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कागजों में खुशहाल खेतों में बदहाल

सरकारी आंकड़ों का दावा है कि गेहूं और लहसुन उत्पादन में प्रदेश अव्वल रहा है और प्रधानमंत्री तक ने किसानों की सुध लेने के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की राह अपनाई है
कागजों में खुशहाल खेतों में बदहाल

 मध्य प्रदेश में खेती-बाड़ी की विकास दर बीते पांच वर्षों में 20 फीसद से अधिक होने के दावे का सच क्या है? बीते दो सालों से सूखा झेलने के बावजूद कृषि उत्पादन के मामले में मध्य प्रदेश लगातार चार साल से राष्ट्रीय स्तर पर कृषि कर्मण अवार्ड कैसे जीत रहा है? यहां तक कि अपनी सूट-बूट और कार्पोरेट घरानों की पैरोकार सरकार की छवि से निजात पाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसान हितैषी नेता की छवि बनाने के लिए प्रदेश के कृषि हितैषी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का सहारा लेना पड़ा है। केंद्र सरकार के ताजा बजट के जरिये नरेंद्र मोदी का गांव, गरीब और किसानों की तरफ लौटना शिवराज सिंह के लिए राजनीतिक और रणनीतिक नजरिये से मुफीद माना जा रहा है, लेकिन किसानों और खेती को लेकर कुलांचे मारते प्रदेश के सेंसेक्स की जमीनी हकीकत कुछ अलग ही नजर आती है।

इसमें कोई शक नहीं कि शिवराज सिंह चौहान का राजनीतिक सफर को खेतों में कुदाल चलाने से ही आगे बढ़ा है। वह खेतिहर किसानों के दर्द को समझते हैं। उन्होंने किसानों की तरक्की को अपनी शीर्ष प्राथमिकता में रखा है। उन्हें पता है कि प्रदेश में अगले बीस साल तक सकल घरेलू उत्पादन में औद्योगिक निवेश से कहीं ज्यादा खेती की ही अहमियत रहेगी। प्रदेश के 70 फीसद मजदूरों और किसानों की रोजी-रोटी खेती ही बनी रहेगी। इसलिए दस साल के कार्यकाल में उनका फोकस गांव और खेती पर ही रहा है लेकिन उनके सपनों को साकार करने वाली मशीनरी यानी नौकरशाहों द्वारा पेश किए जाने वाले सालाना आंकड़े पूरी सच्चाई बयां नहीं करते।

खेती के मामले में मध्य प्रदेश की विकास दर 2010 तक तो ऋणात्मक थी। लेकिन 2011 के बाद इसमें तेजी आई। तत्कालीन कृषि संचालक डीएन शर्मा के कार्यकाल में इस करिश्मे की शुरुआत हुई तो यह तीन साल में ही 24 फीसद तक जा पहुंची। अकूत संपत्त‌ि जुटाने के आरोप में लोकायुक्त के छापे के बाद शर्मा के हाशिये में जाने के बावजूद यह दर बरकरार है। हालांकि दो साल के लगातार सूखे, ओले और बेेमौसम बारिश के बाद आंकड़ों के बाजीगर अफसरों ने इस साल कृषि विकास दर के आंकड़े को 19 फीसद तक घटाया है। बावजूद इसके खेती के मामले में रिकॉर्ड उत्पादन के लिए मशहूर पंजाब, हरियाणा और उîार प्रदेश जैसे राज्य भी मध्य प्रदेश की इस प्रगति से चकित हैं तो भाजपा से रुखसत हो चुके आरएसएस की पृष्ठभूमि के खांटी किसान नेता शिवकुमार शर्मा इसे अफसरों द्वारा उड़ाए कागजी तोते मानते हैं लेकिन मुख्यमंत्री चौहान ने प्रदेश से लेकर देश में विभिन्न मंचों पर अपनी छाती ठोकी। यही नहीं, खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में शिवराज की पीठ थपथपाने में पीछे नहीं रहते।  दिल्ली और बिहार की करारी हार के बाद मोदी बदहाल किसानों के लिए शानदार फसल योजना लेकर आए। इस योजना के साथ खुद की किसान हितैषी छवि बनाने के लिए उन्होंने मध्य प्रदेश का इसलिए चयन किया कि एक किसान नेता ही उनको किसान मित्र के बतौर प्रमाणित कर सकता था।

हालांकि प्रदेश सरकार ने किसानों की बेहतरी के लिए कई काम भी किए हैं। कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने आउटलुक के साथ बातचीत में दावा किया कि कृषि विभाग, ग्रामीण विकास विभाग, जल संसाधन विभाग और ग्रामीण यांत्रिकी सेवा से जुड़े महकमों और किसानों की मिली-जुली मेहनत से ऐसे नतीजे आए हैं। सरकारी स्रोतों से सिंचाई का रकबा 8 लाख हेक्टेयर से बढक़र 36 लाख हेक्टेयर के पार जा पहुंचा है। इसे जल्दी ही 50 लाख हेक्टेयर तक पहुंचाने की योजना है। हमने किसानों को जैविक खेती के भी नए तौर-तरीकों और कम पानी से सिंचाई के लिए प्रेरित किया है। सूखा, ओला, बेमौसम बारिश और जलवायु परिवर्तन के कारण फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। कीटनाशकों के अधिक इस्तेमाल से खेतों के लिए उपयोगी जीव भी घटे हैं। लेकिन हमारे वैज्ञानिक अब बदलते मौसम को झेल सकने वाले बीजों की नई प्रजातियां खोज रहे हैं। सोयाबीन की फसलों पर पीला मौजिक नामक वायरस ने गाज गिराई लेकिन हमने अब ऐसे बीज विकसित किए हैं जो इस वायरस के प्रतिरोध की क्षमता रखती है। ऐसे ही शोध अन्य बीजों के मामले में भी जारी हैं। हम किसानों को खेतों में फसल चक्र अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। फसलें बदलने से मिट्टी की मूल प्रकृति बनी रहती है। प्रदेश में हमने खेती की लागत कम करने का भी प्रयास किया है।

