Advertisement

कमलनाथ सरकार का बच पाना मुश्किल, दांवपेंच जारी

मध्यप्रदेश में कमलनाथ की सरकार का अब बच पाना मुश्किल है। मुख्यमंत्री कमलनाथ और कांग्रेस नेता...
कमलनाथ सरकार का बच पाना मुश्किल, दांवपेंच जारी

मध्यप्रदेश में कमलनाथ की सरकार का अब बच पाना मुश्किल है। मुख्यमंत्री कमलनाथ और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह सरकार बचाने का दांव खेल रहे हैं , लेकिन लगता नहीं कि वे सफल होंगे। भाजपा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने साथ लेकर कमलनाथ सरकार को गिराने के लिए पुख्ता प्लान तैयार कर लिया है, जिसका तोड़ फिलहाल कांग्रेस के पास दिखाई नहीं दे रहा है। सिंधिया समर्थक विधायकों के अलावा दिग्विजय के करीबी कहे जाने वाले बिसाहूलाल सिंह और एदलसिंह कंसाना के बगावती तेवर कमलनाथ सरकार के लिए घातक बन गए। 230 सदस्यीय मध्यप्रदेश विधानसभा में अभी दो सीटें खाली है। कांग्रेस के 114 विधायक हैं , 22 विधायकों के इस्तीफे से उसकी संख्या घटकर 92 रह जाएगी। चार निर्दलीय और सपा-बसपा के तीन विधायकों का कांग्रेस को समर्थन है। लेकिन तीन निर्दलीय और सपा-बसपा के दो विधायक पाला बदल सकते हैं। भाजपा के 107 विधायक हैं। ऐसे में फ्लोर टेस्ट होता है तो भाजपा का पलड़ा भारी दिखाई देता है, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष के फैसले पर भी बहुत कुछ निर्भर करेगा। कांग्रेस को इसका इंतजार है। 

2018 के विधानसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के स्टार प्रचारक थे। भाजपा ने सिंधिया को टारगेट करते हुए माफ़ करो महाराज हेडिंग के साथ मध्यप्रदेश के अखबारों में फुल पेज का विज्ञापन छपवाया था। इसका मतलब साफ़ था कि तब भाजपा को कमलनाथ और दिग्विजय सिंह से ज्यादा खतरा सिंधिया से लग रहा था, लेकिन कांग्रेस को अधिक सींटे मिलीं तो मुख्यमंत्री कमलनाथ बन गए। यहीं से कमलनाथ और सिंधिया में मनमुटाव शुरू हो गया। सिंधिया और दिग्विजय की लड़ाई पुरानी है। सिंधिया के खिलाफ कमलनाथ और दिग्विजय एकजुट हो गए। सिंधिया  मध्यप्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनना चाहते थे, लेकिन कमलनाथ ने बनने नहीं दिया। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने पीसीसी अध्यक्ष का पद अपने पास रखा। 

मध्यप्रदेश की राजनीति से दूर रखने की थी कोशिश

सिंधिया को महासचिव बनाकर उत्तरप्रदेश की जिम्मेदारी दे दी गई , इस चक्कर में वे अपने परंपरागत लोकसभा सीट से चुनाव भी हार गए। कमलनाथ और दिग्विजय की जोड़ी की कोशिश रही कि सिंधिया मध्यप्रदेश की राजनीति से दूर रहें। सिंधिया पर उनके छह समर्थकों को मंत्री बना दिया गया, लेकिन तुलसी सिलावट को उप-मुख्यमंत्री नहीं बनाया। वहीँ विभाग भी सिंधिया के इच्छा के अनुरूप नहीं दिए गए , जबकि दिग्विजय ने अपने बेटे जयवर्धन सिंह और रिश्तेदार प्रियव्रत सिंह को केबिनेट मंत्री बनवाने के साथ मनपसंद विभाग भी दिलवा दिया।  कमलनाथ ने भी अपने लोगों को अच्छे विभाग दिए।  निर्दलीय चुनाव जीतकर आये कमलनाथ समर्थक प्रदीप जायसवाल को खनिज जैसा विभाग  दे दिया। इससे सिंधिया और उनके समर्थक अंदर- अंदर सुलगते रहे, लेकिन राज्यसभा की दौड़ से सिंधिया और कमलनाथ-दिग्विजय की लड़ाई चरम पर पहुँच गई।

