Advertisement

शरणार्थी समस्या, कट्टरता, सांप्रदायिकता पर बोली गईं स्वामी विवेकानंद की बातें आज भी प्रासंगिक

ऐसे दौर में जब रोहिंग्या शरणार्थियों का मुद्दा चल रहा है, स्वामी विवेकानंद इजरायल के शरणार्थियों की बात करते हैं। वैचारिक असहमतियों को सहन न कर पाने के इस दौर में उनकी बात याद करने लायक है, जब उन्होंने कहा था कि सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इसकी भयानक वंशज हठधर्मिता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं।
शरणार्थी समस्या, कट्टरता, सांप्रदायिकता पर बोली गईं स्वामी विवेकानंद की बातें आज भी प्रासंगिक

स्वामी विवेकानंद के शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन को संबोधित करने के 125 वर्ष पूरे हो रहे हैं। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि 125 साल पहले भी एक 9/11 हुआ था। उसमें विवेकानंद ने विश्व को रास्ता दिखाया था। हिन्दुस्तान के प्रति दुनियाभर का नजरिया बदला है। विवेकानंद कहते थे जनसेवा ही प्रभुसेवा है। प्रधानमंत्री मोदी ने देश भर की यूनिवर्सिटी और कॉलेजों के छात्रों को भी लाइव टेलीकास्ट के माध्यम से संबोधित किया।

स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर 1893 को शिकागो (अमेरिका) में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में एक बेहद चर्चित भाषण दिया था। विवेकानंद का जब भी जिक्र आता है उनके इस भाषण की चर्चा जरूर होती है। आज के दौर में भी यह भाषण काफी प्रासंगिक है।

स्वामी विवेकानंद 31 मई, 1893 के दिन मुंबई से यात्रा शुरु करके याकोहामा से एम्प्रेस ऑफ इंडिया नामक जहाज से वेकुअर पहुंचकर ट्रेन से शिकागो पहुंचे थे। जहाज में उनके सहयात्री जमशेदजी टाटा थे।

शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में सभा के मंच पर 50 से अधिक धर्मों के विद्वानों को बिठाया गया था। इस सभा का उद्देश्य अलग-अलग धर्मों के बारे में जानना एवं उनकी अच्छी बातें दुनिया तक पहुंचाना था। विवेकानंद के भाषण ने लोगों को काफी प्रभावित किया था।

इस भाषण में स्वामी विवेकानंद ने सबको आत्मसात करने की बात कही है। ऐसे दौर में जब रोहिंग्या शरणार्थियों का मुद्दा चल रहा है, स्वामी विवेकानंद इजरायल के शरणार्थियों की बात करते हैं। वैचारिक असहमतियों को सहन न कर पाने के इस दौर में उनकी बात याद करने लायक है, जब उन्होंने कहा था कि सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इसकी भयानक वंशज हठधर्मिता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं। इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है। वे भाईचारे का संदेश देते हैं। वे विविधता की बात करते हैं। पढ़िए, उनका शिकागो धर्म सम्मेलन में दिया गया भाषण-

अमेरिका के बहनों और भाइयों, 

आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है। मैं आपको दुनिया की सबसे प्राचीन संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और सभी जाति, संप्रदाय के लाखों, करोड़ों हिन्दुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं। मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है। मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं। 

मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और सताए गए लोगों को शरण दी है। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इजराइलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके धर्म स्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था। और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें पाल-पोस रहा है। भाइयों, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा जिसे मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है। जिस तरह अलग-अलग स्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद में जाकर मिलती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है। वे देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, पर सभी भगवान तक ही जाते हैं। वर्तमान सम्मेलन जोकि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से एक है, गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है: जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं। 

सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इसकी भयानक वंशज हठधर्मिता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं। इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है। कितनी बार ही यह धरती खून से लाल हुई है। कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं। 

अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है। मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad