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भाजपा ढूंढ रही पन्ना प्रमुख तो कांग्रेस अपने चेहरे!

कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को अपने पन्ना प्रमुख नहीं मिल पा रहे, लोकसभा...
भाजपा ढूंढ रही पन्ना प्रमुख तो कांग्रेस अपने चेहरे!

कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को अपने पन्ना प्रमुख नहीं मिल पा रहे, लोकसभा चुनाव के दौरान बने पन्ना प्रमुखों की सूची कहीं गायब हो गई है और कुछ स्थानों पर सूची उपलब्ध है तो चेहरे गायब हैं। इसका कारण संगठन की बैठक में बताया गया कि कुछ स्थानों पर पन्ना प्रमुख पार्टी विधायकों ने बनाए थे और सूची भी उनके पास थी। जिन विधायकों के टिकट कट गए वे न अब सूची उपलब्ध करवा रहे हैं न अपने समर्थकों को इस जिम्मेदारी के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

संगठन की बैठक में यह विषय आने पर कई पदाधिकारी हैरान रह गए। विधायकों ने योजनाबद्ध ढंग से अपने समर्थक पन्ना प्रमुख तैयार किए थे कि उन्हें अगला विधानसभा चुनाव लड़ते समय कोई कठिनाई न आए परंतु उन्हें क्या पता विधि को कुछ और मंजूर था। आनन-फानन में नए पन्ना प्रमुख तैयार किए जा रहे हैं और उनकी सूची संगठन को सौंपी जा रही है। उधर पार्टी कार्यकर्ताओं की अपनी पीड़ा है। उधर संगठन से जुड़े नेता दलील दे रहे हैं कि पहले एक कार्यकर्ता को बुलाते थे तो 5 आ जाते थे। अब स्थिति इसके विपरीत हो गई है। एक कार्यकर्ता को 5-5 बार बुलाना पड़ता है।

फील्ड में कम, सोशल मीडिया में ज्यादा सक्रिय रहते हैं कार्यकर्ता

उधर, कांग्रेस को संसाधनों के साथ-साथ कार्यकर्ताओं के अभाव का भी सामना करना पड़ रहा है। ज्यादा स्थिति चेहरों को लेकर है। कुछ स्थानों पर टिकट से वंचित रह गए नेता दिखावे के लिए साथ तो चल रहे हैं परंतु वे नहीं चाहते कि पार्टी प्रत्याशी जीत जाएं। जातिगत समीकरण भी मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। 2 विभिन्न जातियों से जुड़े नेताओं ने साथ लगते 2 निर्वाचन क्षेत्र आपस में इसलिए बांट लिए थे कि वे टिकट की राह में एक-दूसरे के लिए रोड़ा नहीं बनेंगे। एक नेता जी ने स्वयं चुनाव से किनारा कर लिया और दूसरे के निर्वाचन क्षेत्र में समझौते के विपरीत किसी और को टिकट दिलवा दी। दोनों में महाभारत शुरू हो गया है और इसका खमियाजा दोनों निर्वाचन क्षेत्रों में खड़े पार्टी प्रत्याशी को उठाना पड़ रहा है। कुछ उम्मीदवार 2024 की तैयारी मानकर चुनाव लड़ रहे हैं तो कुछ इस बार नया परिवर्तन करने का जज्बा रखते हैं। चेहरों की तलाश में समय व्यर्थ करने की बजाय उम्मीदवार अब अपने बलबूते पर चुनाव प्रचार को गति प्रदान कर रहे हैं। चुनावी माहौल को देखकर कुछ नेता बाहर निकल आए हैं और कुछ अभी न नुकुर कर रहे हैं।  

न पर्ची, न खर्ची -अब चलेगी अपनी मर्जी!

मुख्यमंत्री मनोहर लाल के आदर्श वाक्य कि सरकारी नौकरियों में भर्ती में अब योग्यता और मैरिट चलती है, बिचौलियों की कोई भूमिका नही हैं, पारदॢशता के साथ भर्ती होती हैं, न पर्ची और न खर्ची। अब कुछ स्थानों पर मतदाताओं ने भी अपने इस संकल्प को दोहराया है कि वे अपने 5 वर्ष का जनप्रतिनिधियों का चयन करते समय बिचौलियों की भूमिका को समाप्त करते हुए बिना पर्ची और खर्ची के मतदान सुनिश्चित करेंगे।

मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए कोई भी दल प्रलोभन आदि न दे सके कुछ स्वयंसेवी संगठन इस आशय का अभियान भी चला रहे हैं, दलित और पुनर्वास बस्तियों में इस अभियान पर विशेष बल दिया जा रहा है। वैसे चुनाव आयोग इस पर पैनी निगाह रखे हुए है कि मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए कोई दल या प्रत्याशी आचार संहिता विरुद्ध जाकर कार्य न करे। इसके बावजूद वोट पाने के लिए हर तरह का खेल खेला जाता है।

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