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छठ: नहीं दिखा सरकार के आदेश का असर, लोगों ने सोशल डिस्‍टेंसिंग का ध्‍यान रखा न ही मास्‍क का

उगते हुए सूर्य को अर्घ्‍य के साथ लोक आस्‍था के चार दिनों का पर्व छठ सम्‍पन्‍न हो गया। छठ बाद कोरोना...
छठ: नहीं दिखा सरकार के आदेश का असर, लोगों ने सोशल डिस्‍टेंसिंग का ध्‍यान रखा न ही मास्‍क का

उगते हुए सूर्य को अर्घ्‍य के साथ लोक आस्‍था के चार दिनों का पर्व छठ सम्‍पन्‍न हो गया। छठ बाद कोरोना के दूसरे लहर की चेतावनी के बावजूद छठ के मौके पर सरकारी दिशा निर्देश का असर श्रद्धालुओं पर नहीं दिखा। घर हो या घाट न सोशल डिस्‍टेंसिंग का लोगों ने ध्‍यान रखा न मास्‍क का। अनदिना सड़कों पर मास्‍क लगाने वालों के चेहरे से भी मास्‍क गायब थे। पहले हम, पहले हम वाले अंदाज में छठ वृति के सूप पर अर्घ्‍य के लिए कतार लगी रही। बिना देह दूरी बनाये। 


आस्‍था में डूबे हुए मन के आगे सरकार का निर्देश दरकिनार रहा। पटाखे भी चले। उम्र की कोई सीमा नहीं थी, बच्‍चे, बुजुर्ग सब शामि हुए। मौसम का असर यह रहा कि रांची में सुबह उगते हुए सूरज का दर्शन नहीं हुआ। सूरज बादलों के पीछे छिपा रहा और लोगों ने उगते हुए सूरज को देख अर्घ्‍य देने के बदले मोबाइल और घड़ी में सूरज के उगने का समय देख अर्घ्‍य दान शुरू किया। कोरोना का फर्क इतना भर रहा कि पहले की तुलना में बड़ी संख्‍या में घर में ही घाट बन गये। यानी घर के परिसर या छत पर जलकुंड बनाकर लोगों ने पूजा अर्चना, अर्घ्‍य दान किया। निजी घर हो या अपार्टमेंट की छत ज्‍यादातर स्‍थानों पर सामूहिक रूप से लोगों ने पूजा-अर्चना की। रेडिमेड जलकुडों का बाजार आबाद रहा। नदी, तालाबों पर भी लोग जुटे मगर पूर्व के सालों जैसी भीड़ नहीं थी।


कोरोना को देखते हुए पहले सरकार ने नदी, तालाबों, डैम पर छठ पूजा की पाबंदी लगा दी थी। सोशल मीडिया और पक्ष विपक्ष के राजनीतिक दलों की मांग के बाद अंतिम समय में सरकार ने सोशल डिस्‍टेंसिंग आदि शर्तों के साथ नदी, तालाब, झील आदि के किनारे छठ पूजा की अनुमति दी गई। हालांकि पूजा समितियों, स्‍थानीय निकायों की ओर सह पहले से साफ-सफाई का इंतजाम किया जा रहा था। नदी, डैम, तालाबों के किनारे सफाई और लाइटिंग की मुकम्‍मल व्‍यवस्‍था थी मगर कोरोना को देखते हुए लोग खुद थोड़ा कम निकले।

सरकार की भी अपील थी कि जिनके घरों में इंतजाम न हो सके वे ही नदी, तालाबों की ओर जायें। राजभवन व मुख्‍यमंत्री आवास के निकट का हटनिया तालाब हो, रांची का बड़ा तालाब, करमटोली तालाब, धुर्वा डैम या दूसरे तालाब, डैम यानी रांची के कोई 70 घाट, हर जगह कम-ज्‍यादा एक ही तरह की स्थिति थी। लाइटिंग थी मगी अपेक्षाकृत लोग कम थे। इसके बावजूद भीड़ थी। सुरक्षा को देखते हुए सड़कों, घाटों के किनारे पुलिस की गश्‍त तेज थी। ड्रोन कैमरे से भी निगरानी रखी जा रही थी।



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