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निजता का अधिकार: जज बेटे ने बदला अपने पिता का फैसला तब हुई 90 साल के याचिकाकर्ता की जीत

प्राइवेसी को नागरिकों का मौलिक अधिकार माना गया, वहीं इस दौरान कुछ महत्वपूर्ण और रोचक आयाम भी सामने आए हैं।
निजता का अधिकार: जज बेटे ने बदला अपने पिता का फैसला तब हुई 90 साल के याचिकाकर्ता की जीत

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है और यह जीवन एवं स्वतंत्रता के अधिकार का अभिन्न हिस्सा है। सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे एस खेहर की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय पीठ ने एक मत से यह फैसला दिया। इस फैसले के बाद प्राइवेसी को नागरिकों का मौलिक अधिकार माना गया वहीं इस दौरान कुछ महत्वपूर्ण और रोचक आयाम भी सामने आए।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच के सदस्य डी वाई चन्द्रचूड ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताकर अपने पिता जस्टिस वाई वी चन्द्रचूड के एक अहम फैसले को पलट दिया, जो उन्होंने 1975 में एडीएम जबलपुर वर्सेस शिवकांत शुक्ला के मामले में दिया था। वाई वी चंद्रचूड़ ने उस फैसले में कहा था कि निजी स्वतंत्रता के अधिकार की कोई पहचान नहीं है। इसलिए जब इनको व्यावहारिक जीवन में लाया जाता है तो पहचानना असंभव-सा हो जाता है कि ये संविधान द्वारा नागरिकों को दिया गया है या फिर पहले से ही संविधान में मौजूद था।

जबकि डी वाई चन्द्रचूड़ ने अपने पिता के फैसले के विपरीत जाते हुए कहा कि उस दौरान चार जजों द्वारा बहुमत में दिये गये फैसले में कई खामियां थीं। उन्होंने कहा कि निजता के अधिकार की प्रतिष्ठा व्यक्तिगत आजादी और स्वतंत्रता के साथ जुड़ी हुई है और कोई भी सभ्य राज्य बिना कानून की इजाजत के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर कुठाराघात नहीं कर सकता है।

वहीं इस फैसले के साथ कर्नाटक हाई कोर्ट के पूर्व जज केएस पुत्तास्वामी की चर्चा हो रही है। वे राइट टू प्राइवेसी के पहले याचिकाकर्ता हैं। कर्नाटक हाई कोर्ट के पूर्व जज केएस पुत्तास्वामी ने 2012 में आधार स्कीम को चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की। लगभग 90 साल के पुत्तास्वामी ने कहा था कि इस स्कीम से इंसान के निजता और समानता के मौलिक अधिकार का हनन होता है। सुप्रीम कोर्ट ने 20 से ज्यादा आधार से संबंधित केसों को इस मुख्य मामले से जोड़ दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद लोग 90 साल के पूर्व जज को बधाई देते दिख  रहे हैं।

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