बिना ब्याज का कर्ज, फसल भंडारण और अब प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों को खेत की ओर लौटाने में मदद करेगी। अगले छह वर्षों में किसानों की आय दोगुनी करने के लिए शिवराज सरकार खेती-बाड़ी में नवाचारों के साथ ही हर गांव में एक उद्योग की योजना पर काम कर रही है। राज्य में कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने के प्रयास भी चल रहे है। मुख्यमंत्री का मानना है कि किसानों को कमाई के अतिरिक्त साधन मुहैया कराकर ही गांवों को समृद्ध बनाया जा सकता है। बिसेन कहते हैं, 'पूर्ववर्ती केंद्र सरकारों ने गांव की ओर ध्यान नहीं दिया। लेकिन इस साल के मोदी सरकार के बजट से गांव-गरीब और किसान योजना से किसानों की तरक्की होगी।’ जल संसाधन विभाग मंत्री जयंत मलैया और उनकी टीम ने सिंचाई व्यवस्था पर बेहतर काम किया है। विभाग के प्रमुख अभियंता मदनगोपाल चौबे कहते हैं, 'प्रदेश में बड़ी, मध्यम और लघु सिंचाई योजनाओं के जरिये नहरों के विस्तार और पानी का सदुपयोग करके हम खेतों में खुशहाली लाने की कोशिश कर रहे हैं। प्रदेश में 21 बड़ी 30 मध्यम और 241लद्यु सिंचाई योजना निर्माणधीन हैं। लेकिन भूमि अधिग्रहण कानून के चलते नई बड़ी परियोजनाओं की राह में आई बाधा को देखते हुए हमारी कोशिश अन्य स्रोतों से खेतों को सींचने की है। नर्मदा घाटी विकास विभाग आवंटित 1.80 करोड़ एकड़ फुट पानी के इस्तेमाल लायक क्षमता 2024 के 2 साल पहले ही विकसित कर लेगा।’

 लेकिन किसान नेता शिव कुमार शर्मा कक्का जी के दावे कुछ और ही बयां करते हैं। शर्मा सरकारी आंकड़ों को सिरे से खारिज करते हुए कहते हैं, 'फर्जी आंकड़ों की बाजीगरी से पुरस्कार मिल सकते हैं लेकिन किसानों की तकदीर नहीं बदल सकती। सरकार तो पुरस्कार पाती है लेकिन अफसर और  बिचौलिए किसानों की सब्सिडी हजम कर जाते हैं। मंडी में किसानों के उत्पाद को आढ़तिए औने-पौने दाम में बेचने को विवश करते हैं।’ शर्मा का दावा है कि बीते 12 वर्षों में प्रदेश के प्रत्येक किसान पर कर्ज का बोझ 10 से 15 गुना बढ़ा है। किसानों की आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। जब खेती की जमीनों पर कॉलोनी काटी जा रही हैं तो खेती का रकबा कैसे बढ़ सकता है? सरकारी परती भूमि और किसानों की उपजाऊ भूमि उद्योगपतियों को औने-पौने दामों पर दी जा रही है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद इंदौर के आसपास के किसानों को 18 सौ करोड़ रुपये से अधिक का मुआवजा नहीं मिल पाया है।

शर्मा का दावा है कि प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि की भागीदारी बीते 5 वर्षों में 27-28 फीसद के आसपास ही बनी हुई है। गेहूं में तो तरक्की का ग्राफ चढ़ा है लेकिन दो वर्षों से लहसुन उत्पादन में प्रदेश  के पहले पायदान पर होने का दावा किया जा रहा है। राज्यपाल के बजट भाषण में इसका उल्लेेख है लेकिन राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के आंकड़ों से प्रदेश के उत्पादन आंकड़ों का मिलान करें तो ऐसा लगता है कि देश का 90 फीसदी से ज्यादा लहसुन मध्य प्रदेश में ही उत्पादित हो रहा है। तो क्या माना जाए कि बाकी राज्यों ने लहसुन की खेती बंद कर दी है?

 ऐसे ही सवाल गेहूं को लेकर हैं। गेहूं की फसल पर मोदी सरकार आने के बाद जैसे ही समर्थन मूल्य पर बोनस बंद हुआ, प्रदेश में गेहूं का उपार्जन एक करोड़ टन से घटकर आधा रह गया। इससे इन शंकाओं को भी बल मिलता है कि केंद्र और राज्य के बोनस के फेर में मध्य प्रदेश में पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश का गेहूं बिका है। बोनस बंद हुआ तो गेहूं आना बंद हो गया। हालांकि सरकार यह दावा करती है कि किसानों को समर्थन मूल्य से ज्यादा बेहतर कीमत मिलने के चलते उपार्जन कम हुआ है। 

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