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बिहार: नीतीश की शराबबंदी फेल?, 90 दिनों में करीब 40 की मौत, सिर्फ मार्च में 16 से अधिक की गई जान

बिहार में एक अप्रैल को शराबबंदी हुए पांच साल हो चुके हैं। अप्रैल 2016 को राज्य में नीतीश कुमार की अगुवाई...
बिहार: नीतीश की शराबबंदी फेल?, 90 दिनों में करीब 40 की मौत, सिर्फ मार्च में 16 से अधिक की गई जान

बिहार में एक अप्रैल को शराबबंदी हुए पांच साल हो चुके हैं। अप्रैल 2016 को राज्य में नीतीश कुमार की अगुवाई वाले महागठबंधन ने इसे लागू किया था। उस वक्त राज्य में जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की गठबंधन वाली सरकार थी। विपक्ष लगातार आरोप लगाती रही है कि भले ही नीतीश कुमार के राज में  शराबबंदी लागू है लेकिन जमीन पर माफिया और सिंडिकेट का वर्चस्व है। हर महीने जहरीली शराब पीने से दर्जनों लोगों की आंखों की रौशनी जा रही है और मौतें हो रही है, जिससे प्रशासन की सुस्ती सुशासन पर कई सवाल उठा रहे हैं। यहां तक की एनडीए विधायक नीतीश और पुलिस की मंशा पर सवाल उठाने लगे हैं। मधुबनी के महमदपुर नरसंहार कांड को लेकर पीड़ित परिवार से मिलने गए बीजेपी विधायक ज्ञानेन्द्र सिंह ज्ञानू ने कहा था कि समय आ गया है जब पुलिस पैसे के लिए शराब पकड़ना छोड़कर अपराधियों को पकड़े। शराबबंदी करते दौरान सीएम नीतीश ने कहा था कि इससे जान-माल के नुकसान से बचा जा सकेगा लेकिन मामला विपरीत दिख रहा है। शराबबंदी पर सोचने के लिए कई बार जीतन राम मांझी पहल कर चुके हैं।

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बिहार में शराबबंदी के बावजूद भी अपराधियों का बोलबाला है। हर दिन दर्जनों लोगों की जान शराब पीने से हो रही है। नवादा जिले में हाल ही में 16 लोगों की मौत इस वजह से हुई है। वहीं, फरवरी महीने में मुजफ्फरपुर में शराब पीने से सात लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। जबकि, गोपालगंज में 6 और बेगुसराय में तीन लोगों की मौत शराब पीने से हो चुकी है। यानी शराबबंदी के बावजूद राज्य में लगातार लोगों की जाने जा रही है। यकीनन ये चौकाने वाला और चिंता की बात है। नीतीश की अगुवाई में नवंबर में सरकार बनने के बाद से अब तक करीब 40 लोगों की मौत शराब पीने से हुई है। दरअसल, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक शराबबंदी के बावजूद भी बिहार में बड़े पैमाने पर दूसरे राज्यों से शराब की खेप पहुंच रही है। इसमें स्थानीय नेताओं से लेकर प्रशासन तक की मिलीभगत देखने को मिलती है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक ड्राई स्टेट होने के बावजूद बिहार में महाराष्ट्र से ज्यादा लोग शराब पी रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक राज्य में 15.5 प्रतिशत पुरुष शराब का सेवन करते है। जबकि महाराष्ट्र शराब पीने वाले पुरुषों की तादाद 13.9 फीसदी ही है। महाराष्ट्र में शराबबंदी नहीं है।  

नेताओं और प्रशासनों की मिलीभगत का वर्चस्व इतना है कि मुजफ्फरपुर से तालुक रखने वाले मंत्री रामसूरत राय के भाई से जुड़े स्कूल में शराब की बड़ी खेप पकड़ी गई थी। इस मामले को नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने जोर-शोर से उठाया था। लेकिन, कोई कार्रवाई अब तक नहीं हुई। ये मामला बीते साल 2020 के नवंबर में सामने आया था लेकिन, मार्च 2021 तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। कुछ हफ्ते पहले मुजफ्फरपुर के एसएसपी जयंतकांत ने रामसूरत राय के भाई हंसलाल राय के गिरफ्तारी की बात कही थी, लेकिन आज तक नहीं हो सका। आउटलुक से बातचीत में राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं, “सिर्फ गरीबों को परेशान किया जा रहा है। शराबबंदी पूरी तरह से फेल हो चुकी है और दर्जनों लोगों की जाने जा रही है। मुज. मामले में ना तो प्रशासन पर कार्रवाई हुई और ना ही राय के भाई पर। ये सुशासन की व्यवस्था है। तेजस्वी की अगुवाई में आरजेडी जल्द हल्ला बोलेगी“ यहां तक की शराबबंदी पर पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी समेत कई एनडीए के नेता सवाल उठा चुके हैं।

साल 2016 में शराबबंदी लागू होने के ठीक बाद गोपालगंज के खजूरबानी शराबकांड में 19 लोगों की मौत हो गई थी। मार्च के पहले सप्ताह में कोर्ट ने इस मामले में 9 दोषियों को फांसी की सजा सुनाई है। इस तरह के मामले में फांसी की सजा पहला है। लेकिन, शराब पीने से मौत का सिलसिला नहीं थम रहा है। वहीं, 2016 से फरवरी 2021 के बीच, पांच साल में अब तक 3.46 लाख से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है। 

 

 

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