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दो बूंद पानी की चाह में चल बसी कमला; कोरोना से नहीं, तिरस्कार से शिमला में हारी जिंदगी की जंग

कमला को बेहद प्यास लगी थी। शरीर तप रहा था । दो बूंद पानी मिला तो गला भी तर होता और दवा भी खा लेती । नसों...
दो बूंद पानी की चाह में चल बसी कमला; कोरोना से नहीं, तिरस्कार से शिमला में हारी जिंदगी की जंग

कमला को बेहद प्यास लगी थी। शरीर तप रहा था । दो बूंद पानी मिला तो गला भी तर होता और दवा भी खा लेती । नसों में जकड़न और दर्द बढ़ता जा रहा था । लेकिन ना वहां पानी देने वाला था ना ही दवा । चैपाल के पीडब्ल्यूडी के दफतर में कमला के पास सभी को पानी पिलाने की जिम्मेदारी मिली थी। बहुत वर्षों तक अधिकारियों और कर्मचारियों को पानी भी पिलाया और मदद भी खूब की । पर खुद की प्यास बुझाने वाला कोई नहीं होगा, यह शायद उसने सोचा नहीं था । कोरोना संक्रमण उसे घेर लेगा, यह इलम भी शायद नहीं होगा कमला को।

हिमाचल प्रदेश के शिमला जिला की चैपाल तहसील की रहने वाली यह 54 वर्षीय महिला ने शिमला के दीन दयाल उपाध्याय (रिपन) अस्पताल में फंदा लगा कर आत्महत्या कर ली । कोरोना संक्रमण के चलते उसे चैपाल से शिमला लाया गया था । उसे 18 सितंबर को कोविड-19 परीक्षण में पाज़िटिव पाया गया था । कमला की मृत्यु की घटना अत्यंत दर्दनाक है जिसके बाद समूचे शासन व अस्पताल की व्यवस्था पर सवाल खड़े हो गए हैं । हालांकि घटना के बाद अस्पताल के मैडिकल सुपरिन्टंेडेंट को हटा दिया गया है और राज्य हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब तलबी की है परन्तु कमला की घटना ने कोरोना के दौर में मानवीय संवेदनाओं को झकझोड़ के रख दिया है।

(कोविड मरीज़ों के लिए दिए जाने वाले ब्रेकफ़ास्ट)

दरअसल कमला के पति की गत 15 वर्ष पहले मृत्यु हो गई थी । वह अपने बेटे के साथ अकेली रह गई । बिलकुल अनपढ़ थी। परन्तु पति की जगह पर उसे पी.डब्ल्यू.डी में बेलदार की नौकरी मिल गई । जिस दफतर से उसे संक्रमण का अंदेशा था वहां वह चाय व पानी पिलाने की डयूटी करती थी और अपना घर चलती थी।

उसके बेटे नरेंद्र ने बताया कि जब चैपाल के क्वार्टर में माता जी को दर्द बढ़ा तो वहां के डाॅक्टरों ने 108 एंबुलेंस में शिमला भेज दिया । जहां उन्हें रखा गया वहां ना तो पानी दिया गया ना ही दवा । कोई डाॅक्टर भी देखने नहीं आया । माता जी ने फोन करके कहा की उनकी नसें फट रही हैं, शरीर में तेज दर्द हो रहा है । पानी पीना है । कोई दवा भी नहीं है, ना ही पानी । कोई बात सुनने वाला नहीं है । खाना भी जो कल दिया वह दूर से कागज के कप में फैंक कर गए । ऐसा व्यवहार तो हम डंगर (पशु) से भी नहीं करते । नरेंद्र बोला कि जब मैं पानी व दवा लेकर गया तो सिक्योरिटी ने मुझे भीतर जाने ही नहीं दिया । कहा कि तेरे खिलाफ मामला दर्ज होगा । तब मैंने साथ लाई पानी की बोतल भेजने को कहा । “मेरी मां की तबीयत बिगड़ रही थी”। मेने फोन पर बात की तो वह बोली कि मैं डंगर जैसी हो गई हूं । मुझे कोई बात नहीं करनी। कोरोना मरीजों की हालत जब खराब होने लगती है तो इस पर स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं कि तब मरीज़ बात नहीं करना चाहते

(दस में से सिर्फ़ तीन सिलेंडेर ही काम करते हैं)

कमला के ससुराल से बिटू बताता है कि भाभी जी (कमला) चुन्नी नहीं ओढ़ती थी। चैपाल में सदरी व धाटू पहनते हैं । लिहाजा जिस रेलिंग से गला घोंट कर वह लटकीं वह क्या चीज़ थी उन्हें नहीं मालूम। उनकी लाश सुबह तक रेलिंग पर लटकी रही । बाद में वहां मौजूद लोगों ने बताया कि रेलिंग से आवाज आई परन्तु कोई देखने व बचाने ही नहीं आया। कमला कोविड से तो बच जाती परन्तु सामाजिक तिरस्कार के आगे हार गईं ।

गौरतलब है कि इस अस्पताल को कोविड डेडीकेटिड अस्पताल बनाया गया है । लेकिन वहां बदइंतजामी के चलते मरीज अक्सर अपनी बात रखते आए हैं । राज्य सरकार के ही एक मंत्री ने खुल कर फेसबुक पर कोरोना वयवस्था पर सवाल खड़े किए हैं ।कमला के रिश्तेदारों ने कहा है कि पोस्टमार्टम का क्या हुआ, इस पर उन्हें कुछ नहीं दिखाया गया । बेटे नरेंद्र को मां की लाश सिर्फ शीशे से दिखाई । कहां व कैसे फंदा लगाया, यह बताया ही नहीं । उनका बेटा नरेंद्र बस स्टैंड के पास एक धर्मशाला में रात बिता रहा था । कमला स्वस्थ हो कर घर जाना था ,हो सकता लोग उसको कोरोंआ विजेता बता कर फूल बरसते ,जैसा कि अमूमन होता रहा महामारी के दौर में ।लेकिन उसका परिवार गांव खाली हाथ लौट ! बहुत रोए भी पर कमला चली गया उसने मौत को गले लगा लिए और सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था पर एक प्रश्न चिन्न लगा दिया । अब जांच भी होगी मगर क्या कमला की रूह तो हॉस्पिटल के प्रारांगण में ही ना बड़कती रहे ,अफसोस उसको उस रात पानी के दी घूंट पीला दिए होते और डॉक्टर ने इस का हाल पूछा होता।

इधर हिमाचल प्रदेश में कोरोना से मौतें बढ़ रहीं हैं । कल शुक्रवार को 7 मौतें हुई और अब तक करीब डेढ महीने में 152 लोग मर चुके हैं । अभी तक राज्य में 13 हजार 679 कोरोना मरीज हैं। इधर हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव, अनिल खाची और स्वास्थ्य सचिव आरडीधीमान से भी जवाब तलब किया है। अस्पतालों में कोरोना को लेकर सरकारी गैरजिम्मेदाराना रवैये पर हाईकोर्ट ने तलखी दिखाई है । आउटलुक में पब्लिश हुई समाचार का संज्ञान लिया है ।

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