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अब काशी-मथुरा की बारी?

“पूजास्थल एक्ट 1991 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर होने से मुसलमानों में बढ़ा डर”   प्राचीन...
अब काशी-मथुरा की बारी?

“पूजास्थल एक्ट 1991 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर होने से मुसलमानों में बढ़ा डर”
 
प्राचीन वाराणसी, विश्व के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में एक है। कोविड-19 के कारण लगाए गए प्रतिबंध भी यहां की ऐतिहासिक गलियों को सूना नहीं कर सके। 100 से ज्यादा लोग काशी विश्वनाथ कॉरीडोर परियोजना पर काम कर रहे हैं। इस परियोजना के तहत मंदिर तक जाने के लिए पांच लाख वर्ग फुट का क्षेत्र विकसित किया जा रहा है। गलियों में पुरानी ऐतिहासिक इमारतों की जगह नए ढांचे खड़े हो गए हैं। गंगा के तीनों घाट से विश्वनाथ मंदिर तक जाने वाली सर्पीली गलियों को चौड़ा किया जा रहा है। यह कॉरीडोर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रिय परियोजना है, जिस पर करीब 600 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। इसके पूरा होने के बाद यहां लाखों भक्त एक साथ आ सकेंगे और गंगा के घाटों से ही मंदिर के दर्शन कर सकेंगे।

एक और तीर्थ शहर अयोध्या में हाल ही में राम जन्मभूमि मंदिर की आधारशिला रखी गई। वर्षों चले राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल नवंबर में फैसला दिया था। काशी और मथुरा में नए मंदिरों का निर्माण विश्व हिंदू परिषद और अन्य हिंदू संगठनों के एजेंडे में लंबे समय से है।

कुछ छोटे हिंदू संगठनों की तरफ से काशी और मथुरा के मंदिरों को ‘वापस’ लेने की आवाज तेज होने के साथ वाराणसी के मुस्लिम समुदाय में चिंताएं बढ़ने लगी है। अयोध्या में राम मंदिर के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद वाराणसी के कुछ संगठन काशी और मथुरा के मंदिरों को ‘मुक्त’ कराने की मांग करने लगे हैं। भारतीय जनता पार्टी भी इसका समर्थन करने वालों में है। पार्टी के वरिष्ठ नेता विनय कटियार ने आउटलुक से कहा, “काशी विश्वनाथ मंदिर और मथुरा कृष्ण जन्मभूमि मंदिर का विवादित स्थल हमेशा हमारे एजेंडे में रहा है। अगली बारी काशी और मथुरा की है।”

कॉरीडोर प्रोजेक्ट के कारण 17वीं सदी की ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर मुसलमानों में डर बढ़ा है। यह मस्जिद काशी विश्वनाथ मंदिर के पास ही स्थित है। दावा यह है कि कई बार बनाने और टूटने वाले काशी विश्वनाथ मंदिर के भग्नावशेषों से ही मस्जिद बनवाई गई थी।

वाराणसी के निवासी संजीव रतन मिश्र अयोध्या में राम मंदिर बनाए जाने को लेकर उत्साहित नहीं हैं। वे पूछते हैं, “जब काशी में सैकड़ों मंदिर गिरा दिए गए, तो अयोध्या में मंदिर क्यों बना रहे हैं।” मिश्र उन सैकड़ों लोगों में से हैं जिनकी दुकानें और घर दो साल पहले शुरू हुए कॉरीडोर प्रोजेक्ट के तहत ढहा दिए गए। मिश्र ने बताया कि 1937 में उनके परदादा ने जो दुकान खोली थी, उसे रातोरात गिरा दिया गया। कोर्ट के चक्कर लगाने के बाद उन्हें मुआवजा तो मिल गया, लेकिन वे अभी तक नया घर और नई दुकान नहीं खड़ी कर पाए हैं। मिश्र के अनुसार कम से कम 300 इमारतें गिरा दी गई हैं। इनमें कुछ ऐतिहासिक ढांचे और दुकानें भी हैं। इससे हजारों लोग बेघर और बेरोजगार हो गए हैं। विश्वनाथ मंदिर के महंत कुलपति तिवारी भी दुखी हैं। वे कहते हैं कि इमारतें ढहाने का अभियान काशी के इतिहास पर हमले जैसा है। इस कारण उन्हें भी बेघर होना पड़ा।

इमारत ढहाने में मुसलमानों की प्रॉपर्टी को नुकसान नहीं पहुंचाया गया है। अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद के महासचिव एस.एम. यासीन, जो ज्ञानवापी मस्जिद के प्रबंधन का काम देखते हैं, ने कहा कि इस परियोजना से उनके समुदाय के लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। मस्जिद पूरी तरह सुरक्षित है, फिर भी लोगों में डर बना हुआ है। यासीन कहते हैं, “जिस तरह से सरकारी मशीनरी और अन्य विभाग काम कर रहे हैं, उससे हमें भरोसा नहीं होता।” यासीन के अनुसार ज्ञानवापी मस्जिद का पक्ष इस लिहाज से मजबूत है कि यहां वर्षों से रोजाना नमाज पढ़ी जा रही है।

