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शव दफनाने के लिए दो गज जमीन को भटक रहे हैं पाकिस्तान से आए दलित हिंदू

वो जिन्दा है तो हजार दुश्वारियां हैं। पाकिस्तान से पनाह की मुराद लेकर भारत आए दलित हिन्दुओं को अपने...
शव दफनाने के लिए दो गज जमीन को भटक रहे हैं पाकिस्तान से आए दलित हिंदू

वो जिन्दा है तो हजार दुश्वारियां हैं।

पाकिस्तान से पनाह की मुराद लेकर भारत आए दलित हिन्दुओं को अपने किसी परिजन की मौत के बाद श्मशान नहीं मिल पा रहा है। राजस्थान के जोधपुर शहर में इन दलित हिन्दुओं ने शरण ले रखी है। इन दलित हिन्दुओं की मेघवाल बिरादरी में शव को दफनाने की परम्परा है क्योंकि वे खुद को लोक देवता बाबा रामदेव का भक्त बताते हैं और उनमें मौत के बाद अग्नि संस्कार की बजाय दफनाने का रिवाज है।

पाकिस्तान से आए इन हिन्दुओं ने बताया कि जब भी किसी बुजर्ग की मौत हुई, स्थानीय लोगों ने शव दफनाने का विरोध किया। नतीजन उन्हें शव लेकर यहां-वहां भटकना पड़ा। मौत की कौन मुराद करता है लेकिन पिछले साल जब पाकिस्तान से आया चतुराराम मेघवाल भारत की नागरिकता मिलने की फरियाद लिए ही दुनिया से रुखसत कर गया तो उसकी अंतिम क्रिया में बहुत मुश्किलें आई। पाकिस्तान से भारत आए लीलाधर मेघवाल कहते हैं उस दिन सविंधान निर्माता बाबा साहब अम्बेडकर की जयंती थी। मगर दलितों का पूरा दिन उस दिवंगत देह को श्मशान में जगह देने की मिन्नतों में ही गुजर गया।

लीलाधर मेघवाल बताते हैं कि जोधपुर के चांदना भाखर इलाके में दशकों पुराना श्मशान है। जब वे शव लेकर श्मशान पहुंचे तो स्थानीय हिन्दुओं ने दफनाने का विरोध किया। मेघवाल कहते हैं, 'वे मिन्नते करते रहे मगर किसी का भी दिल नहीं पसीजा। फिर वे शव लेकर पुलिस थाने गए। अंतत पुलिस ने दखल किया और इतनी ही छूट दी गई कि अगली बार चांदना भाखर श्मशान में पाकिस्तान से आए हिन्दू मेघवाल अपने किसी परिजन की मौत पर अंतिम क्रिया नहीं कर सकेंगे। ये पाकिस्तानी हिन्दू कहते हैं अब जब भी कोई मौत होती है, उन्हें शव लेकर भटकना पड़ता है।' 

यह विवाद बढ़ा तो स्थानीय लोगों ने श्मशान के वन भूमि होने का मसला खड़ा कर दिया। पाकिस्तान से आए जोधाराम मेघवाल कहते है 'पूरी कॉलोनी ही वन भूमि पर बसी है फिर हमे ही क्यों वर्षो पुराने श्मशान के इस्तेमाल से रोका जा रहा है। जोधाराम मेघवाल दर्द के साथ कहते हैं, 'हम पहले ही पाकिस्तान में सितम का शिकार होते होते भारत आए है। मगर अब यहां भी ऐसा सलूक होता है दिल टूटता है।'

सूबा सिंध से आए साधुराम बारूपाल कहते हैं, 'हम लोग बाबा रामदेव का अनुशरण करते है। हमारे यहां शव को दफनाने का रिवाज है। अग्नि संस्कार महंगा पड़ता है और उसमें बहुत सा विधि विधान भी करना पड़ता है जो एक गरीब दलित के लिए सम्भव नहीं है। लेकिन अब हमे अपनी परम्परा तोड़ने के लिए कहा जा रहा है। ये दलित हैरान है कि जब उन पर विपत्ति आई कोई भी हिन्दू संघटन मदद के लिए खड़ा नहीं हुआ। इन दलितों के अनुसार बाबा रामदेव का जन्म स्थान और आस्था स्थली जैसलमेर जिले में है मगर सरहद के उस पार सिंध और पंजाब में भी बाबा रामदेव के अनेक मंदिर है।

पाकिस्तानी हिन्दुओं के हित और हको की लड़ाई लड़ रहे सीमान्त लोक संगठन के हिन्दू सिंह सोढा कहते हैं, 'ये एक बड़ी आबादी है, सरकार को कोई जगह श्मशान के लिए मुकर्रर करनी चाहिए। क्योंकि ये लोग पहले ही बहुत संकट से गुजर कर भारत पहुंचे है। ये हिन्दू कहते हैं सब जीने की दुआ करते है। मगर उनके लिए दुआ का सबब ही बदल गया है। क्योंकि अब लोग कहते है जब तक कोई मरघट मुकर्रर नही हो, किसी को मौत न आए। राज्य सरकार ने यह मामला स्थानीय प्रशासन पर छोड़ रखा है। राज्य के गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया से पूछा, तो उनका कहना है कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है। क्योंकि वे अभी इन हिन्दुओं के भारत की नागरिकता के लिए काम कर रहे हैं।'        

जिंदगी जलवों में बसर हो यह जरूरी तो नहीं मगर कौन चाहेगा दुनिया से उसकी अंतिम यात्रा भी खराब हो। दिल्ली में अपना तख्तों ताज खो चुके बहादुर शाह जफर भी रंगून की कैद-ए-तन्हाई में यही तड़प लिए चला गया कि दो गज जमीन भी न मिली कुए यार में। इन हिन्दुओं में तड़प तो वैसी है मगर न तो ये बादशाह है न ये शायर। ऐसे में कौन इनकी गुहार सुनेगा।     

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