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मोदी को ही नुकसान पहुंचा सकता है उनका ये दांव, 2019 का बिगड़ेगा खेल

देश में मोदी सरकार के आने के बाद पूर्वोत्तर में भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) पैर पसारने में लगी हुई है।...
मोदी को ही नुकसान पहुंचा सकता है उनका ये दांव, 2019 का बिगड़ेगा खेल

देश में मोदी सरकार के आने के बाद पूर्वोत्तर में भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) पैर पसारने में लगी हुई है। काफी हद तक इसमें पार्टी की सफलता भी देखी जा सकती है। लेकिन नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 के लोकसभा में पारित होने के बाद असम, त्रिपुरा, मणिपुर, मेघालय जैसे राज्यों में इसका भारी विरोध किया जा रहा है। असम सरकार से दो सहयोगी दल अलग हो गए हैं। असम गण परिषद के तीन मंत्रियों ने सोनवाल सरकार की कुर्सी छोड़ दी है। कहा जा रहा है कि पूर्वोत्तर राज्यों के कई छोटे दल इस बिल को लेकर भाजपा का साथ छोड़ सकते हैं। यदि ऐसा होता है तो भाजपा के हाथ से पूर्वोत्तर राज्य निकल सकते हैं और इसका प्रभाव आने वाले समय में होने वाले लोकसभा चुनाव पर भी पड़ सकता है। भाजपा के कई वरिष्ठ नेता भी आगामी चुनाव के मद्देनजर इस बिल को पार्टी के लिए नुकसानदेह बता रहे हैं।

इस विधेयक में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। असम गण परिषद और उत्तर पूर्व के संगठन इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं। उनका आरोप है कि यह अधिकार मिलने से असम जैसे राज्यों की जनसंख्यिकी में भारी बदलाव आ सकता है। एजीपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल महंत कहते हैं, "विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी ने सत्ता में आने की स्थिति में राज्य से अवैध बांग्लादेशी नागरिकों को खदेड़ने का वादा किया था। लेकिन विडंबना यह है कि अब वही पार्टी गैर-मुसलमान आप्रवासियों को नागरिकता देने जा रही है।" वह कहते हैं कि यह ऐतिहासिक असम समझौते के प्रावधानों का खुला उल्लंघन है।

वहीं खुद भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि लोकसभा चुनाव के मद्देनजर यह बिल भाजपा के लिए मुसीबत पैदा कर रहा है। पार्टी के एक  वरिष्ठ नेता का कहना है कि इस संभावित खतरे को देखते हुए जल्द ही कोई बीच का रास्ता निकाला जा सकता है।

विरोध क्यों?

विधेयक में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से यहां आने वाले गैर-मुसलमानों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। भले उनके पास कोई वैध कागजात नहीं हो। इसके साथ ही नागरिकता के लिए अनिवार्य 12 साल की समयसीमा घटा कर छह साल कर दी गई है। यानी उक्त देशों के हिंदू, पारसी, सिख और ईसाई समुदाय का कोई भी व्यक्ति बिना किसी वैध कागजात के भी छह साल से भारत में रह रहा है तो वह नागरिकता का हकदार हो जाएगा। विरोध करने वाले संगठनों को इसी बात पर आपत्ति है।

इन 11 पार्टियों के दम पर टिकी है भाजपा!

भाजपा को अच्छी तरह पता है कि उत्तर-पूर्व में जमीनी स्तर पर न तो उसके कार्यकर्ता हैं और न ही काडर। ऐसे में छोटे दलों के साथ और कांग्रेस के बागी नेताओ को भाजपा में मिलाकर ही वह पूर्वोत्तर में पांव जमा सकती है। अब असम गण परिषद के केंद्र सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद त्रिपुरा, नगालैंड, मिजोरम के तीन क्षेत्रीय दल बिल के प्रावधानों को स्थानीय समूहों के लिए खतरा बता रहे हैं। बीजेपी के नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (NEDA)  में 11 क्षेत्रीय दल शामिल हैं। लेकिन इस बिल के आने के बाद वह भी गठबंधन को लेकर आशंकित दिखाई दे रहे हैं।

ये है असम विधानसभा की स्थिति

एनडीए से गठबंधन तोड़ने के बाद आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो असम विधासनभा की 126 सीटों में से 61 विधायक बीजेपी के हैं। उन्हें बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट के 12 और एक निर्दलीय विधायक का समर्थन हासिल है। कांग्रेस के यहां 25 और आल इंडियन यूनाइटेड फ्रंट के 13 विधायक हैं और असम गण परिषद् के 14 विधायक हैं। असम में जादुई आंकड़ा 63 का है और हालांकि असम गण परिषद् के अलग होने से सर्बानंद सोनेवाल सरकार को कोई ख़तरा नहीं है।

