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आदिवासी समाज से देश को सीख लेने की जरूरत, कोरोना महामारी के बीच ऐसा फैसला किया जो पेश कर रहा नजीर

प्रकृति के पुजारी आदिवासी समाज में मान्‍यता रही है कि वे खाना सिर्फ पेट भरने के लिए नहीं खाते बल्कि...
आदिवासी समाज से देश को सीख लेने की जरूरत, कोरोना महामारी के बीच ऐसा फैसला किया जो पेश कर रहा नजीर

प्रकृति के पुजारी आदिवासी समाज में मान्‍यता रही है कि वे खाना सिर्फ पेट भरने के लिए नहीं खाते बल्कि शारीरिक जरूरतों के लिए खाते हैं। औषधीय महत्‍व के कंद, मूल, शाक और दूसरे खाद्ध पदार्थ उसी अनुरूप उनकी परंपरा में शामिल हैं। रुगड़ा, खुखड़ी, महुआ, मड़ुआ, भांति-भांति के साग (शाक) इनके भोजन का हिस्‍सा हैं। पोषक भोजन और शारीरिक मेहनत की संस्‍कृति की वजह से ही कोरोना महामारी से यह समाज दूसरे लोगों की तुलना में बहुत दूर रहा। 

कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच संक्रमण के चेन को रोकने के लिए सरकार भांति-भांति के प्रतिबंध को लागू कर रही है। शादी में 50 तो श्राद्ध कर्म में तीस लोगों के जुटान जैसी सीमाएं तय की गई हैं। कोरोना को देखते हुए आदिवासी समाज ने एक कदम आगे बढ़ कर निर्णय किया है। आदिवासियों की बड़ी जमात का प्रतिनिधित्‍व करने वाले सरना धर्म प्रार्थना सभा, भारत ने ऑनलाइन बैठक कर दस मई तक अपने सभी कार्यक्रम स्‍थगित करने का निर्णय किया है। समाज को निर्देश दिया है कि वैवाहिक कार्यक्रम वर और वधु पक्ष के पंचों की मौजूदगी में सम्‍पन्‍न करायें। चुमावन और सराती पक्ष के कार्यकम न हों। भीड़ को रोकना है। जिन्‍हें आमंत्रण दे भी दिया गया है फोन से या संदेश भेजकर उन्‍हें आने से मना करने को कहा गया है। 

इसी तरह किसी की मौत होने पर मिट्टी देने के कार्यक्रम या श्राद्ध में भी कम से कम लोग ही शामिल हों। कोरोना से बचाव के लिए बाहर के साथ घर में भी मास्‍क लगाने को कहा गया है। बताया गया है कि कोई कोरोना से संक्रमित भी हो जाये तो घर में उपचार करें। खौलते पानी में नीम का पत्‍ता, हल्‍दी, यूकिलिप्‍टस का पत्‍ता डालकर भाप ( वाष्‍प) लें। ज्‍यादा दिक्‍कत होने पर करीब के स्‍वास्‍थ्‍य केंद्र जायें, डॉक्‍टरों की राय लें। ऑनलाइन बैठक में सरना धर्म प्रार्थना सभा के राष्‍ट्रीय सरना धर्म गुरू जयपाल उरांव, प्रदेश धर्म गुरू राजेश लिंडा, राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष धर्म अगुआ नीरज मुंडा, प्रदेश अध्‍यक्ष धर्म अगुआ माघी उरांव आदि शामिल हुए।

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