राज्यसभा सीट भी रही वजह

मध्यप्रदेश में इस बार राज्य सभा की तीन सीटें खाली हो रही हैं, जिसमें दो कांग्रेस को मिलनी है, दिग्विजय सिंह का कार्यकाल भी अप्रैल में ख़त्म हो रहा है। कहा जाता है पहली और दूसरी प्राथमिकता के वोट के साथ लोकसभा चुनाव हारे व्यक्ति को राज्य सभा का टिकट दिए जाने की बात से सिंधिया ज्यादा खफा हो गए। इस फार्मूले से सिंधिया राज्यसभा  भी नहीं पाते, लेकिन सिटिंग राज्यसभा सांसद होने के नाते दिग्विजय को टिकट देने की बात की जा रही थी। सिंधिया इससे काफी नाराज हो गए। भाजपा लोकसभा चुनाव के बाद से ही कमलनाथ सरकार को गिराने के लिए मौके की तलाश में थी, उसकी नजर नाराज सिंधिया पर थी। भाजपा पहले ज्योतिरादित्य की बुआ और राजस्थान पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के जरिये पहले टटोला, फिर उनके पीछे भाजपा के एक नेता को  लगाया। इस तरह ऑपरेशन लोटस अंजाम तक गया। 

सरकार बनते ही दिग्विजय हो गए थे सक्रिय

कांग्रेस हाईकमान ने चुनाव प्रचार से दिग्विजय को दूर रखा था, लेकिन सरकार बनते ही वे सक्रिय हो गए। मुख्यमंत्री कमलनाथ की निर्भरता उन पर बढ़ गई। मुख्यसचिव और डीजीपी भी दिग्विजय की ही पसंद के अफसरों को बनाया गया। कहा तो यह रहा है कि दिग्विजय अपने बेटे जयवर्धन सिंह के आगे बढ़ने में सिंधिया को रोड़ा मानकर चल रहे थे। दूसरी तरफ कमलनाथ वल्लभ भवन की पांचवी मंजिल  होकर रह गए थे। एक कांग्रेस नेता कहना है कि वे न तो विधायकों से मिलते न ही कार्यकर्ताओं से। मंत्रियों और अफसरों को भी उनसे मिलने इंतजार करना पड़ता था। इस कारण पार्टी विधायकों में सुलग रही आग समझ और भाप नहीं पाए। पांच- छह बार  विधायकों की जगह दो-दो बार के विधायकों को कैबिनेट मंत्री बनाना कमलनाथ पर भारी पड़ गया। कंसाना, बिसाहू लाल और केपी सिंह जैसे विधायक पहले दिन से ही नाराज चल रहे थे।  

सिंधिया चले जाएंगे, अंदाजा नहीं था: दिग्विजय

दिग्विजय ने सिंह ने कहा कि सिंधिया कांग्रेस छोड़कर चले जाएंगे, हमें इसका अंदाजा नहीं हो पाया। हमसे यह चूक हुई। सिंधिया को हमने मध्यप्रदेश के डिप्टी सीएम की पोस्ट ऑफर की थी। लेकिन वे अपने किसी आदमी को इस पद पर बैठाना चाहते थे। कमलनाथ को (सिंधिया के) किसी चेले को डिप्टी सीएम बनाना मंजूर नहीं था। सिंधिया को राज्यसभा का टिकट भी मिल सकता था।

