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बिहार कैबिनेट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10% आरक्षण बिल को दी मंजूरी

बिहार की नीतीश सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को 10 फीसदी आरक्षण को मंजूरी दे दी है।...
बिहार कैबिनेट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10% आरक्षण बिल को दी मंजूरी

बिहार की नीतीश सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को 10 फीसदी आरक्षण को मंजूरी दे दी है। राज्य कैबिनेट की शुक्रवार की देर शाम हुई बैठक में इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। नीतीश सरकार से पहले गुजरात, झारखंड, यूपी और राजस्थान सरकार सवर्ण आरक्षण को मंजूरी दे चुकी है।

बिहार कैबिनेट की बैठक शुक्रवार को मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार की अध्‍यक्षता में हुई, जिसमें आर्थिक रुप से कमजोर सामन्य वर्ग को आरक्षण के प्रस्ताव को स्‍वीकृति दी गई। राज्य सरकार अब इसके लिए अधिनियम बनाएगी। अधिनियम को 11 फरवरी से शुरू हो रहे विधानमंडल के बजट सत्र में पेश किया जाएगा। दोनों सदनों में चर्चा के बाद इसे पास कराया जाएगा। इसके बाद राज्यपाल की सहमति से इसे लागू कर दी जाएगी। इसके बाद राज्य में कुल 60% आरक्षण का प्रावधान हो जाएगा। बता दें इसके पहले सीएम नीतीश कुमार ने कहा था कि राज्य सरकार सवर्ण आरक्षण को लागू करने के लिए बजट सत्र में विधेयक लाएगी।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दी थी मंजूरी

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सामान्य वर्ग के आर्थिक तौर पर कमजोर लोगों को नौकरियों और शिक्षा में 10 प्रतिशक आरक्षण से संबंधित संविधान (103वां संशोधन) अधिनियम 2019 को मंजूरी दे दी थी। जिसके बाद अब देश में सरकारी नौकरी और शैक्षणिक संस्थानों में 10 प्रतिशत आरक्षण का रास्ता साफ हो गया था। आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को नौकरी और शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण देने वाला यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन कर सामान्य वर्ग के गरीबों को आरक्षण का प्रावधान करता है।

जानें किन्हें मिलेगा इसका लाभ

आर्थिक रूप से पिछड़े ऐसे सामान्य वर्ग परिवार इस आरक्षण के हकदार होंगे जिनकी सालाना कमाई 8 लाख रुपए से कम होगी, जिसके पास 5 हेक्टेयर से कम जमीन होगी, जिनका घर 1000 स्क्वेयर फीट से कम क्षेत्रफल का हो, अगर घर नगरपालिका में होगा तो प्लाट का आकार 100 यार्ड से कम होना चाहिए और अगर घर गैर नगर पालिका वाले शहरी क्षेत्र में होगा तो प्लाट का आकार 200 यार्ड से कम होना चाहिए।

ममता का इनकार

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस व्यवस्था को लागू करने से इनकार कर दिया है। मुख्यमंत्री ममता के अलावा डीएमके प्रमुख ने एमके स्टालिन ने भी गरीबी आधारित आरक्षण का पूरजोर विरोध किया है। यही नहीं, डीएमके ने इसके खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट का रूख किया है। डीएमके द्वारा दायर की गई याचिका में आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों के लिए केंद्र द्वारा लागू किए गए आरक्षण व्यवस्था को संविधान के खिलाफ और एससी-एसटी के खिलाफ बताया है।

संसद में चली लंबी बहस, फिर पास हुआ यह बिल

सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरी में 10 फीसदी आरक्षण देने के फैसले पर केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 7 जनवरी को मुहर लगाई जिसके बाद आरक्षण व्यवस्था को लागू करने के लिए 8 जनवरी को लोकसभा में संविधान का 124वां संशोधन विधेयक 2019 पेश किया गया था। लंबी बहस के बाद यह विधेयक लोकसभा में पास हो गया। इसके अगले दिन राज्यसभा में इस संशोधन विधेयक को पेश किया गया और लंबी बहस के बाद यहां भी पास कर दिया गया। दोनों सदनों से बिल पास होने के बाद मंजूरी के लिए राष्ट्रपति कोविंद के पास भेजा गया। जहां राष्ट्रपति कोविंद ने भी बिल पर हस्ताक्षर कर अपनी मंजूरी दे दी।

49.5 फीसदी आरक्षण से अलग होगा

यह आरक्षण अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लोगों को मिलने वाले 49.5 फीसदी आरक्षण से अलग होगा।

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