1991 के पूजास्थल एक्ट को जून 2020 में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दिए जाने के बाद मुस्लिम समुदाय का डर और बढ़ गया है। इस एक्ट में कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 को जो पूजास्थल जिस धर्म का था, वह उसी धर्म का बना रहेगा। 2019 के अयोध्या फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि अब 1991 के कानून पर सख्ती से अमल होना चाहिए और किसी पूजस्‍थल को बदलने की इजाजत नहीं होनी चाहिए। लेकिन कानून के खिलाफ लखनऊ के हिंदू संगठन विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ की तरफ से दायर याचिका में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि मंदिर के पास स्थित शाही ईदगाह मस्जिद को ‘वापस’ लेने के लिए कानूनी रास्ता अपनाने की बात कही गई है। इसके जवाब में मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा ए हिंद और पीस पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए आग्रह किया है कि काशी और मथुरा से संबंधित याचिकाओं को न सुना जाए।

राम जन्मभूमि आंदोलन की अगुआई करने वाला विश्व हिंदू परिषद इस नई लड़ाई में साथ नहीं है। इसके केंद्रीय संयुक्त महासचिव सुरेंद्र जैन ने आउटलुक से कहा, “1991 के एक्ट को चुनौती देने वाली याचिका के साथ विश्व हिंदू परिषद का कोई संबंध नहीं है। अभी हम राम मंदिर निर्माण की तैयारी कर रहे हैं। काशी या मथुरा के बारे में नहीं सोच रहे।”

पी.वी. नरसिंह राव सरकार ने 1991 में पूजास्थल कानून पारित किया था। विश्व हिंदू परिषद और अन्य हिंदू संगठनों के ज्ञानवापी और शाही ईदगाह मस्जिद को लक्ष्य बनाने के बाद ही यह एक्ट लागू किया गया था।

भारतीय जनता पार्टी का वैचारिक पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जो अतीत में काशी और मथुरा में मंदिर निर्माण को लेकर बयान देता रहा है, अभी बैकफुट पर नजर आ रहा है। संघ के एक बड़े नेता ने आउटलुक से कहा, “काशी और मथुरा के बारे में हमने अभी तक कोई स्टैंड नहीं लिया है। राम जन्मभूमि आंदोलन की शुरुआत कुछ संतों ने की और संघ ने प्रस्ताव पारित करके आंदोलन का समर्थन किया। यह अलग बात है कि बाद में हम भी इस आंदोलन का हिस्सा बने।”

1991 के कानून में सुरक्षा दिए जाने के बावजूद ज्ञानवापी मस्जिद कानूनी पचड़े में है। आरएसएस के एक कार्यकर्ता ने ‘स्वयंभू भगवान शिव’ की तरफ से अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद के खिलाफ याचिका दायर करते हुए मस्जिद की जगह को काशी विश्वनाथ मंदिर को सौंपने की मांग की। अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद ने सिविल कोर्ट की सुनवाई पर स्थगन के लिए इलाहाबाद हाइकोर्ट में याचिका दायर की, जिसने 2018 में स्थगनादेश जारी कर दिया। यासीन कहते हैं, “1991 से जिला अदालत में एक मामला चल रहा है। हमने उस याचिका पर स्थगनादेश लिया है। जब 1991 का कानून लागू है तो सुप्रीम कोर्ट ऐसी याचिकाएं क्यों स्वीकार कर रहा है।”

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुसलमीन (एआइएमआइएम) के प्रेसिडेंट असदुद्दीन ओवैसी कहते हैं, “सरकार चाहे तो 1991 के कानून को खत्म कर सकती है। अयोध्या फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 1991 के कानून की प्रशंसा की थी। अगर यही ठीक है, तो काशी मंदिर से जुड़ी याचिका लंबित क्यों है।”

अयोध्या विवाद में मुस्लिम पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले जफरयाब जिलानी बताते हैं कि 1968 में शाही ईदगाह समिति और श्री कृष्ण भूमि ट्रस्ट के बीच हुए समझौते के मुताबिक मस्जिद के प्रबंधन का अधिकार मुस्लिम समिति को सौंपा गया था। 1990 के दशक में इलाहाबाद हाइकोर्ट में एक याचिका दायर की गई कि मस्जिद में सिर्फ जुमे की नमाज पढ़ने की इजाजत दी जानी चाहिए। जिलानी कहते हैं मुस्लिम समुदाय मस्जिदों की सुरक्षा के लिए संविधान में भरोसा रखता है।

 

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