16 या 17 मार्च को फ्लोर टेस्ट

मध्य प्रदेश में सरकार का संकट टालने के लिए कांग्रेस की कोशिशें शुरू हो गई हैं। भोपाल स्थित सीएम हाउस से 80 विधायकों को जयपुर भेज दिया गया है। इनमें कांग्रेस के अलावा 4 निर्दलीय विधायक भी शामिल हैं। इन लोगों के लिए जयपुर के ब्यूना विस्टा होटल के 44 विला बुक हैं। बताया जा रहा है कि विधायकों को जयपुर में 3-5 दिन रोका जा सकता है। इस बीच, कांग्रेस नेता अरुण यादव ने कहा कि हम 17 मार्च को फ्लोर टेस्ट कराएंगे और इसमें जीत हासिल करेंगे। मध्यप्रदेश का बजट सत्र 16 मार्च से है।   इस दिन राज्यपाल अभिभाषण होगा,  भाजपा 16 मार्च को ही फ्लोर टेस्ट की बात कर रही है।  उधर, बेंगलुरु में कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार ने कहा कि कांग्रेस को कोई बर्बाद नहीं कर सकता। नेता आते-जाते रहते हैं। मध्यप्रदेश के जो विधायक यहां हैं, वे अपनी सदस्यता नहीं छोड़ना चाहते। मुझे यकीन है कि वे समझेंगे और वापस लौटकर सरकार बचा लेंगे।

भाजपा के 105 विधायक होटल में

भाजपा के पास 107 विधायक हैं। इनमें से 105 विधायकों को भाजपा ने मंगलवार रात ही भोपाल में पार्टी मुख्यालय से बसों में बैठाकर एयरपोर्ट भेज दिया और दिल्ली रवाना कर दिया। इन्हें मंगलवार देर रात दिल्ली पहुंचने के बाद गुड़गांव के आईटीसी ग्रैंड होटल ले जाया गया। दो बचे विधायकों में शिवराज सिंह चौहान दिल्ली में और नारायण त्रिपाठी अपनी मां के निधन की वजह से मध्यप्रदेश में ही हैं।

कांग्रेस के 80 विधायक सीएम हाउस से सीधे रवाना 

मुख्यमंत्री कमलनाथ के आवास पर 16 घंटे में दूसरी बार कांग्रेस विधायकों की बैठक हुई। पहली बैठक मंगलवार शाम 6 बजे हुई थी। इसमें कांग्रेस के 90 और 4 निर्दलीय विधायक मौजूद थे। दूसरी बैठक बुधवार सुबह करीब 10 बजे शुरू हुई। दो घंटे की बैठक के बाद विधायकों ने यहां नाश्ता किया। फिर 94 में से 80 विधायकों को तीन बसों में बैठाकर सीधे एयरपोर्ट रवाना कर दिया गया। विधायक जिन कारों में आए थे, उन्हें खाली ही लौटा दिया गया।

14 विधायक भोपाल में

कांग्रेस ने सबसे भरोसेमंद 14 विधायकों को भोपाल में रोक रखा है। बताया जा रहा है कि राजनीतिक उठापटक और 26 मार्च को राज्यसभा चुनाव की तैयारियों के मद्देनजर इन विधायकों को भोपाल में रोका गया है। मध्यप्रदेश की 3 राज्यसभा सीटों पर चुनाव के लिए शुक्रवार को नामांकन का आखिरी दिन है।

22 बागी विधायक येदियुरप्पा के बेटे की निगरानी में

बेंगलुरु से 40 किलोमीटर दूर रिसॉर्ट पाम मेडोज के साथ तीन अलग-अलग जगहों पर सिंधिया समर्थक विधायकों को ठहराया गया है। ये जगह कर्नाटक के भाजपा विधायक अरविंद लिंबोवली के निर्वाचन क्षेत्र में है। सभी विधायक कमांडो की निगरानी में हैं। कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के बेटे और सांसद बीवाय राघवेंद्र और विजयन इन विधायकों को संभाल रहे हैं। इनके साथ भाजपा के वरिष्ठ नेता अरविंद भदौरिया भी हैं।

3 वरिष्ठ नेता भी भोपाल आएंगे

आलाकमान ने दिल्ली से 3 महासचिवों दीपक बावरिया, मुकुल वासनिक और हरीश रावत को भोपाल भेजने का फैसला किया है। इन्हें कांग्रेस विधायकों से बातचीत करने की जिम्मेदारी दी गई है। तीनों नेता आने वाले कुछ दिनों तक भोपाल में ही डेरा जमाएंगे।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad