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'रसगुल्ले' पर प. बंगाल और ओडिशा की लड़ाई, इस राज्य ने मारी बाजी

आखिरकार ओडिशा के रसगुल्ला (Odisha Rasagola) को जीआई ( जियोग्राफिकल इंडीकेशन अर्थात भौगोलिक सांकेतिक) टैग की...
'रसगुल्ले' पर प. बंगाल और ओडिशा की लड़ाई, इस राज्य ने मारी बाजी

आखिरकार ओडिशा के रसगुल्ला (Odisha Rasagola) को जीआई ( जियोग्राफिकल इंडीकेशन अर्थात भौगोलिक सांकेतिक) टैग की मान्यता मिल गई है। भारत सरकार के जीआई रजिस्ट्रेशन की तरफ से यह मान्यता दी गई है। जीआई मान्यता को लेकर चेन्नई जीआई  रजिस्ट्रार की तरफ से विज्ञप्ति प्रकाशित कर यह जानकारी दी गई है। पश्चिम बंगाल से 'रसगुल्ला' पर कॉपीराइट पाने की लड़ाई हारने के लगभग दो साल बाद ओडिशा के रसगुल्ले को जीआई टैग मिला है।

रसगुल्ला को लेकर ओडिशा और पश्चिम बंगाल के बीच विवाद चल रहा था। 2017 में बंगाल के रसगुल्ला को जीआई टैग मिल भी गया था। इसके बाद 2018 फरवरी महीने में ओडि़शा सूक्ष्म उद्योग निगम की तरफ से चेन्नई में मौजूद जीआई कार्यालय में विभिन्न प्रमाण के साथ नथीपत्र दाखिल किया गया था। इसके बाद आज  29 जुलाई 2019 को ओडिशा के रसगुल्ला को जीआई टैग मिला है। वहीं 2018 में, एक जनहित याचिका ओडिशा उच्च न्यायालय में दायर की गई थी जिसमें 'ओडिशा रसागोला’ के लिए जीआई टैग' की मांग की गई थी।

क्या है दोनों राज्यों के दावे?

पश्चिम बंगाल सरकार ने दावा किया था कि उनके राज्य में 1868 में नबीन चंद्र दास द्वारा द्वारा रसगुल्ले का आविष्कार किया गया था, जबकि ओडिशा ने दावा किया था कि पुरी में पहली बार 12 वीं शताब्दी में भगवान जगन्नाथ मंदिर में यह मिठाई परोसी गई थी।

क्या है जीआई टैग?

रसगुल्ले को भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत 'ओडिशा रसागोला' के रूप में पंजीकृत किया गया है। ओडिशा रसागोला का जीआई टैग 22 फरवरी, 2028 तक वैध रहेगा।

विश्व व्यापार संगठन के तहत जीआई टैग या भौगोलिक संकेत प्रदान किया जाता है। यह टैग किसी विशेष स्थान से उत्पन्न होने वाले उत्पाद की पहचान करता है। जीआई टैग किसी उत्पाद की गुणवत्ता और उसके अलग पहचान का सबूत है।

उदाहरण के लिए चंदेरी की साड़ी, कांजीवरम की साड़ी, दार्जिलिंग चाय और मलिहाबादी आम समेत अब तक 300 से ज्यादा उत्पादों को जीआई मिल चुका है।

 

 

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