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'प्रेस की आजादी' रैंकिंग में दुनिया में 140वें नंबर पर भारत, गिरफ्तारी से लेकर इन वजहों से बुरा हाल

हाल-फिलहाल में देश के कई राज्यों में पत्रकारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज होने और उनकी गिरफ्तारी के कई मामले...
'प्रेस की आजादी' रैंकिंग में दुनिया में 140वें नंबर पर भारत, गिरफ्तारी से लेकर इन वजहों से बुरा हाल

हाल-फिलहाल में देश के कई राज्यों में पत्रकारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज होने और उनकी गिरफ्तारी के कई मामले सामने आए हैं। साथ ही देश के कई जगहों पर पत्रकारों के साथ मारपीट जैसी घटनाओं से भी पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ी हैं। ऐसे में विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में ‘प्रेस की आजादी’ को लेकर फिर से सवाल खड़े हो रहे हैं।

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ सोशल मीडिया और टीवी कार्यक्रम में कथित अपमानजनक टिप्पणी को लेकर पत्रकारों की गिरफ्तारी हुई, वहीं कांग्रेस-जेडीएस शासित कर्नाटक में मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा पर फेसबुक लाइव के दौरान अभद्र टिप्पणी करने के चलते पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार किया। इससे पहले बीजेपी यूथ विंग की सदस्य प्रियंका शर्मा को ममता बनर्जी का मीम सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के जुर्म में गिरफ्तार किया गया था।

इन घटनाओं के बीच प्रेस की आजादी को लेकर वैश्विक परिदृश्य में भारत की स्थिति पर नजर अटक जाती है। अप्रैल माह में जारी 'रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स' की सालाना रिपोर्ट में भारत प्रेस की आजादी के मामले में 2 पायदान खिसक गया। इस तरह 180 देशों में भारत का स्थान 140वां है।

वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में पाया गया है कि दुनिया भर में पत्रकारों के प्रति दुश्मनी की भावना बढ़ी है। भारत में बीते साल अपने काम के कारण कम से कम 6 पत्रकारों की हत्या कर दी गई।

2018 में 6 पत्रकारों की जान गई

2018 में अपने काम की वजह से भारत में कम से कम 6 पत्रकारों की जान गई है। इसमें कहा गया कि ये हत्याएं बताती हैं कि भारतीय पत्रकार कई खतरों का सामना करते हैं, खासतौर पर, ग्रामीण इलाकों में गैरअंग्रेजी भाषी मीडिया के लिए काम करने वाले पत्रकार। इसमें आरोप लगाया गया है कि 2019 के आम चुनाव के दौरान सत्तारूढ़ भाजपा के समर्थकों द्वारा पत्रकारों पर हमले बढ़े हैं।

इन वजहों से प्रेस की आजादी पर संकट

सूचकांक में कहा गया है कि भारत में प्रेस स्वतंत्रता की वर्तमान स्थिति में से एक पत्रकारों के खिलाफ हिंसा है जिसमें पुलिस की हिंसा, माओवादियों के हमले, अपराधी समूहों या भ्रष्ट राजनीतिज्ञों का प्रतिशोध शामिल है।

भारत के संदर्भ में, इसने हिन्दुत्व को नाराज करने वाले विषयों पर बोलने या लिखने वाले पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया पर समन्वित घृणित अभियानों पर चिंता जताई है। इसने रेखांकित किया है कि जब महिलाओं को निशाना बनाया जाता है तो अभियान खासतौर पर उग्र हो जाता है। इसमें कहा गया है कि जिन क्षेत्रों को प्रशासन संवेदनशील मानता है वहां रिपोर्टिंग करना बहुत मुश्किल है जैसे कश्मीर। कश्मीर में विदेशी पत्रकारों को जाने की अनुमति नहीं है और वहां अक्सर इंटरनेट काट दिया जाता है।

अदालत ने भी जताई चिंता

वहीं अब एक पत्रकार का ‘देशद्रोह' के आरोप में या ‘आपत्तिजनक सामग्री' रखने के आरोप में या एक पत्रकार का मुख्यमंत्री की ‘छवि धूमिल करने' के आरोप में गिरफ्तार हो जाना लोकतांत्रिक देश के लिए गंभीर चुनौती बन रही है। अदालत ने भी इस पर चिंता जाहिर की है। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने प्रशांत कनौजिया की रिहाई का आदेश देते हुए यूपी सरकार से कहा कि उसे ‘दरियादिली' दिखानी चाहिए। कोर्ट ने हैरानी जताते हुए कहा कि ये हत्या का मामला तो था नहीं कि आरोपी को 11 दिन की रिमांड पर भेज दिया गया। पीठ के अनुसार ट्वीट की प्रकृति को देखने से अधिक जरूरी ये देखना है कि व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता का हनन न हो। कोर्ट ने साफ किया कि याचिकाकर्ता के पति अगर ट्वीट न करते तो ठीक रहता लेकिन एक विवादास्पद ट्वीट पर गिरफ्तार कर लेने का औचित्य समझ से परे है।

 

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