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‘मुझे जवाब तो उर्दू में ही चाहिए’

बिहार में बेशक गठबंधन सरकार में कांग्रेस शामिल है लेकिन अल्पसंख्यक मुद्दे पर पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और विधायक डॉ. शकील अहमद खान राज्य सरकार की नीतियों से कतई खुश नहीं। खासकर उर्दू भाषा के प्रोत्साहन के मामले में उन्होंने इन दिनों राज्य सरकार को आड़े हाथों लिया है।
‘मुझे जवाब तो उर्दू में ही चाहिए’

राज्य के कटिहार जिले की कदवा विधानसभा सीट से विधायक और कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव डॉ. शकील अहमद खान ने इस संबंध में राज्य सरकार को उर्दू भाषा में ही पत्र लिखकर पूछा है कि राज्य में दूसरी भाषा का दर्जा हासिल होने के बावजूद उर्दू भाषा भेदभाव का शिकार है। वह कहते हैं ‘बिहार की दूसरी राज्य भाषा होने के नाते हमें प्रशासन और सरकार से अपने खतों के जवाब उर्दू में ही मिलने चाहिए लेकिन नहीं मिलते हैं। कुछ भी हो मैं तो खत भी उर्दू में ही लिखूंगा और मुझे जवाब भी उर्दू में ही चाहिए।‘  डॉ.शकील अहमद के अनुसार बिहार में 26 सालों से किसी धर्मनिरपेक्ष सरकार ने उर्दू जुबान के लिए कुछ नहीं किया। राज्य में 14 फीसदी मुसलमान आबादी है। सीमांचल जिले जैसे अररिया, कटिहार, पूर्णिया और किशनगंज जिले अल्पसंख्यक बहुल हैं और बेहद पिछड़े इलाके भी हैं। डॉ.अहमद बताते हैं कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से ये इलाके अभी भी विकसित श्रेणी में नहीं आते हैं। रहती कसर आए वर्ष बाढ़ पूरी कर देती है। कोसी का पानी हर साल यहां के लोगों को कई वर्ष पीछे कर जाता है।

 

शकील अहमद का आरोप है कि अल्पसंख्यक विकास योजनाओं के तहत भी बिहार में दूसरे राज्यों की बजाय रुपया बहुत कम खर्च किया जा रहा है। यहां तक कि कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्रा प्रदेश से भी कम। बिहार के अल्पसंख्यक बहुल जिलों के गांव-देहात में रहने वाले लोग प्रशासन और सरकार से अपनी जानकारियां उर्दू में चाहते हैं क्योंकि वह दूसरी जुबान नहीं जानते हैं। लेकिन विभागों में उर्दू में तर्जुमा करने वाले लोग ही नहीं हैं। वर्ष 1999 के बाद उन्हें आज तक बहाल ही नहीं किया गया। साइन बोर्ड उर्दू में नहीं हैं। उर्दू टीचरों के 25,000 पद खाली पड़े हुए हैं।  

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