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सोशल मीडिया: वाह जी वाह, कौटिल्य अर्थशास्त्र में जीएसटी, मनु के दर्शन में भूमंडलीकरण

कौटिल्‍य अर्थशास्‍त्र में जीएसटी की प्रकृति पर एक निबंध लिखिए। मनु भूमंडलीकरण के प्रथम भारतीय...
सोशल मीडिया: वाह जी वाह, कौटिल्य अर्थशास्त्र में जीएसटी, मनु के दर्शन में भूमंडलीकरण

कौटिल्‍य अर्थशास्‍त्र में जीएसटी की प्रकृति पर एक निबंध लिखिए।

मनु भूमंडलीकरण के प्रथम भारतीय चिंतक थे। विवेचना कीजिए।

ये बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) के एमए क्‍लास के राजनीति विज्ञान के पेपर के दो सवाल हैं। 15-15 नंबर के। जाहिर है छात्र इन सवालों को देखकर भड़क गए। उनका कहना था कि 'प्राचीन और मध्‍यकालीन भारत के सामाजिक एवं आर्थिक विचार' संबंधित कोर्स में इस तरह के टॉपिक ही नहीं है। 

हालांकि इन सवालों को सेट करने वाले प्रोफेसर कौशल किशोर मिश्र ने इंडियन एक्‍सप्रेस से कहा, ''मैंने इन विचारकों के दर्शनों को आधुनिक उदाहरणों जीएसटी और ग्‍लोबलाइजेशन के संदर्भों में व्‍याख्‍यायित किया है। इन उदाहरणों को छात्रों के समक्ष पेश करने का यह मेरा आइडिया था. सो, क्‍या हुआ यदि ये किताबों में दर्ज नहीं है? क्‍या ये हमारा जॉब नहीं है कि पढ़ाने के नए तरीके खोजे जाएं?''

इस बारे में अपनी राय जाहिर करते हुए प्रोफेसर मिश्र ने कहा, ''कौटिल्‍य की अर्थशास्‍त्र पहली ऐसी भारतीय किताब है, जिसमें जीएसटी की मौजूदा संकल्‍पना के संकेत मिलते हैं। जीएसटी की प्राथमिक रूप से संकल्‍पना यह है कि उपभोक्‍ताओं को सर्वाधिक लाभ मिलना चाहिए।

जीएसटी का आशय इस बात की ओर इशारा करता है कि देश की वित्‍तीय व्‍यवस्‍था और अर्थव्‍यवस्‍था एकीकृत और यूनीफॉर्म होनी चाहिए। कौटिल्‍य ऐसे ही चिंतक हैं जिन्‍होंने राष्‍ट्रीय आर्थिक 'एकीकरण' की संकल्‍पना पर बल दिया। कौटिल्‍य ने तो अपने समय में यह तक कहा कि मकान निर्माण पर  20 प्रतिशत टैक्‍स, सोना और अन्‍य धातुओं पर 20 प्रतिशत, गार्डन पर 5 प्रतिशत, कलाकार पर 50 प्रतिशत तक टैक्‍स लगाना चाहिए।''

प्रोफेसर मिश्र बीएचयू में सोशल साइंड फैकल्‍टी में भारतीय राजनीतिक व्‍यवस्‍था और भारतीय राजनीतिक विचारों के प्रोफेसर हैं। उन्‍होंने यह भी स्‍वीकार किया कि वह आरएसएस के सदस्‍य हैं। लेकिन साथ ही यह भी स्‍पष्‍ट किया कि छात्रों को जो वह पढ़ाते हैं, उसमें उनके निजी विचारों का कोई लेना-देना नहीं है।

उन्‍होंने सफाई देते हुए कहा, ''ये सवाल किसी भी प्रकार से किसी दल की नीतियों को प्रोत्‍साहित नहीं करते। ये बस भारतीय दर्शन और दार्शनिकों के विचारों की आधुनिक संदर्भों में व्‍याख्‍या है। जो छात्र इनको लेकर असंतोष जता रहे हैं, उनकी परीक्षा की तैयारी ठीक नहीं होगी इसलिए वे हो-हल्‍ला मचा रहे हैं। जब महाकाव्‍य और अर्थशास्‍त्र पूरी दुनिया की यूनिवर्सिटीज में पढ़ाई जा रही हैं तो हम भारतीय कैसे उनको भूल सकते हैं?''

अब इस मुद्दे को लेकर सोशल मीडिया पर भी चर्चा हो रही है। लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं।


वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने लिखा-



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