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देश के स्वच्छता सेनानी से मुलाकात जिसे कोई शहीद का दर्जा भी नहीं देगा

एक तरफ जहां स्वच्छता अभियान की ब्रांडिग जोरों पर है, वहीं सीवर के भीतर गंदगी साफ करने उतरे सफाई कर्मचारियों की मौतें दिल दहला रही हैं।
देश के स्वच्छता सेनानी से मुलाकात जिसे कोई शहीद का दर्जा भी नहीं देगा

दिल्ली के लाजपत नगर में 6 अगस्त को मैनहोल में उतरे तीन सफाई कर्मचारियों की मौत हो गई। इसके साथ्‍ा ही एक बार फिर सफाईकर्मियों की सुरक्षा पर सवाल खड़े हो रहे हैं। एक माह के भीतर देश की राजधानी दिल्ली में सीवर में उतरने के दौरान 7 सफाई कर्मचारी अपनी जिंदगी खो चुके हैं। वहीं पिछले माह राजधानी के ही घिटोरनी इलाके में भी सेप्टिक टैंक में सफाई करने उतरे चार सफाईकर्मियों की मौत हो गई थी।

हालांकि इस तरह सेप्टिक टैंक और सीवर में होने वाली ये मौतें कोई नई बात नहीं हैं। इससे पहले भी ऐसी घटनाएं होती रही हैं। माना जाता है कि सीवर में उतरते, सफाई करते जीवन गुजार देने वाले इन कर्मचारियों की तरफ सरकार और की ओर से लगातार बेरुखी की वजह से ऐसी घटनाएं अक्सर घटित होती रहती हैं।

सफाई कर्मचारी आंदोलन के संयोजक तथा रेमन मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त बेजवाडा विल्सन सवाल उठाते हैं कि देश में कब तक दलित इस तरह मरते रहेंगे?

सफाई कर्मचारी आंदोलन के आंकड़ों के अनुसार, पिछले तीन सालों में देशभर में करीब 1500 सफाई कर्मी अपनी जिंदगी गटर में गंवा चुके हैं। लेकिन इनकी मौतों का कोई मसला नहीं बन पाना हैरान करता है।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि किसी भी हालत में किसी व्यक्ति को सीवर में न भेजा जाए। इसके लिए देश में मैनुअल स्कैंवेंजर एंड रिहैबिलिटेशन एक्ट 2013 भी पास किया है। इस अधिनियम के तहत किसी भी सफाई कर्मचारी से किसी भी रूप में मैला साफ नहीं करवाया जा सकता। ऐसा करने पर सजा हो सकती है। इसके साथ ही 7 मार्च 2014 को सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया जिसमें कोर्ट ने रेखांकित किया, "सुरक्षा गियर के बिना सीवर लाइनों में प्रवेश करना आपातकालीन स्थितियों में भी अपराध होना चाहिए।"

लेकिन स्वच्छता सेनानियों की मौतों पर गंभीरता बरतने का अभाव व्यापक रूप से देखा जा सकता है। इनकी मौतों का मीडिया या सियासत में मुद्दा नहीं बन पाना बेहद अमानवीय लगता है। आइए मिलते हैं ऐसे ही एक स्वच्छता सेनानी से....

दिन के आठ घंटे सीवर में गुजारने वाले छोटे की मुस्कुराहट देखकर ऐसा बिल्कुल अनुभव नहीं होता कि वे इस काम को जानलेवा मानते होंगे। दरअसल, राजधानी दिल्ली के कमल सिनेमा के पास सफाई करने के लिए सीवर में उतरे छोटे कहते हैं कि यह उनकी आजीविका का साधन है। वे 12 सालों से इस तरह  सफाई का काम कर रहे हैं। राजस्थान के बैरवा जाति से आने वाले छोटे बताते हैं कि उनके पिता जीवन-यापन के लिए राजस्थान से दिल्ली में आकर बस गए। वे राजमिस्त्री का काम करते थे। अब छोटे दिल्ली के दक्षिणपुरी में रहते हैं।

 

लोग जिस जगह से नाक सिकोड़कर भाग जाते हैं वहां यह 'छोटे' नगें पांव, घुटने भर दल-दल और बजबजाती नालियों पर फावड़ा चलाकर सारी गंदगी बाहर निकाल देता है।

सुरक्षा और हकीकत

नियम के मुताबिक सीवेज की सफाई करते समय कर्मचारी के पास सूट, मास्क और गैस सिलेंडर होना चाहिए। इनका विशेष सूट होता है जो गंदे पानी से कर्मचारियों की सुरक्षा करता है। लेकिन वास्तविकता इसके उलट है।

सीवर में उतरते वक्त सुरक्षा अपनाने के सवाल पर छोटे का कहना है, “हमें दस्ताने और जूते दिए जाते हैं, लेकिन उसे पहनकर सीवर में उतरना और भी मुश्किल का काम है। इन सबके अंदर पानी भर जाता है जिससे काम करने में और असुविधा होती है। इसलिए मैं ऐसे ही सीवर के भीतर उतर जाता हूं।”

स्वास्थ्य और शराब

शहर भर की सारी गंदगी और बीमारी जिस नाले से होकर गुजरती है वहां यूं ही नहीं उतरा जा सकता। छोटे बताते हैं, बगैर शराब पिए सीवर में उतरना नामुमकिन है।

“सीवर में बिना सुरक्षा उपाय के उतरने से बीमारियां भी हो सकती है?” इस सवाल पर छोटे आत्मविश्वास से लबरेज होकर बताता है कि वह 4-5 महीनों में डॉक्टर से इंजेक्शन लगवाता है। जिससे उस पर इन बीमारियों का असर नहीं होता।

आठ घंटे का काम, साढ़े चार सौ रुपये दिहाड़ी

छोटे रोज आठ घंटे तक काम करता है। इस काम के लिए ठेकेदार उसे साढ़े चार सौ रुपये दिहाड़ी देता है। छोटे का कहना है कि उसे रोज काम मिल जाता है। वह कम से कम आठ घंटे सीवर, नालियों की सफाई करते हुए बिताता है।

मशीन से नहीं हो सकती सफाई

सीवर को साफ करने के लिए खड़ी बड़ी-बड़ी मशीनें ठीक तरह सफाई नहीं कर पातीं। यह बात सुनकर भले ही हैरानी हो रही हो लेकिन छोटे का कहना है ‌कि कई जगह मशीनों की वजह से ज्यादा तोड़-फोड़ करनी पड़ती है। वैसे ही जहां मशीनों का पहुंचना संभव नहीं होता वहां उन्हें खुद उतरकर हाथों से सफाई करनी पड़ती है।

घिटोरनी की घटना जानता हूं

दो सप्ताह पहले दक्षिण दिल्ली के घिटोरनी इलाके में सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान दम घुटने से चार सफाई कर्मचारियों की मौत हो गई थी। इस घटना के बारे में जिक्र करने पर छोटे कहता है, “मैं घिटोरनी वाली घटना जानता हूं।” यह बोलकर छोटे फिर अपने काम पर जुट जाता है। काफी देर तक सीवर से बाहर रहने की वजह से उसके शरीर पर सने गाद, मिट्टी, कीचड़ थोड़े सूख से गए थे। अब वह फिर सीवर की भीतर सफाई के लिए उतर गया है। वह फावड़े और अपनी हाथों की मदद से अंदर जमी गंदगी को बाहर निकालने में तल्लीनता से लगा हुआ है। बहरहाल ऐसी घटनाएं यह सोचने पर विवश करती हैं कि ये कैसे स्वच्छता सेनानी हैं जिन्हें मरने के बाद शहीद का दर्जा भी नहीं मिल पाएगा…

 

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