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मोगली लैंड में नहीं बनेगी टाइगर सफारी

बाघ संरक्षण के लिए शीर्ष इकाई एनटीसीए ने मध्य प्रदेश के पेंच राष्ट्रीय उद्यान में टाइगर सफारी के निर्माण में कानूनों का कथित उल्लंघन पाया है और आशंका जताई है कि इससे इन जंतुओं का शिकार होने लगेगा।
मोगली लैंड में नहीं बनेगी टाइगर सफारी

यह राष्ट्रीय उद्यान मोगली के घर के रूप में प्रसिद्ध है। इस पर अंग्रेजी लेखक रूडयार्ड किपलिंग ने द जंगल बुक लिखी है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के तहत यह एक सांविधिक संस्था है। इस संस्था ने राज्य सरकार को पत्र लिख कर कहा है कि राष्ट्रीय उद्यान के अंदर चल रहा टाइगर सफारी का निर्माण कार्य बाघों के लिए हानिकारक है और वे शिकार के लिए सुलभ हो जाएंगे।

मध्य प्रदेश वन विभाग पेंच और बांधवगढ़ में टाइगर सफारी के निर्माण से पहले केंद्रीय प्राणि उद्यान प्राधिकरण की इजाजत लेने में नाकाम रहा है। यह कदम इसलिए मायने रखता है कि कई वन्यजीव कार्यकर्ता पेंच और बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में टाइगर सफारी के निर्माण पर ऐतराज जता रहे हैं। उनका दावा है कि यह बाघों के लिए नुकसानदेह होगा।

राज्य सरकार की योजना पेंच में 550 से अधिक पेड़ों को काटने की है ताकि टाइगर सफारी के लिए रास्ता बन सके। इस कदम की भी कार्यकर्ताओं ने आलोचना की है।

मौजूदा दिशा-निर्देश किसी राष्ट्रीय उद्यान या रिजर्व के बफर इलाके में टाइगर सफारी के निर्माण की इजाजत देते हैं ताकि बाघों के मुख्य आवास से दबाव कम किया जा सके।

पेंच में टाइगर सफारी के चल रहे निर्माण कार्य में विभिन्न नियमों एवं दिशा-निर्देशों का उल्लंघन हुआ है। इससे बाघों का बिखराव होगा और वे मानव बहुल क्षेत्रों में पहुंचेंगे। फिर उनका शिकार आसानी से किया जा सकेगा।

पिछले आठ महीनों में पेंच के अंदर और आसपास आठ बाघ मृत पाए गए थे जिनके बारे में दावा किया जा रहा है कि उनका शिकार हुआ है। वन्यजीव कार्यकर्ता अजय दूबे ने दावा किया है कि राज्य सरकार बाघ रिजर्व के अंदर गैर कानूनी पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए हरित नियमों का उल्लंघन कर रही है। इससे इसके अंदर रह रहे बाघों को खतरा हो सकता है।

दूबे ने पेंच और बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यानों में टाइगर सफारी के निर्माण के खिलाफ पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र भी लिखा था। बाघों की आबादी के मामले में मध्यप्रदेश का देश में कर्नाटक और उत्तराखंड के बाद तीसरा स्थान है।

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