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स्विस बैंकों में भारतीयों के दस खातों का कोई दावेदार नहीं, जल्द सरकारी खजाने में चली जाएगी राशि

स्विस बैंकों में भारतीयों के करीब एक दर्जन निष्क्रिय बैंक खातों के लिए कई साल से कोई दावेदार सामने...
स्विस बैंकों में भारतीयों के दस खातों का कोई दावेदार नहीं, जल्द सरकारी खजाने में चली जाएगी राशि

स्विस बैंकों में भारतीयों के करीब एक दर्जन निष्क्रिय बैंक खातों के लिए कई साल से कोई दावेदार सामने नहीं आया है। इस वजह से इन बैंक खातों में जमा राशि स्विट्जरलैंड की सरकार को ट्रांसफर हो सकती है। स्विस सरकार ने 2015 में निष्क्रिय पड़े बैंक खातों का विवरण जुटाना शुरू किया था और उसने दावेदारों को आवश्यक प्रमाण देकर धनराशि निकालने की अनुमति दी थी। ऐसे निष्क्रिय पड़े बैंक खातों में से कम से कम 10 खाते भारतीयों से जुड़े हैं।

अगले साल दिसंबर या उससे पहले दावा करना होगा

स्विस अधिकारियों के पास उपलब्ध जानकारी के मुताबिक ये खाते भारतीयों और ब्रिटिश राज के दौर के नागरिकों से जुड़े हैं। लेकिन इनमें से किसी भी बैंक खाते के लिए पिछले छह साल में सफलतापूर्वक दावा नहीं किया गया। इन खातों के लिए दावा करने की अवधि कुछ महीनों में खत्म हो जाएगी। हालांकि कुछ खातों के लिए 2020 के अंत तक दावा किया जा सकता है।

इन शहरोंवासियों से जुड़े हैं खाते

ओंबड्समैन के पास उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, दावेदारों के इंतजार में जिन भारतीयों से जुड़े निष्क्रिय खाते हैं जिनमें से कम से कम दो व्यक्ति कोलकाता, एक व्यक्ति देहरादून, दो व्यक्ति मुंबई के हैं और कुछ खाते फ्रांस और ब्रिटेन में बस चुके भारतीयों के हैं।

ये हैं भारतीय खातेदार

लीला तालुकदार और प्रमाता एन. तालुकदार के दो खातों के दावे की अवधि 15 नवंबर को खत्म हो रही है। दिसंबर तक जिन खातों में दावा किया जा सकता है, वे खाते चंद्रलता प्राणलाल पटेल, मोहन लाल और किशोर लाल के हैं। मुंबई के दो निवासियों रोसमारी बेरनेट और पियरे वाचेक के बैंक खातों के लिए दावा दिसंबर 2020 तक किया जा सकता है। देहरादून के चंद्र बहादुर सिंह और आखिरी रिकॉर्ड के अनुसार लंदन में रहने ववाले योगेश प्रभुदास सुचाह के खातों के लिए दिसंबर 2020 तक दावा करना संभव है।

कुल 2600 खातों में 300 करोड़ रुपये जमा

दूसरी ओर, तभी से पाकिस्तान के निवासियों से जुड़े कुछ खातों के लिए दावे किए गए। स्विट्जरलैंड और अन्य देशों से जुड़े अन्य खातों के लिए भी ऐसा ही किया गया। पहली बार, दिसंबर 2015 में जब इन खातों को सार्वजनिक किया गया था, तब इस सूची में करीब 2600 खाते थे, जिनमें करीब 4.5 करोड़ स्विस फ्रैंक (300 करोड़ रुपये से ज्यादा) की रकम 1955 से पड़ी है जिन पर दावा नहीं किया गया।

निष्क्रिय खातों की संख्या 3500 तक पहुंची

जब सूची को पहली बार सार्वजनिक किया गया, तब करीब 80 सेफ्टी डिपॉजिट बॉक्स भी थे जिन पर दावा नहीं किया गया था। इन पर इसके वास्तविक मालिक अथवा उनके उत्तराधिकारी दावा कर सकते हैं। तब से हर साल इस सूची में और बैंक खाते जुड़ रहे हैं जो स्विस बैंकिंग कानून के मुताबिक निष्क्रिय हो गए। अब इस सूची में ऐसे खातों की संख्या 3500 है।

काले धन के शक में स्विस खाते बने राजनीतिक मुद्दा

पिछले कुछ वर्षों से स्विस बैंक खाते भारत में राजनीति का गरम मुद्दा बन गया है क्योंकि संदेह है कि यह पैसा काले धन के तौर पर स्विस बैंकों में जमा किया गया। संदेह है कि इन खातों में पूर्ववर्ती रियायतों से जुड़े लोगों ने कुछ पैसा स्विट्जरलैंड की बैंकों में जमा कराया हो। पिछले कुछ वर्षों में अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते स्विट्जरलैंड ने विदेशों से नियामकीय निगरानी के लिए अपने बैंकिंग सिस्टम को खोला है। उसने भारत सहित तमाम देशों के साथ वित्तीय मामलों की जानकारी के ऑटोमैटिक एक्सचेंज के लिए समझौते भी किए।

अब स्विट्जरलैंड भारत को देने लगा सूचनाएं

इस समझौते के तहत स्विट्जरलैंड के वित्तीय संस्थानों में भारतीयों के खातों की जानकारी पहली बार हाल में ही भारत को दी गई। अगले दौर में ऐसी ही जानकारी सितंबर 2020 में दी जाएगी। इस बीच, निष्क्रिय खातों के लिए दावों का प्रबंधन स्विस बैंकर्स एसोसिएशन के सहयोग से स्विस बैंकिंग ओंबड्समैन द्वारा किया जा रहा है।

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