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स्वच्छता, पर्यटन से लेकर जन कल्याण के अनूठे प्रयोग देखने हैं तो चले आइए डूंगरपुर

कई ऐसे शहर-कस्बे होते हैं जो आपके मानचित्र पर मुश्किल से पकड़ में आते हैं लेकिन वे बड़े चुप्पे होते हैं।...
स्वच्छता, पर्यटन से लेकर जन कल्याण के अनूठे प्रयोग देखने हैं तो चले आइए डूंगरपुर

कई ऐसे शहर-कस्बे होते हैं जो आपके मानचित्र पर मुश्किल से पकड़ में आते हैं लेकिन वे बड़े चुप्पे होते हैं। बहुत कुछ सीने में दफन किए रहते हैं। उनके पास बताने को बहुत कुछ होता है। उन्हें बहला-फुसलाकर आहिस्ते से जानने की कोशिश करनी चाहिए। फिर आश्चर्य फूटता है।

राजस्थान का एक छोटा सा जिला है, डूंगरपुर। कस्बाई स्वभाव से लबरेज। ना बहुत भागने को आतुर, ना ही बहुत ठहरा हुआ। स्वच्छता इस जगह की अहम पहचान है। यह बात आपको यहां प्रवेश करते ही दिखने लगती है। आदिवासी बाहुल्य यह जिला राजस्थान का पहला ओडीएफ जिला है यानी यह खुले में शौच से पूरी तरह मुक्त है। इसके पीछे एक बड़ा अभियान और नगर परिषद के सभापति केके गुप्ता की कार्यशैली और रचनात्मक सोच है।

आदिवासी परिवारों ने की शौचालय बनाने की पहल

यहां शौचालय बनवाने के लिए कई आदिवासी परिवारों ने पहल की है। ऐसी ही एक महिला कुमारी बताती हैं कि उन्हें शौचालय बनाने के लिए सरकार से 12,000 रुपए और नगर परिषद से 5,000 रुपए मिले। साफ-सफाई को लेकर उनके भीतर जागरुकता है और उनका परिसर इसकी गवाही देता है। यहीं की एक महिला गौरी तब चर्चा में आई थीं, जब उन्होंने बकरी और पाजेब बेचकर शौचालय बनवाया था। यहां पिछले दो साल से डेंगू का एक भी केस सामने नहीं आया है।

 

गौरी

रात को होती है सफाई, जीपीएस से होती है कचरा गाड़ी की ट्रैकिंग

यहां रात को दस बजे के बाद सड़कों, फुटपाथ और सार्वजनिक जगहों की सफाई की जाती है। इसके लिए 40 कर्मचारी स्वच्छता प्रहरी बनकर निकलते हैं। सफाई का यह कार्यक्रम सुबह तीन बजे तक चलता है। सफाई कर्मचारी दस्तानों से लेकर जैकेट तक सारे साजो-सामान के साथ दिखाई देते हैं यानी तय मानकों का पूरा पालन किया जाता है। 

नगर परिषद के सभापति केके गुप्ता बताते हैं, "सफाई को लेकर जागरुकता फैलाने के लिए हमने कई ईनामी योजनाएं चलाईं। सफाई का संदेश देने वाले स्टीकर हर घर में लगाए जाते थे। इनमें एक नंबर होता था। कूपन के जरिए ड्रॉ निकाला जाता था और जिसका नंबर निकलता था, उसे ईनाम मिलता था। गीला कचरा-सूखा कचरा अलग रखने का संदेश दिया गया। कूड़े की फोटो व्हाट्सएप करने के लिए नंबर दिए गए। खुले में शौच करने वालों पर सख्ती बरती गई हालांकि इसका विरोध भी हुआ।" केके गुप्ता ने अगले स्वच्छता सर्वेक्षण में डूंगरपुर को नंबर वन बनाने का लक्ष्य रखा है।

केके गुप्ता

यहां कचरा गाड़ी जीपीएस पर ट्रैक की जाती है। इसके लिए नगर परिषद के भवन से मॉनीटरिंग की जाती है। कहीं से कूड़ा उठाने पर देरी होने पर कचरा गाड़ी के कर्मचारी पर फाइन भी लगाया जाता है। फाइन के रेट देरी के हिसाब से तय किए गए हैं।

रात को निकलते हैं स्वच्छता प्रहरी

आदिवासी महिलाएं बना रहीं सोलर पैनल

डूंगरपुर में दुर्गा एनर्जी नाम का प्रोजेक्ट चलता है। डूंगरपुर रिन्यूएबल प्राइवेट लिमिटेड नाम की इस कंपनी की डायरेक्टर आदिवासी महिलाएं हैं और वे ही इसे चलाती हैं। आईआईटी मुंबई के सहयोग से महिलाओं ने यहां सोलर पैनल बनाने की ट्रेनिंग ली है। वे इसके बेसिक पार्ट्स तैयार करती हैं। उन्हें इससे आमदनी भी हो रही है। महिलाओं को सैलरी भी मिलती है।

सोलर एनर्जी से बने लैम्प के बारे में कंपनी की एक सदस्य बताती हैं कि इसकी कीमत 900 रुपए है लेकिन सब्सिडी के बाद यह 200 का पड़ता है। 65 रुपए हम आईआईटी को देते हैं। 80 रुपए की हमारी बचत होती है।

कंपनी की सदस्य

फ्री कोचिंग और कंप्यूटर सेंटर, महिलाओं की बड़ी भागीदारी

डूंगरपुर नगर परिषद भवन में यहां लोगों के लिए मुफ्त कोचिंग और कंप्यूटर सेन्टर चलाया जाता है। यहां कई प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी होती है। इस कोचिंग सेंटर में जाने पर जो बात आपका ध्यान खींचती है वो यह कि यहां लड़कियों-महिलाओं की भागीदारी लड़कों से ज्यादा है। यहां घरेलू महिलाओं से लेकर छात्र-छात्राएं फ्री कंप्यूटर ट्रेनिंग भी लेते हैं। उन्हें टाइपिंग और एमएस वर्ड, एमएस एक्सेल जैसी जरूरी स्किल सिखाई जाती है, जो आगे नौकरी में काम आए। छात्र छात्राएं यहां से पढ़कर राजस्थान सिविल सर्विसेज, पुलिस, एसएससी और दूसरी श्रेणी की नौकरियों में जा रहे हैं।

कोचिंग सेंटर में महिलाओं-लड़कियों की भागीदारी ज्यादा

गायों के लिए मुसलमान देते हैं रोटियां

डूंगरपुर आज के माहौल में सांप्रदायिक सद्भाव की एक मिसाल भी बन सकता है। देश के हिंदू समाज में गायों को रोटी खिलाने की परंपरा रही है। लेकिन यहां मुसलमान भी गायों के लिए रोज एक रोटी देते हैं। शुरुआत में इस चीज में दिक्कत हुई लेकिन नगर परिषद के उपसभापति फखरुद्दीन की कोशिशों से यह संभव हो सका।

नगर परिषद उपसभापति फखरुद्दीन

वॉटर हार्वेस्टिंग, लड़कियों के लिए कराटे क्लास और रोटी बैंक

इलाके के पानी में फ्लोराइड की मात्रा ज्यादा है। इससे निपटने के लिए यहां 17 आरओ सिस्टम लगवाए गए हैं। इसके अलावा नगर परिषद भवन में बारिश के पानी को इकट्ठा कर उसे पीने लायक बनाने के लिए वॉटर हार्वेस्टिंग तकनीकि का इस्तेमाल किया जाता है। यहां के माध्यमिक स्कूल में बच्चियों-लड़कियों को आत्म सुरक्षा के लिए कराटे की ट्रेनिंग दी जाती है।

कराटे क्लास

2 सितंबर को यहां जिम की भी शुरुआत हुई है। इसके अलावा इसी दिन एक रोटी बैंक भी शुरू किया गया है, जो अपने आप में अनूठा प्रयोग है। शहर में लोगों के सहयोग से 100 से 200 लोग नि:शुल्क भोजन प्राप्त कर रहे हैं। सभापति केके गुप्ता ने बताया कि रोटी बैंक से अभी तक 35 लोग 1 लाख रुपया देकर ट्रस्टी बन चुके हैं। इसमें प्राइवेट स्कूलों के बच्चों को घर से एक रोटी लाने को कहा जाता है।

रोटी बैंक

इतिहास और पर्यटन

डूंगरपुर का इतिहास मेवाड़ वंश से जुड़ा हुआ है। लोग यहां महाराणा प्रताप का नाम बड़े आदर से लेते हैं। डूंगरपुर के रजवाड़े महारावल टाइटल का इस्तेमाल करते थे। डूंगरपुर स्टेट की स्थापना 14वीं शताब्दी के अंत में रावल बीर सिंह ने की थी। इसका नाम भील समुदाय के एक सरदार डूंगरिया के नाम पर रखा गया था। रावल उदय सिंह (जिन्होंने बाबर के खिलाफ 1527 में खानवा की लड़ाई राणा सांगा के साथ मिलकर लड़ी थी) की मौत के बाद डूंगरपुर दो भागों में बंट गया। डूंगरपुर और बांसवाड़ा। डूंगरपुर के आखिरी राजा महारावल लक्ष्मण सिंह बहादुर (1918-1989) थे।

इस तरह डूंगरपुर का अपना एक इतिहास और विरासत है जो देखी जानी चाहिए। यहां से राज्य सभा सांसद हर्षवर्धन सिंह कहते हैं कि हमें डूंगरपुर को पर्यटन के मानचित्र पर लाना है। इसके लिए पर्यटन विभाग ने एक सर्किट भी तैयार किया है। 

राज्य सभा सांसद हर्षवर्धन सिंह 

डूंगरपुर में जूना महल, उदय बिलास पैलेस, गाम्बी देवकी, गलियाकोट, ऋषिमंडल, श्रीनाथ मंदिर, बादल महल, फतेहगढ़ी, गैपसागर झील देखने लायक हैं।

गैपसागर झील

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