Advertisement

बिहारः डायन के बहाने बलि

अचानक बिहार में हत्‍या, लूट, बलात्‍कार, उगाही जैसी घटनाओं की बाढ़ आ गई है। अभी पटना में एक डॉक्‍टर की...
बिहारः डायन के बहाने बलि

अचानक बिहार में हत्‍या, लूट, बलात्‍कार, उगाही जैसी घटनाओं की बाढ़ आ गई है। अभी पटना में एक डॉक्‍टर की उनके घर के बाहर गोली मारकर हत्‍या की सुर्खियां ठंडी भी नहीं पड़ी थीं कि पूर्णिया से डायन के नाम पर पूरे परिवार को जलाकर मार डालने की घटना से देश सन्‍न रह गया। पूर्णिया जिले में मुफस्सिल थाना क्षेत्र के राजीगंज पंचायत के टेटगामा वार्ड 10 में डायन के आरोप में एक ही परिवार के पांच लोगों की जिंदा जला कर हत्या कर दी गई। कथित तौर पर एक बच्चे की बीमारी ठीक न होने का दोष उस परिवार के किसी ‘डायन’ पर डाला गया। बात इतनी बढ़ी कि पूरे परिवार की हत्या में तब्दील हो गई। यही नहीं, घटना के वक्त वहां करीब 200 से ज्यादा लोग मौजूद थे, लेकिन सभी तमाशबीन बने रहे। तो, क्‍या राज्‍य में सारे अपराध एक साथ सिर उठाने लगे हैं, जबकि राज्‍य में अगले दो-तीन महीने में ही विधानसभा चुनाव तय हैं।

डायन हत्‍याएं अंधविश्‍वास का सबसे कुरूप चेहरा है और तमाम कानूनों के बावजूद यह विकृति रह-रहकर देश के हर कोने से उभरती रही है। पूरे देश में अक्सर इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं। किसी की बीमारी, बढ़ते कर्ज, बच्चों की शादी न होने, फसल खराब हो जाने जैसे अनगिनत कारण हैं, जिनका दोष किसी महिला के सिर मढ़ दिया जाता है और इस बहाने से उसे डायन बता कर उसकी हत्या कर दी जाती है। अंधविश्वास के ऐसे भयावह किस्सों की पूरी शृंखला है।

पूर्णिया के परिवार का जिंदा बचा इकलौता सदस्य सोनू बताया जा रहा है। उसी ने बताया कि उसकी नजरों के सामने ही उसके दादी, पिता, मां और भाई को जिंदा जला दिया गया। उसने बताया कि भीड़ उसके पीछे भी थी, लेकिन वह किसी तरह अपनी नानी के घर भाग गया। सोनू के मुताबिक, देर रात लोग घर आए और सभी को मारने-पीटने लगे। भीड़ ने परिवार को बंधक बना लिया लेकिन व‍ह किसी तरह भागने में सफल रहा और कुछ दूर जाकर छुप गया। सोनू का कहना है कि उसने गांव वालों को अपने परिजनों को घसीटकर ले जाते हुए और सभी को जिंदा जलाते देखा। फिर लाशें बोरी में भरकर दफना दी गईं। सोनू का कहना है कि वह भागना नहीं चाहता था लेकिन वह वहां रहकर परिवार को बचाने की कोशिश करता तो मार दिया जाता।

हर बार ऐसी घटना के बाद सवाल उठता है कि आखिर क्यों कानून इस तरह की हत्याएं नहीं रोक पा रहा है या ऐसी हत्याएं क्यों हो रही हैं। इस तरह की घटनाओं के पीछे अंधविश्वास की गहरी जड़ें हैं। बिहार ही नहीं, झारखंड में भी आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों में अंधविश्वास और टोना-टोटका आज भी समाज में गहरे बैठा हुआ है। जब भी किसी परिवार में बीमारी या अचानक मृत्यु होती है, तो इसका दोष गांव की किसी महिला पर डाल दिया जाता है। ऐसी महिला अक्सर वंचित तबके से होती है। ज्यादातर डायन महिलाएं दलित समुदाय की होती हैं। कई बार उन्‍हें अकेली और कई बार पूरे परिवार को अंधविश्वास की बलि चढ़ा दिया जाता है। तमाम कानूनों के बावजूद यह कुरीति आज भी बनी हुई है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, बिहार में वर्ष 2000 से 2024 तक 2,500 से अधिक महिलाओं की डायन बता कर हत्या की जा चुकी है। यह संख्या अधिक होने का अनुमान है क्योंकि ढेरों ऐसे मामले दर्ज नहीं हो पाते।

झारखंड में स्थिति और भी भयावह है। पिछले 20 साल में 1800 से अधिक महिलाओं को डायन बताकर मारा गया। इसका मतलब है, हर तीसरे दिन झारखंड में एक महिला अंधविश्वास की बलि चढ़ती है। 2015 से 2020 के बीच 4,556 मामले दर्ज हुए और 272 हत्याएं हुईं, जिनमें से 215 महिलाएं थीं।

यह विडंबना ही है कि बिहार देश का पहला राज्य है, जिसने डायन प्रथा और काला जादू पर रोक लगाने के लिए 1999 में कानून बनाया था। फिर भी यहां इस तरह की हत्याएं रोकने का कोई साधन नहीं है। इस कानून के तहत काला जादू, टोना-टोटका और डायन कहकर प्रताड़ित करने पर सजा का प्रावधान है।

बिहार में निरंतर ट्रस्ट नाम की स्वयंसेवी संस्था लोगों के बीच जागरूकता लाने का प्रयास करती है। डायन बता कर महिला के साथ यौन हिंसा या हत्या को लेकर ट्रस्ट काम करता है। संस्था उन महिलाओं के अनुभवों को सामने लाने का काम करती है, जिन्होंने डायन प्रथा की वजह से हिंसा का सामना किया है। इसका उद्देश्य सार्वजनिक मंचों पर इससे जुड़ी बहस को नए नजरिये से रखना भी है।

बिहार के अलावा झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में भी डायन प्रथा को लेकर कानून बनाए गए हैं। लेकिन झारखंड में भी कानून के बावजूद इस तरह की हत्याएं रुकी नहीं है। झारखंड में 2001 में यह कानून बनाया गया था। ओडिशा में 2013 में डायन और टोना-टोटका पर रोक लगाने वाला कानून बना, जिसमें 1 से 3 साल की सजा का प्रावधान है। छत्तीसगढ़ में 2015 में बने टोनाही प्रताड़ना निवारण नाम से कानून बना जिसमें पांच साल तक की सजा का प्रावधान है।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad