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रिजर्व बैंक ने कहा, देश में इस्लामिक बैंकिंग की जरूरत नहीं

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने देश में इस्लामी बैंकिंग की शुरूआत करने वाले प्रस्ताव पर हामी नहीं भरी...
रिजर्व बैंक ने कहा, देश में इस्लामिक बैंकिंग की जरूरत नहीं

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने देश में इस्लामी बैंकिंग की शुरूआत करने वाले प्रस्ताव पर हामी नहीं भरी है। एक आरटीआई के जवाब में केंद्रीय बैंक ने कहा कि सभी नागरिकों तक बैंकिंग और वित्तीय सेवाएं पहुंचाने के "व्यापक और समान अवसर" पर विचार करने के बाद ही यह निर्णय लिया गया है।

पीटीआई के मुताबिक, आरटीआई में दिए गए जवाब में कहा गया, “इस्लामिक या शरिया बैंकिंग ब्याज रहित सिद्धांतों पर आधारित एक वित्तीय प्रणाली है, क्योंकि इस्लाम में ब्याज की मनाही है। भारत में इस्लामिक बैंकिंग की शुरूआत के मुद्दे पर आरबीआई और भारत सरकार की ओर से जांच की गई।” केंद्रीय बैंक ने कहा, “इस संदर्भ में, सभी नागरिकों को बैंकिंग और वित्तीय सेवाएं पहुंचाने के लिए व्यापक और समान अवसरों की उपलब्धता को मद्देनजर रखते हुए यह तय किया गया है कि इस प्रस्ताव को आगे न बढ़ाया जाए।”

इस आरटीआई में भारतीय रिजर्व बैंक को भारत में इस्लामिक या 'ब्याज-मुक्त' बैंकिंग की शुरूआत के लिए उठाए गए कदमों का विवरण देने के लिए कहा गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 अगस्त 2014 को जन धन योजना लॉन्च की थी। यह वित्तीय समावेशन के तहत पूरे देश को लाने के लिए उठाया गया एक राष्ट्रीय मिशन था।

साल 2008 के आखिर में रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की अध्यक्षता में वित्तीय क्षेत्र में सुधारों के लिए एक समिति का गठन किया गया था, जिसने देश में ब्याज मुक्त बैंकिंग के मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने पर बल दिया था।

क्या है इस्लामिक बैंकिंग?

इस्लामिक या शरिया बैंकिंग ऐसी वित्तीय व्यवस्था है जो सूद नहीं लेने के सिद्धांत पर चलती है क्योंकि सूद लेना इस्लाम में हराम है। आरटीआई के जवाब में कहा गया है कि भारत में इस्लामिक बैंक लाने के मुद्दे पर रिजर्व बैंक और सरकार ने विचार किया। समाचार एजेंसी पीटीआई के एक संवाददाता की ओर से दायर आरटीआई में कहा गया, 'चूंकि सभी नागरिकों को बैंकिंग और फाइनैंशल सर्विसेज विस्तृत और समान रूप में उपलब्ध हैं, इसलिए प्रस्ताव को आगे नहीं बढ़ाने का फैसला नहीं किया गया है।'

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