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केरल: सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ शिव सेना 1 अक्टूबर को करेगी हड़ताल

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर अपना फैसला सुनाया...
केरल: सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ शिव सेना 1 अक्टूबर को करेगी हड़ताल

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर अपना फैसला सुनाया था। कोर्ट का फैसला महिलाओं के पक्ष में है। कोर्ट ने साफ कहा कि हर उम्र वर्ग की महिलाएं अब मंदिर में प्रवेश कर सकेंगी। लेकिन शिवसेना को सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर ऐतराज है। पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में 1 अक्टूबर को केरल में 12 घंटे की हड़ताल का आह्वान किया है। 

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई याचिका में उस प्रावधान को चुनौती दी गई है, जिसके तहत मंदिर में 10 से 50 वर्ष आयु की महिलाओं के प्रवेश पर अब तक रोक थी। कहा गया कि अगर महिलाओं का प्रवेश इस आधार पर रोका जाता है कि वे मासिक धर्म के समय अपवित्र हैं तो यह भी दलितों के साथ छुआछूत की तरह है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला 4-1 के बहुमत से आया है।

देवासम बोर्ड ने दी ये दलील

सुनवाई के दौरान केरल त्रावणकोर देवासम बोर्ड की ओर से पेश सीनियर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि दुनिया भर में अयप्पा के हजारों मंदिर हैं, वहां कोई बैन नहीं है लेकिन सबरीमाला में ब्रह्मचारी देव हैं और इसी कारण तय उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर बैन है, यह किसी के साथ भेदभाव नहीं है और न ही जेंडर विभेद का मामला है।

जस्टिस नरीमन का सवाल?

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने पूछा था कि इसका तार्किक आधार क्या है? आपके तर्क का तब क्या होगा अगर लड़की का 9 साल की उम्र में ही मासिक धर्म शुरू हो जाए या जो ऊपरी सीमा है उसके बाद किसी को मासिक धर्म हो जाए? इस दौरान सिंघवी ने कहा कि यह परंपरा है और उसी के तहत एक उम्र का मानक तय हुआ है।

अलग धार्मिक संप्रदाय न बनाएं

फैसला पढ़ते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि भगवान अयप्पा के भक्त हिंदू हैं, ऐसे में एक अलग धार्मिक संप्रदाय न बनाएं। कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुछेद 26 के तहत प्रवेश पर बैन सही नहीं है। संविधान पूजा में भेदभाव नहीं करता है। माना जा रहा है कि इस जजमेंट का व्यापक असर होगा।

दाखिल होगी पुनर्विचार याचिका

उधर, त्रावणकोर देवासम बोर्ड के अध्यक्ष ए. पद्मकुमार ने कहा है कि दूसरे धार्मिक प्रमुखों से समर्थन मिलने के बाद वह इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करेंगे।

बेंच में थे पांच जज, 4-1 से फैसला

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई में जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा - पांच जज बेंच में शामिल थे। हालांंकि यह फैसला 4-1 के बहुमत से आया है। बेंच में शामिल जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने अलग फैसला दिया है।

'यह दलितों से छुआछूत की तरह'

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में सबरीमाला मंदिर मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट सलाहकार राजू रामचंद्रन ने कहा था कि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर बैन ठीक उसी तरह है, जैसे दलितों के साथ छुआछूत का मामला। कोर्ट सलाहकार ने कहा कि छुआछूत के खिलाफ जो अधिकार हैं, उसमें अपवित्रता भी शामिल हैं। अगर महिलाओं का प्रवेश इस आधार पर रोका जाता है कि वे मासिक धर्म के समय अपवित्र हैं तो यह भी दलितों के साथ छुआछूत की तरह है।

केरल हाईकोर्ट था बैन के पक्ष में

संविधान में छुआछूत के खिलाफ सबको प्रोटेक्शन मिला हुआ है। धर्म, जाति, समुदाय और लिंग आदि के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। आपको बता दें कि केरल हाईकोर्ट ने अपने फैसले में महिलाओं के प्रवेश के बैन को सही ठहराया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि मंदिर में प्रवेश से पहले 41 दिन के ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है और मासिक धर्म के कारण महिलाएं इसका पालन नहीं कर पाती हैं।

महिलाओं में खुशी की लहर

केरल केसबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को अनुमति मिलने के बाद देश भर में महिलाओं में खुशी व्याप्त है। महिलाओं ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि कोर्ट का फैसला बिल्कुल सही है। ये बहुत पहले हो जाना चाहिए था, कोई भी मंदिर एक जात, एक वर्ग, एक लिंग के लिए नहीं होता है और वैसे भी हिंदू धर्म में महिला देवी पूजी जाती है। भगवान के घर में जाने के लिए किसी कॉन्सेप्ट की आवश्यकता नहीं है।

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