र पी ममगाईं कहते हैं, “आधी अधूरी कोशिशों से श्रमिकों को रोक पाना आसान नहीं होगा। बेहतर संभावनाओं की तलाश में पलायन होता है। अगर हम लोगों के लिए बेहतर जिंदगी का माहौल नहीं बना पाएंगे तो यह रुकने वाला नहीं। स्थिति एक बार फिर सामान्य होते ही श्रमिक वापस उन्हीं जगहों पर जाने लगेंगे जहां उन्हें श्रम की बेहतर कीमत मिलेगी। बेहतर जिंदगी मिलेगी। अगर सरकार को पलायन रोकना है तो इसके लिए ठोस कार्ययोजना पर काम करना होगा, जिसमें मजदूरों को अपना भविष्य सुरक्षित और सुनहरा दिखाई दे।”  प्रोफेसर ममगाईं का कहना है कि बिना माइग्रेंट लेबर के कोई भी अर्थव्यवस्था चलती नहीं। उनका सुझाव है कि सरकार को माइग्रेशन वेलफेयर फंड की स्कीम लेकर आना चाहिए ताकि उद्योगों के लिए सस्ते श्रमिक की जरूरत के साथ श्रमिकों की बेहतर जिंदगी का तालमेल बिठाया जा सके। श्रमिकों की काम करने की शर्तों के साथ समझौता नहीं किया जा सकता।

पलायन रोकने को भ्रष्टाचार पर काबू जरूरी 

श्रमिकों के लिए प्रदेश में रोजगार सृजन की राह में भ्रष्टाचार के कांटे भी है। गोरखपुर समेत प्रदेश के 13 जिलों के एक सर्वेक्षण में सामने आया है कि स्टार्टअप के लिए मंजूर सरकारी कर्जे का इस्तेमाल किसी उद्यम के लिए नहीं किया जा रहा है। जाहिर है इससे पैदा होने वाली रोजगार की संभावनाएं भ्रष्टाचार के कारण दम तोड़ रही हैं। गिरि इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज की असिस्टेंट प्रोफेसर नोमिता पी कुमार कहती हैं, सरकार को खेती आधारित उद्योगों में निवेश की बड़ी योजनाएं बनानी चाहिए, ताकि वहां पर श्रमिकों के लिए रोजगार की संभावनाएं बन सकें। इसके अलावा किसानों को अपने उत्पाद बेचने के लिए सरकार को मार्केटिंग की अच्छी संभावनाओं पर भी काम करना होगा। कृषि क्षेत्र में इस संतुलन को बनाए बगैर यदि खेती आधारित कामों के लिए ही श्रमिकों को निर्भर छोड़ दिया गया तो हालात में कोई सुधार नहीं होगा। क्योंकि इस क्षेत्र में पहले से ही सरप्लस लेबर है। 

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