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कुरान से संविधान तक, जानिए जजों ने किस आधार पर तीन तलाक को अमान्य किया

जस्टिस कुरियन जोसेफ ने कहा कि तीन तलाक पवित्र कुरान के सिद्धांतों के खिलाफ है, इसलिए शरिया कानून का उल्लंघन करता है।
कुरान से संविधान तक, जानिए जजों ने किस आधार पर तीन तलाक को अमान्य किया

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को ‘अमान्य’ और ‘असंवैधानिक’ करार दिया। समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, कोर्ट ने इस प्रथा को कुरान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ माना है। सुप्रीम कोर्ट में के 5 जजों की कॉन्सटीट्यूशन बेंच के तीन जज ट्रिपल तलाक को अंसवैधानिक घोषित करने के पक्ष में थे, वहीं दो जजों की राय इसके इतर थी। 

तीन जजों ने कहा कि तीन तलाक स्पष्ट रूप से मनमानी है और संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन करता है। बहुमत के हिसाब से तीन जजों के फैसले को बेंच का फैसला माना गया। बता दें कि इस बेंच के पांचों जज विभिन्न धर्म- सिख, क्रिश्चियन, पारसी, हिंदू और मुस्लिम से आते हैं।

अपने फैसले में जस्टिस कुरियन जोसेफ, आरएफ नरीमन और यूयू ललित ने कहा है तीन तलाक की प्रथा पर रोक लगाने की जरूरत है। जबकि चीफ जस्टिस समेत एक अन्य जज का मानना था कि इस मामले में सरकार को कानून बनाकर दखल देना चाहिए। चीफ जस्टिस जेएस खेहर इस फैसले के अल्पमत में थे। उन्होंने एक पंक्ति के आदेश में कहा, ‘‘3-2 के बहुमत में दर्ज की गई अलग अलग राय के मद्देनजर तलाक-ए-बिद्दत (तीन तलाक) की प्रथा निरस्त की जाती है।’’ संविधान पीठ के 395 पेज के फैसले मे तीन अलग अलग निर्णय आये।

बहुमत के लिए फैसला लिखने वाले जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस आरएफ नरीमन अल्पमत के इस दृष्टिकोण से सहमत नहीं थे कि ‘तीन तलाक’ धार्मिक प्रथा का हिस्सा है और सरकार को इसमें दखल देते हुये एक कानून बनाना चाहिए।

दरअसल, चीफ जस्टिस खेहर का मानना था कि तीन तलाक की प्रक्रिया पर छह महीने तक रोक लगा दी जाए। इस वक्त में सरकार को नया कानून बनाकर मामले का हाल निकालना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि ट्रिपल तालाक को असंवैधानिक नहीं माना जा सकता। क्योंकि तलाक-ए-बिद्दत संविधान के अनुच्छेद 14,15, 21 और 25 का उल्लंघन नहीं करता है। उन्होंने यह भी कहा, “हमें देखना होगा कि सुन्नी-हनफी का एक बड़ा वर्ग है जो तीन तलाक को मान्यता देता है। इसलिए फिलहाल इसे एकदम खारिज कर देना सही नहीं होगा।” सीजेआई खेहर और जस्टिस नजीर ने अपने अल्पमत फैसले में उम्मीद जताई कि केंद्र के कानून में मुस्लिम निकायों और शरिया कानून की चिंताओं को ध्यान में रखा जाएगा। जस्टिस खेहर का कहना था कि पर्सनल लॉ से जुड़े मुद्दों को संवैधानिक अदालत छू सकती है ना ही उसकी संवैधानिकता को वह जांच-परख सकती है। जस्टिस अब्दुल नजीर ने भी सीजेआई के फैसले के साथ सहमती दी। 

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, अपने निर्णय देने के दौरान जस्टिस कुरियन ने जस्टिस खेहर से असहमति जताते हुए कहा कि उनसे सहमत होना बहुत मुश्किल है कि ट्रिपल तलाक इस्लाम के अभ्यास का अभिन्न अंग है।" उन्होंने कहा कि तीन तलाक पवित्र कुरान के सिद्धांतों के खिलाफ है, इसलिए शरिया कानून का उल्लंघन करता है।

 

इन पांच जजों से जुड़ीं कुछ अहम बातें

 

जगदीश सिंह खेहर: देश के 44वें चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर सिख समुदाय से आने वाले देश के पहले चीफ जस्टिस हैं।

 

जस्टिस कुरियन जोसफ: क्रिश्चिएन  धर्म से आने वाले कुरियन ने 1979 में केरल हाई कोर्ट में वकालत शुरू की। 2013 में वे सुप्रीम कोर्ट के जज बने।

 

जस्टिस रोहिंग्‍टन फली नरीमन:  पारसी समुदाय से आने वाले नरीमन महज 37 साल की उम्र में सुप्रीम कोर्ट के सीनियर काउंसल बने। बताया जाता है उस वक्‍त इस पद के लिए कम से कम 45 साल की उम्र का होना जरूरी था लेकिन जस्टिस वेंकटचेलैया ने फरीमन के लिए नियमों में संशोधन किया।

 

जस्टिस उदय उमेश ललित: हिंदू धर्म से आने वाले जस्टिस ललित 2जी मामले में सीबीआई की तरफ से विशेष अभियोजक रहे। वे 2014 में सुप्रीम कोर्ट के जज बने।

 

जस्टिस एस अब्‍दुल नजीर: मुस्लिम मजहब से आने वाले जस्टिस नजीर ने 1983 में कर्नाटक हाई कोर्ट में वकालत शुरू की। इसी वर्ष फरवरी में वे सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्‍त हुए।

 

 

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