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गांधी जयंती पर विशेषः खुले में शौच से मुक्ति की घोषणा से कोसों दूर है वास्तविकता

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर सरकार देश को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित करके उन्हें...
गांधी जयंती पर विशेषः खुले में शौच से मुक्ति की घोषणा से कोसों दूर है वास्तविकता

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर सरकार देश को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित करके उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देने की तैयारी कर रही है। देश भर में बने 10 करोड़ से ज्यादा नए शौचालयों की संख्या देखकर लगता भी है कि स्वच्छ भारत अभियान ने जन आंदोलन बनकर स्वच्छता के मामले में देश को न सिर्फ इस धब्बे से मुक्ति दिलाई है, बल्कि नागरिकों को बीमारियों से मुक्ति की सौगात दी है। लेकिन जमीनी वास्तविकता इतनी सुहानी नहीं है। सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा खुद को ओडीएफ घोषित किए जाने के लिए पेश किए आंकड़े और घोषणाओं पर उत्पन्न संदेह से यह धब्बा साफ नहीं हुआ है। यही नहीं, मध्य प्रदेश के शिवपुरी में खुले में शौच के कारण दो बच्चों की हत्या जैसी त्रासद घटनाओं ने ऐसी दुखद स्थिति पैदा कर दी जिससे निश्चित ही राष्ट्रपिता की आत्मा को कष्ट हो रहा होगा।

10 करोड़ शौचालयों के साथ सभी राज्य ओडीएफ मुक्त

2014 में ग्रामीण स्वच्छ भारत अभियान लांच होने के बाद से 35 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 699 जिलों के 5.9 लाख गांवों में 10 करोड़ से ज्यादा शौचालयों का निर्माण हुआ। यही नहीं, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने खुद को ओडीएफ घोषित कर दिया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 80 फीसदी से ज्यादा गांव ओडीएफ घोषित हो चुके हैं। इसका आशय है कि देश के अधिकांश नागरिकों के लिए शौचालय उपलब्ध हो चुके हैं और वे इनका उपयोग भी कर रहे हैं।

लेकिन उत्तर प्रदेश के गांव की हकीकत कुछ और

लेकिन जमीनी हकीकत ऐसी कतई नहीं है। वास्तविकता सरकारों के दावों और आंकड़े से मेल नहीं खाती है। उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में बिधूना गांव में हकीकत कुछ और ही है। इस गांव में निम्न आय वर्ग के अधिकांश लोगों के घरों के बाहर शौचालय बने दिखाई दिए लेकिन जब गौर से देखा तो अहसास हुआ कि कई शौचालयों का इस्तेमाल सामान रखने के लिए हो रहा है। हालांकि गांव के निवासी सुभाष पाठक का कहना है कि कुछ लोग भले ही शौचालय का इस्तेमाल स्टोर की तरह कर रहे हों लेकिन बाकी शौचालयों का इस्तेमाल हो रहा है। गांव में खासकर महिलाएं शौचालय का ही इस्तेमाल करती है। लेकिन पुरुषों खासकर बुजुर्ग आदत के चलते खुले में ही शौच जाना पसंद करते हैं। पाठक का कहना है कि निकटवर्ती कोसमा और अन्य गांवों में शौचालय बनाने में भी गरीबों को दिक्कत आती है क्योंकि भ्रष्टाचार और गुटबंदी के चलते ग्राम प्रधान से समय पर और पूरी सरकारी मदद नहीं मिल पाती है।

दलित बच्चों की हत्या से कड़वी सच्चाई उजागर

ओडीएफ मुक्त भारत का एक कुरूप चेहरा तब देखने को मिला जब पिछले सप्ताह मध्य प्रदेश के शिवपुरी के भावखेड़ी गांव में खुले में शौचालय करने पर वाल्मीकि परिवार के दो बच्चों की हत्या कर दी गई। इस घटना का दुखद और सरकार की कलई खोलने वाली वास्तविकता यह भी है 10 करोड़ से ज्यादा शौचालय बनने के बावजूद इन बच्चों के घर पर शौचालय नहीं था।

ऐसी जोर-जबर्दस्ती किसी को भी स्वीकार्य नहीं

पूरे देश को झकझोर देने वाली इस घटना के बाद जल शक्ति मंत्रालय के पेय जल एवं स्वच्छता विभाग ने राज्यों को सलाह जारी करके कहा कि लोगों की खुले में शौच की आदत बदलने के लिए जोर-जबर्दस्ती किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं है। लोगों को प्रेरित करने के लिए अभियान चलाए जाएं लेकिन सरकारी या निजी स्तर पर कोई जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। शिवपुरी जैसी घटनाओं के लिए अपराधियों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। जोर-जबर्दस्ती करने की घटनाएं समय-समय पर आती रही हैं।

स्थानीय निकायों की नाकामी

भले ही सरकार दो अक्टूबर को ओडीएफ भारत की घोषणा करने की तैयारी कर रही है लेकिन 94 स्थानीय निकाय यह दर्जा हासिल नहीं कर पाए हैं। 4378 शहरी स्थानीय निकायों में से 4284 निकायों ने ओडीएफ घोषित कर दिया है। लेकिन उत्तर दिल्ली नगर निगम सहित 94 निकाय यह दर्जा हासिल नहीं कर पाए हैं। इनमें से अधिकांश पश्चिम बंगाल, पूर्वोत्तर और उत्तर प्रदेश के हैं। इससे स्पष्ट है कि देश को ओडीएफ घोषित करना अधूरा ही होगा।

शौचालय बनाना स्वच्छता अभियान का अधूरा काम

शौचालय बनाकर सरकार स्वच्छता के क्षेत्र में बड़ा मान रही है लेकिन विशेषज्ञों की नजर में यह सिर्फ पहला और सबसे आसान कदम है। विशेषज्ञों का कहना है कि 10 करोड़ शौचालयों का निर्माण होने के बाद इनकी गंदगी का सही तरीके से निस्तारण बड़ी चुनौती साबित होने वाली है। चेतावनी है कि अगर यह काम सुचारु रूप से नहीं किया गया तो स्वच्छता का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाएगा। एक विश्लेषण के अनुसार इन शौचालयों में रोजाना एक लाख टन मानव मल निकलेगा। इसकी ढुलाई के लिए 5200 ट्रकों की आवश्यकता होगी।

अब दस साल की नई रणनीति लांच होगी

देश को ओडीएफ घोषित करने के साथ ही सरकार ने दस साल की ग्रामीण स्वच्छता रणनीति राष्ट्रीय स्तर पर लांच करने की तैयारी की है। दस वर्षीय ग्रामीण स्वच्छता रणनीति (2019-2029) के तहत ग्रामीण स्वच्छ भारत अभियान में लोगों में स्वच्छता की आदत डालने पर फोकस होगा। इस अभियान में शौयालयों के मलबा प्रबंधन पर भी ध्यान दिया जाएगा। सरकार का कहना है कि अभी तक चले अभियान के तहत जो प्रयास हुए हैं, उन्हें स्थाई रूप देने की आवश्यकता है ताकि स्वच्छता पर फोकस बना रहे। नई रणनीति में इसी पर फोकस होगा। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती पर सफाई पर स्थाई फोकस ही सच्ची श्रद्धांचलि होगी।

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