त्रिपुरा में भी यहयोगी पार्टी ने किया विरोध

इंडीजीनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) त्रिपुरा में भाजपा की सहयोगी पार्टी है। इसने भी इस बिल के पास होने के बाद खुला विरोध किया है। आईपीएफटी  के असिस्टेंट जनरल सेक्रेटरी मंगल देब बर्मा ने कहा कि हम लोकसभा में बिल के पास होने के मुद्दे पर मीटिंग करने जा रहे हैं और आगे की रणनीति तय करेंगे। त्रिपुरा में बीजेपी ने 35 सीटें जीती थीं जबकि आईपीएफटी को 8 सीट पर जीत मिली थी।

मेघालय के सीएम ने बताया दुर्भाग्यपूर्ण

हाल ही में मेघालय के सीएम कोनार्ड संगमा ने भी नागरिकता संशोधन बिल 2016 के पास होने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि वह भविष्य की रणनीति तय करने के लिए पार्टी नेताओं से चर्चा करेंगे। मेघालय में एनपीपी सत्ताधारी मेघालय डेमोक्रेटिक अलायंस (एमडीए) सरकार की अगुआई करती है। इसमें भाजपा भी गठबंधन की घटक पार्टी है। यहां 60 सदस्यों वाली विधानसभा में एनपीपी के पास 20, यूडीपी के पास 8, पीडीएफ के पास 4 और बीजेपी के पास 2 सीटें हैं। इस तरह मेघालय डेमोक्रेटिक अलायंस के पास कुल 38 सीटें हैं। वहीं, कांग्रेस की बात करें तो यहां उनके पास 20 सीटें हैं।

मिजोरम में भी विरोध

मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथंगा ने भी नागरिकता संशोधन बिल 2016 का विरोध किया है। उनका कहना है कि लोकसभा में बिल पास होने से वो खुश नहीं हैं। हमें लगता है कि बिल राज्यसभा में पास नहीं होगा। यदि ऐसा होता है तो हमें भी अपनी भविष्य की रणनीति पर सोचना पड़ेगा। मालूम हो कि मिजोरम में हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में जोरमथंगा की मिजो नैशनल फ्रंट (एमएनएफ) ने 26 सीटें जीती थीं। इस पार्टी ने विधानसभा चुनाव में बीजेपी का जोरशोर से विरोध किया था, लेकिन यह एनपीपी और आईपीएफटी की तरह NEDA की संस्थापक सदस्यों में से एक है।

नगालैंड में भी विरोध

नगालैंड में भी यहां बीजेपी मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो की नैशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के साथ गठबंधन में है। बिल पास होने के बाद नैशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी ने केंद्र सरकार से दरख्वास्त की है कि बिल के प्रावधानों पर दोबारा से विचार किया जाए।

मणिपुर को नागरिकता संशोधन बिल से अलग रखा जाए

मणिपुर में 2017 में व भाजपा सरकार बनी थी। यहां नागरिकता संशोधन बिल को लेकर मुख्यमंत्री बीरेन सिंह विरोध कर रहे हैं। मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने केन्द्र से कहा है कि मणिपुर को नागरिकता संशोधन बिल से अलग रखा जाए। हाल ही में मणिपुर ने मणिपुर पिपुल्स प्रोटेक्शन बिल (MPP) पास किया है, जिसे मंज़ूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा गया है।

लोकसभा चुनाव के लिए बढ़ सकती हैं मुश्किलें

साल 2014 में आठ पूर्वोत्तर राज्यों की कुल 25 लोकसभा सीटों में से बीजेपी ने र्फ 8 सीटें जीती थी। साथ ही उसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा की का प्रदर्शन काफी बेहतर रहा। लेकिन इस बिल को लेकर पूर्वोत्तर में उभर रही नाराजगी और क्षेत्रीय दलों का विरोध पार्टी की अपेक्षित सफलता को कमतर कर सकता है। 

पूर्वोत्तर के लोगों को किसी तरह नुकसान नहीं होगा

अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को असम और पूर्वोत्तर के लोगों को आश्वासन दिया है। पीएम ने कहा ,‘‘यह पूर्वोत्तर के लोगों से एक राष्ट्रीय प्रतिबद्धता है कि उन्हें किसी तरह नुकसान नहीं होगा और जांच एवं राज्य सरकारों की सिफारिश के बाद ही नागरिकता दी जाएगी।’’ मोदी ने कहा, ‘‘हम उन लोगों को शरण देने के प्रति प्रतिबद्ध हैं जो पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यक हैं और जिन्हें उनपर ढाए गए जुल्मों के चलते सब कुछ छोड़ कर भागना पड़ा। वे हमारे देश में आए हैं और भारत मां के विचारों और लोकाचार को अपनाया है।’’ मोदी ने कहा कि भाजपा 36 साल पुराने असम समझौते को लागू करने के प्रति वचनबद्ध है और उसके अनुबंध 36 के क्रियान्वयन के लिए एक समिति का गठन इसकी दिशा में एक कदम है। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार असम और पूर्वोत्तर की भाषा, संस्कृति, संसाधन, आशा और आकांक्षाओं के संरक्षण के लिए कटिबद्ध है।

 

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