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किसानों को समझने में कहां हुई मोदी से चूक, क्यों नहीं सुन पाए किसानों के मन की बात

सबके मन की बात सुनने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों के मन की बात नहीं सुन पाए। नौबत दिल्ली कूच...
किसानों को समझने में कहां हुई मोदी से चूक, क्यों नहीं सुन पाए किसानों के मन की बात

सबके मन की बात सुनने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों के मन की बात नहीं सुन पाए। नौबत दिल्ली कूच की आई तो बीच रास्ते रोकने के लिए तमाम प्रयास भाजपा शासित हरियाणा और यूपी सरकारों ने किए। एक महीना पहले दिल्ली चलो का आहवान करने वाले किसानों से बातचीत के लिए पीएम का प्रतिनिधी कोई केंद्रीय आगे नहीं आया।  तीन दिसंबर का दिन बातचीत के लिए तय किया गया पर उससे पहले किसानों के दिल्ली कूच को सार्थक बातचीत के कोई प्रयास नहीं किए गए। सरकारों व पुलिस प्रशासन से सारी ताकत किसानों को दिल्ली आने से रोकने पर लगा दी। दिल्ली कूच न कर सकें इसलिए सड़कों को बड़े पत्थ्ररों से बंद किया गया, ठंडा पानी और डंडे बरसाए गए। लोकतंत्र में शांतिपूर्ण ढंग से अपने हकों की लड़ाई के लिए धरना -पर्दशन करने का सवैंधानिक अधिकार देश के सभी नागरिकों को है। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तौमर से 13 नवम्बर को और उससे पहले केंद्रीय कृषि सचिव से किसान संगठनों की दो दौर की बातचीत बेनतीजा रही तो  किसान सड़कों पर उतरने को मजबूर हुए हैं।

 हरियाणा भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढुनी के मुताबिक किसानों के दिल्ली कूच की नौबत ही न आती यदि केंद्र सरकार किसानों से बातचीत को समय रहते कदम उठाती। इसके बजाय हरियाणा की मनोहर सरकार किसानों पर ठंड में ठंडा पानी और डंडे बरसा रही है। किसान उपद्रवी नहीं हैं जैसा जख्म सरकार और पुलिस ने किसानों को दिया है उसे धरती पुत्र किसान कभी नहीं भूला पाएंगे। सबके मन की बात करने वाले माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी एक बार किसानों के मन की बात भी सुनते। केंद्र के कृषि बिलों को लेकर किसानों के संदेह दूर करने और उनके समाधान के लिए प्रधानमंत्री अपने केंद्रीय मंत्रियों को पंजाब और हरियाणा के किसानों के पास भेजते। किसान इतना ही चाहते हैं कि तीन नए कृषि कानून के साथ केंद्र सरकार उन्हें गेहूं,धान समेत 23 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य(एमएसपी) की लिखित गारंटी के लिए केंद्र सरकार एक और कानून संसद में पारित करे या फिर अपने तीनों कानून निरस्त करें। 

   देश की जीडीपी में 17 फीसदी योगदान देने वाली 60 फीसदी आबादी खेती से जुड़ी है। किसान और किसानी का मसला पार्टियों से ऊपर उठकर देखने का है। भारतीय किसान यूनियन राजेवाल के अध्यक्ष बलबीर सिंह राजेवाल का कहना है कि किसान मोदी विरोधी नही है। सत्तारूढ़ दल और विपक्ष दलों को बैठकर एक राय से किसानों की शंकाओं और समस्याओं का पक्का समाधान निकालना होगा। ऐसा समाधान जिससे भविष्य में किसानों को कड़ाके की ठंड मे सड़को पर रातें न गुजारनी पड़े। अहम का टकराव न हो। मोदी जी अन्नदाता के मन की बात सुनिए और समाधान निकालिए। अभी तक आप किसानों के मन की बात सुनने से चुक हुए हैं अभी भी देर नहीं हुई केंद्र के कृषि कानून के प्रति किसानों की आशंकाएं दूर कीजिए।

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