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कैमरन से लेकर थेरेसा तक को जलियांवाला बाग हत्याकांड पर अफसोस.. लेकिन नहीं मांगी माफी

"मुझे आज अमृतसर में हुए भीषण जलियांवाला बाग नरसंहार के स्थल पर जाकर शोक, विनम्रता और गहरा शर्म का एहसास...
कैमरन से लेकर थेरेसा तक को जलियांवाला बाग हत्याकांड पर अफसोस.. लेकिन नहीं मांगी माफी

"मुझे आज अमृतसर में हुए भीषण जलियांवाला बाग नरसंहार के स्थल पर जाकर शोक, विनम्रता और गहरा शर्म का एहसास हुआ है। 1919 में यहां बड़ी संख्या में सिखों के साथ-साथ हिंदू, मुस्लिम और ईसाई भी मारे गए।''

यह शब्द  कैंटरबरी के आर्कबिशप जस्टिन पोर्टल वेल्बी के हैं। उन्होंने मंगलवार को जलियांवाला बाग की यात्रा के दौरान यहां हुए नुकसान, क्रोध और यातना के लिए दुख जताया और प्रार्थना की। इतना ही नहीं उन्होंने वहां बकायदा लेटकर होकर इस भयानक अत्याचार के लिए भगवान से माफी भी मांगी।

13 अप्रैल को जालियांवाला बाग हत्याकांड के सौ साल पूरे हुए। अगर किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था तो वह घटना यह जघन्य हत्याकाण्ड ही था।

जालियांवाला बाग हत्याकांड भारत के पंजाब प्रान्त के अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर के पास जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 (बैसाखी के दिन) हुआ था। रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी जिसमें जनरल डायर नाम के एक अंग्रेज अधिकारी ने उस सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियां चलवा दीं जिसमें 400 से ज्यादा लोगों की जान चली गई और 2000 से अधिक घायल हुए।

समय-समय पर भारतीय लोगों की ओर से ब्रिटेन की सरकार को माफी मांगने की बात कही जाती रही है। ध्यान रहे कि 1997 में महारानी एलिजाबेथ ने इस स्मारक पर आकर मृतकों को श्रद्धांजलि दी थी। उसके बाद ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री डेविड कैमरन से लेकर थेरेसा मे भी इस घटना पर अफसोस जता चुके हैं लेकिन माफी की दरकार अब भी है। आर्कबिशप के इस माफी के बाद एक बार फिर इस पर चर्चा शुरू हो गई है।

थेरेसा मे ने बताया था, 'शर्मसार करने वाला धब्बा'

ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने नरसंहार की 100वीं बरसी के मौके पर इस कांड को ब्रिटिश भारतीय इतिहास में 'शर्मसार करने वाला धब्बा' करार दिया, लेकिन उन्होंने इस मामले में औपचारिक माफी नहीं मांगी।

उन्होंने बयान में कहा था, ''1919 के जलियांवाला बाग नरसंहार की घटना ब्रिटिश भारतीय इतिहास पर शर्मसार करने वाला धब्बा है। जैसा कि महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने 1997 में जलियांवाला बाग जाने से पहले कहा था कि यह भारत के साथ हमारे अतीत के इतिहास का दुखद उदाहरण है।"

उन्होंने कहा, ''जो कुछ हुआ और लोगों को वेदना झेलनी पड़ी, उसके लिए हमें गहरा खेद है। मैं खुश हूं कि आज ब्रिटेन-भारत के संबंध साझेदारी, सहयोग, समृद्धि और सुरक्षा के हैं। भारतवंशी समुदाय ब्रिटिश समाज में बहुत योगदान दे रहा है और मुझे विश्वास है कि पूरा सदन चाहेगा कि ब्रिटेन के भारत के साथ संबंध बढ़ते रहें।"

हालाकिं विपक्षी लेबर पार्टी के नेता जेरेमी कॉर्बिन ने मांग की कि नरसंहार में मारे गये लोग उस घटना के लिए पूरी तरह स्पष्ट माफी के हकदार हैं।

ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना थी: कैमरन

इससे पहले 2013 में भारत दौरे पर आए ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने भी उस हत्याकांड को इतिहास की ‘शर्मनाक घटना’ बताया था। हालांकि उन्होंने भी इसके लिए माफी नहीं मांगी थी।

विजिटर्स बुक में उन्होंनें लिखा था, "ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना थी।"

माफी मांगने में दिक्कत क्यों?

इस हत्याकांड के लिए समय-समय पर  ब्रिटेन की ओर से ‘अफसोसनाक’, ‘शर्मनाक’, ‘काला अध्याय’ जैसे शब्द जरूर इस्तेमाल किए गए लेकिन माफी मांगने पर परहेज क्यों? …इस सवाल का जवाब काफी हद तक ब्रिटिश विदेश मंत्री मार्क फील्ड की बातों में मिल जाता है। उन्होंने 'जलियांवाला बाग नरसंहार पर हाउस ऑफ कामंस परिसर के वेस्टमिंस्टर हॉल में आयोजित बहस में भाग लेते हुये कहा था कि हमें उन बातों की एक सीमा रेखा खींचनी होगी जो इतिहास का 'शर्मनाक' हिस्सा हैं।

ब्रिटिश राज से संबंधित समस्याओं के लिए बार-बार माफी मांगने से अपनी तरह की दिक्कतें सामने आती हैं। फील्ड ने कहा कि वह ब्रिटेन के औपनिवेशिक काल को लेकर थोड़े पुरातनपंथी हैं और उन्हें बीत चुकी बातों पर माफी मांगने को लेकर हिचकिचाहट होती है। उन्होंने कहा कि किसी भी सरकार के लिए यह चिंता की बात हो सकती है वह माफी मांगे। इसकी वजह यह भी हो सकती है कि माफी मांगने से वित्तीय मुश्किलें भी खड़ी हो सकती हैं।

 

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